जीवन में चाहते है सफलता तो ध्यान दें गीता के इन महत्वपूर्ण श्लोक पर
इस साल 14 दिसंबर दिन मंगलवार को गीता जयंती है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध से पहले अर्जुन को गीता का पाठ पढ़ाया था। इसके साथ ही इसके भगवान श्री कृष्ण ने लोगों को भी जीवन का सार समझाने की कोशिश की थी। इस साल गीता जयंती के अवसर पर आप सभी एक बार फिर भगवान श्री कृष्ण द्वारा बताए गए श्रीमद्भागवत गीता के कुछ श्लोकों और उसके उपदेशों को अपने जीवन का हिस्सा बनाकर आप सफलता प्राप्त कर सकते हैं। तो चालिए जानते हैं गीता के सफलता के उन कुछ मंत्रों के बारे मे…
गीता में है सफलता के मंत्र
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
गीता के इस श्लोक में बताया गया है कि, यदि आप अपनी जिंदगी में सफलता चाहते हैं तो सिर्फ अपने कर्म पर ध्यान दें, आप अपनी पूरी शक्ति सिर्फ अपने कर्म पर तब लगाएंगे जब आप बिना भटकाव के कोई भी काम करेंगे। जब भी आप फल की इच्छा से कर्म करेंगे, तो आपका ध्यान कर्म पर कम होगा और फल पर ज्यादा रहेगा। ऐसे में कर्म के फल को प्राप्त करने में मुश्किल हो सकती है। इसी कारण से भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि कर्म ही मनुष्य के अधिकार में है, फल की चिंता करना व्यर्थ है।
अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।
गीता के इस श्लोक में बताया गया है कि, जो व्यक्ति संदेह करने वाला होता है, उसे कभी भी सुख और शांति प्राप्त नहीं होती है। वह खुद स्वयं का विनाश कर देता है। न ही उसे इस लोक में सुख कि प्राप्ति होती है और न ही परलोक में। जो मनुष्य संदेहरहित होकर किसी भी प्रकार का कार्य करते हैं, वहीं सफलता को प्राप्त कर पाते हैं।
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।
किसी भी कार्य में तब सफलता मिलती हैं जब आपका मन शांत होता है। इसलिए जब भी कोई काम करें उसमें अपने मन को शांत रखें। भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि, क्रोध में बुद्धि नाश हो जाती है और जो मनुष्य बुद्धिहीन होता है, वह खुद का ही सर्वनाश कर लेता है। अगर आप किसी भी प्रकार केकार्य में सफलता चाहते हैं तो अपने क्रोध को पूरी तरह से त्याग दें।