टूटा मिथक, बना इतिहास, दौड़ा बुलडोजर
इस चुनाव को इस मायने में याद किया जायेगा कि प्रदेश की जनता ने न सिर्फ किसी एक पार्टी को जाति व मजहब से इतर दुबारा बहुमत की सरकार बनाने का सौभाग्य प्रदान किया, बल्कि यह पहला मौका होगा जब 37 साल के इतिहास में दुबारा किसी मुख्यमंत्री की ताजपोशी होगी। यूपी में मुख्यमंत्रियों के लिए नोएडा एक ’अशुभ’ था कि जो भी मुख्यमंत्री नोएडा जाएगा, उसकी कुर्सी चली जाएगी। लेकिन वो मिथक भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तोड़ते हुए संदेश दिया है कि अंधविश्वास की दीवारे मजबूत नहीं होती। सरकारें काम करें तो जनता उसे ही चुनेगी। खास यह है कि मुख्यमंत्री योगी आदिनाथ ऐसे मुख्यमंत्री होंगे, जिन्होंने सीएम रहते हुए विधानसभा का चुनाव लड़ा और रिकार्ड मतों जीत दर्ज की। मतलब साफ है जनता ने सिर्फ और सिर्फ मोदी योगी के काम पर वोट दी है। यह काम का ही कमाल है कि मऊ से कैराना तक एक दशक से भी अधिक समय से अपने-अपने क्षेत्रों में डेरा जमाएं बाहुबलियों के किले को भी ढहा दिया। जनता चाहती है प्रदेश में कानून का राज हो और विकास का बुलडोजर यूं ही चलता रहे।
–सुरेश गांधी
फिलहाल, सात चरणों में हुए यूपी विधानसभा चुनाव के बाद मतों की गिनती में भाजपा प्रचंड बहुमत की सरकार बनायेंगी। उससे पहले सरकार बनाने के लिए दलों के स्वार्थ आड़े आने की वजह से जनता प्रदेश का बुरा हाल देखी चुकी थी। योगी के पांच साल के कार्यकाल में जनता जान गयी कि इरादे मजबूत हो तो योजनाओं का लाभ बगैर विचौलियों के शत-प्रतिशत उसे मिल सकता है। ये योगी की दृढ़ इच्छा संकल्प शक्ति का ही परिणाम यह है कि बिना किसी भेदभाव जनता के हिस्से की योजनाएं बिना विचौलियों के उन तक पहुंचता रहा। चाहे वह जरुरतमंदों को फ्री राशन बांटने का हो या कानून व्यवस्था और सुरक्षा हो या माफियाओं के खिलाफ बुलडोजर अभियान हो या पांच साल में कहीं भी दंगा न होने का ये ऐसा मुद्दा रहा, जो लोगों के दिलों को छू गया और बदले में बीजेपी के पक्ष में वोट किया। बता दें, बीजेपी ने कोरोना महामारी के दौरान गरीबों को फ्री राशन बांटने का काम किया। चुनाव प्रचार के दौरान कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी फ्री राशन बांटने के मुद्दे पर बोलते दिखे। जिसका लोगों पर शायद सीधा असर पड़ा। जनधन खाता धारक महिलाओं को तीन महीने 500 रुपये के हिसाब से पैसे भेजे गए जिसका भी इस चुनाव पर असर दिखा। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत लाभार्थी किसानों के खाते में हर चार महीने पर 2 हजार रुपये यानी सालाना 6 हजार रुपये केंद्र सरकार भेज रही है। प्रधामंत्री आवास योजना के तहत गरीबों को मकान बनाने के लिए 2.5 लाख रुपये आवंटित किए गए। ऐसे परिवारों की तादाद भी काफी संख्या में है जिन्होने पीएम आवास योजना का लाभ उठाया। आम लोगों और गरीबों को डायरेक्ट बेनिफिट मिलने से बीजेपी के वोटों में विपक्षी पार्टियां सेंध लगाने में नाकाम रहीं। योगी सरकार में लैंड माफिया समेत कई अपराधों में शामिल अपराधियों के घर पर चले बुल्डोजर को चुनावी रंग दिया गया। सीएम योगी आदित्यनाथ ने ज्यादातर रैलियों में इस बात का जिक्र किया कि गुंडो और माफियाओं के खिलाफ सरकार का एक्शन जारी रहेगा। कानून के साथ-साथ महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा भी उठाया गया। ऐसे में लोगों के मन में बीजेपी ने ये धारणा बनाने की पूरी कोशिश की प्रदेश में कानून का राज है। नतीजे इस बात का प्रमाण है कि बीजेपी को विशेषकर महिलाओं का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है।
नोएडा ‘अशुभ’ नहीं
जहां तक मिथक का सवाल है तो 1988 में वीर बहादुर सिंह नोएडा आए और उनकी कुर्सी चली गई। फिर 1989 में नारायण दत्त तिवारी भी नोएडा के सेक्टर 12 में नेहरू पार्क का उद्घाटन करने पहुंचे थे और उनकी अगुवाई में कांग्रेस ऐसी हारी की आजतक हारती ही जा रही है। बीजेपी के दिवंगत नेता कल्याण सिंह और सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव भी यह दर्द झेल चुके हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने 2007 से 2012 के अपने पांच साल के कार्यकाल में दो-दो बार इस मिथक को तोड़ने का प्रयास जरूर किया था, लेकिन जब 2012 में उनकी कुर्सी चली गई तो यह अंधविश्वास एक तरह से पक्का हो गया था। लेकन, योगी आदित्यनाथ ने यह साबित कर दिया है कि उन लोगों के साथ महज ऐसा संयोग की वजह से हुआ था, नोएडा किसी भी दृष्टि से मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए ’अशुभ’ नहीं है। अखिलेश यादव पांच साल सीएम रहे, लेकिन नोएडा आने की हिम्मत नहीं जुटाई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को भी सीएम बनने का मौका मिला था, लेकिन वह भी नोएडा से डरे-डरे रहकर ही सीएम पद से चले गए। लेकिन, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कभी भी इन कही-सुनी कहानियों पर गौर नहीं किया और जब भी जरूरत पड़ी उन्होंने ताल ठोककर नोएडा का दौरा किया। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस अंधविश्वास को तोड़ने के लिए गोरखपुर मठ के महंत मुख्यमंत्री योगी की जमकर तारीफ की थी।
2007 के बाद कोई विधायक बनेगा सीएम
तकरीबन 37 साल बाद योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री के रूप में वापसी हुई हैं। यूपी में 37 साल में कोई सीएम दोबारा नहीं बना। मुख्यमंत्री योगी आदिनाथ 15 साल बाद ऐसे मुख्यमंत्री होंगे, जिन्होंने सीएम रहते हुए विधानसभा का चुनाव लड़ा है। जबकि, इसके बाद ऐसा ट्रेंड बन गया था कि मुख्यमंत्री विधान परिषद के जरिए विधानमंडल का सदस्य बनते आए थे। खुद सीएम योगी भी अपने मौजूदा कार्यकाल में विधान परिषद के ही सदस्य रहे हैं। उनसे पहले अखिलेश यादव और मायावती ने भी विधानसभा की जगह विधान परिषद की सदस्यता चुनी थी। 1985 के बाद यूपी में कोई भी मुख्यमंत्री विधानसभा चुनाव जीत दिलाकर दोबारा सरकार नहीं बना पाया था। लेकिन, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस मिथक को भी तोड़ने में कामयाब रहे। इससे पहले यूपी और उत्तराखंड दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री रह चुके दिग्गज कांग्रेसी नारायण दत्त तिवारी को ही यह मौका मिला था। लेकिन, योगी आदित्यनाथ सही मायने में बीजेपी के लिए उपयोगी’ साबित हुए हैं, जो पीएम मोदी उनके लिए कह चुके हैं। योगी आदित्यनाथ भाजपा के पहले मुख्यमंत्री होगें, जो 19 मार्च को पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करने जा रहे हैं. इसके अलावा वह तीसरे मुख्यमंत्री भी बनेंगे, जिन्होंने एमएलसी रहते हुए अपना कार्यकाल पूरा किया. इससे पहले अखिलेश यादव ने 15 मार्च 2012 से 19 मार्च 2017 तक समाजवादी पार्टी सरकार तथा बहुजन समाज पार्टी की मायावती ने 13 मई 2007 से 15 मार्च 2012 तक कार्य किया था.
दुबारा कोई नहीं बना सीएम
यूपी की राजनीति का ये भी बड़ा रोचक पहलू है कि किसी पार्टी की सत्ता रिपीट हुई तो उसने अपने पिछले सीएम को मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं दी। 1950 से 1967 तक राज्य में कांग्रेस की सरकार रही, लेकिन इस बीच में गोविंद वल्लभ पंत से शुरू हुई कुर्सी की कहानी चंद्रभान गुप्ता तक पहुंचते-पहुंचते बीच में पार्टी ने तीन सीएम और बदल दिए थे. यानि 1950 से 1967 तक कांग्रेस की सरकार तो रही, लेकिन हर बार मुख्यमंत्री बदलते रहे. इसके बाद 1980 से 1989 तक फिर से कांग्रेस की सरकार रही लेकिन इन 9 सालों में कांग्रेस ने 5 मुख्यमंत्री बना डाले. बता दें, गोविंद बल्लभ पंत के बाद, 1954 से 1960 तक संपूर्णानंद मुख्यमंत्री रहे। 1960 से लेकर 1963 तक मुख्यमंत्री के पद पर पर चंद्रभानु गुप्ता रहे। 1963 में यह जिम्मेदारी कांग्रेस की सुचेता कृपलानी के कंधों पर आई। वह राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं और 1967 तक इस पद पर बनी रहीं थीं। इसके बाद 19 दिनों के लिए फिर यह जिम्मेदारी चंद्रभानु गुप्ता के कंधों पर आ गई। यहां चौधरी चरण की एंट्री हुई और वह 1967 से लेकर 1968 तक मुख्यमंत्री रहे। यह पहला मौका था जब राज्य की जिम्मेदारी नॉन कांग्रेसी के कंधों पर गई थी। 1968 के बाद एक साल और एक दिन के लिए राज्य में मुख्यमंत्री शासन लागू रहा। 1969 के चुनावों में फिर कांग्रेस की वापसी हुई और मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके चंद्रभानु गुप्ता के कंधों पर दी गई। इस तरह वह पहले नेता बने, जो तीन बार यूपी का मुख्यमंत्री बना हो। 1970 में फिर चौधरी चरण सिंह मुख्यमंत्री बने, इस बार उनकी सरकार 225 दिनों तक चली। कांग्रेस के त्रिभुवन नारायण सिंह 1970 से लेकर 1971 तक, कमलापति त्रिपाठी 1971 से लेकर 1973 तक मुख्यमंत्री रहे। 1973 में राज्य में तीसरी बार राष्ट्रपति शासन लागू हुआ जोकि 13 जून 1973 से लेकर 8 नवंबर 1973 तक लागू रहा। साल 1973 से 1975 तक इस पद पर हेमवती नंदन बहुगुणा आए और फिर 1975 में इमरजेंसी काल आया। 30 नवंबर 1975 से लेकर 21 जनवरी 1976 तक राष्ट्रपति शासन लागू रहा। 1976 में यह जिम्मेदारी नारायण दत्त तिवारी को दी गई लेकिन एक साल और 99 दिनों के बाद 30 अप्रैल 1977 को फिर से राष्ट्रपति शासन लगा। इसके बाद 1977 से लेकर 1979 तक जनता पार्टी के रामनरेश यादव और 1979 से लेकर 1980 तक बाबू बनारसी दास मुख्यमंत्री पद पर बैठे। 17 फरवरी 1980 से 9 जून 1980 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा।
1980 में यह जिम्मेदारी, वीपी सिंह के कंधों पर आई, 1982 तक वह इस पद बने बने रहे लेकिन 1982 में श्रीपति मिश्रा को सूबे का सीएम बना दिया गया। नारायण दत्त तिवारी इसके बाद दो बार सीएम बने, 1984 से 85 तक और फिर 1988 से 89 तक। बीच के समय में वीर बहादुर सिंह मुख्यमंत्री रहे। 1989 में फिर जनता दल सत्ता में आई और मुलायम सिंह यादव सीएम बने। 1991 में बीजेपी सत्ता में आई और 6 दिसंबर 1992 तक कल्याण सिंह राज्य के मुख्यमंत्री रहे। यहां से राज्य की राजनीति में परिवर्तन आ गया। एक साल के राष्ट्रपति शासन के बाद 1993 में मुलायम सिंह यादव, 1995 और 1997 में मायावती मुख्यमंत्री बनीं। इसके बाद कल्याण सिंह की वापसी हुई और सितंबर 1997 से लेकर नवंबर 1999 तक वह राज्य के मुख्यमंत्री रहे। उलटफेर के चलते राम प्रकाश गुप्ता को सीएम बना दिया गया वह 1999 से लेकर 2000 तक राज्य के मुखिया रहे। फिर राजनाथ सिंह को 2000 में सीएम की जिम्मेदारी दी गई और मार्च 2002 में उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया। इसके बाद मई 2002 में मायावती, 2003 में फिर मुलायम सिंह यादव, 2007 में मायावती आईं। जिन्होंने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। इसके बाद 2012 में अखिलेश यादव सीएम बने और 2017 में सत्ता की कमान गोरखपुर के पूर्व सांसद और बीजेपी के फायर ब्रांड नेता कहे जाने वाले योगी आदित्यनाथ के हाथ आई। अब जब एक बार फिर यूपी में योगी आदत्यिनाथ की दोबारा मुख्यमंत्री के तौर पर ताजपोशी की संभावनाएं भी प्रबल हो गई हैं।
पहली बार पांच साल तक सत्ता चलाई
बीजेपी ने यूपी में 1997 से 2002 तक पहली बार पांच साल तक यूपी की सत्ता चलाई, लेकिन इन पांच सालों में बीजेपी ने भी 3 मुख्यमंत्री बदले. जब बीजेपी ने 21 सितंबर 1997 को सरकार बनाई तो कल्याण सिंह सीएम बने, फिर दो साल बाद सीएम बदलकर राम प्रकाश गुप्ता को मुख्यमंत्री की कुर्सी दे दी गई. इसके 351 दिन बाद राम प्रकाश गुप्ता को हटाकर बीजेपी ने राजनाथ सिंह को सीएम बना दिया. इसी तरह 3 जून 1995 को मायावती पहली बार जब सीएम बनीं तो उनकी सरकार 18 अक्टूबर 1995 तक चली और वो 137 दिन तक मुख्यमंत्री रहीं. लेकिन इसके बाद उनकी सरकार गिर गई और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग गया. इसके बाद 1997 को राष्ट्रपति शासन हटा और मायावती फिर से सीएम बनीं. लेकिन इस बार भी उनकी सरकार 184 दिन ही चल सकी. फिर मायावती दूसरी बार सीएम जरूर बनीं लेकिन बीच में 1 साल से ज्यादा तक प्रदेश में राष्ट्रपति शासन रहा और मायावती ने अपना कार्यकाल पूरा भी नहीं किया था.
चुनाव में बुलडोजर की रही चर्चा
चुनाव में इस बार बुलडोजर की चर्चा खूब रही. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपराधियों के मकानों पर जमकर बुलडोजर चलवाए थे. जिसका विपक्ष ने जमकर विरोध किया था. लेकिन, अब जब यूपी विधानसभा चुनाव के परिणाम सबके सामने हैं तो लोग कहने लगे हैं कि यूपी में जमकर बुलडोजर बाबा का जादू चला है. चुनाव में पक्ष-विपक्ष के नेताओं की खूब चर्चा हुई, रैलियां भी खूब हुईं। लेकिन महफिल तो बुलडोजर ही लूट रहा था। चर्चा इतनी तेज हुई कि चुनावी सभाओं में बुलडोजरों की प्रदर्शनी लगने लगी। वैसे भी हमारे देश में बुलडोजर भीड़ जुटाऊ हथकंडा है। कहीं भी बुलडोजर चले, रुककर देखने वालों की कमी नहीं होती। लेकिन किसी को ये अनुमान नहीं था कि चुनाव में बुलडोजर एक अहम किरदार बन जाएगा। जैसे-जैसे चुनावी रैलियां वर्चुअल से फिजिकल हुईं. बुलडोजर भी रंग दिखाने लगा. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ’बुलडोजर बाबा’ कहलाने लगे. उन्होंने भी इस पर ऐतराज नहीं जताया, और इसे ’सुशासन’ की उपाधि मानकर भुनाने लगे. योगी की जनसभा में बुलडोजर लोगोंके आकर्षण का केंद्र बन गया. गेरुआ रंग के बुलडोजर पर भीड़ की निगाहें टिक गईं. उन्होंने भी बुलडोजर का जिक्र छेड़ दिया. कहने लगे बुलडोजर हाइवे भी बनाता है, बाढ़ रोकने का काम भी करता है. साथ ही माफियाओं से अवैध कब्जे को भी मुक्त कराता है।
खूब चला बुलडोजर
इस चुनाव में बुलडोजर की भी अग्निपरीक्षा थी. लेकिन अब बीजेपी की बुलडोजर नीति को जनता का साथ मिल गया है. क्योंकि यूपी में दोबारायोगी सत्ता पर काबिज होने जा रहे हैं। बीजेपी का कहना है कि चुनावों में कानून-व्यवस्था एक बड़ा मुद्दा रहा. पहले की सरकारों में जनता व्यापारी और अधिकारी गुंडागर्दी से त्रस्त थे. लेकिन योगी राज में माफियाओं और गुंडों की कमर तोड़ दी गई बता दें, 2017 में सत्ता पाने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने माफियाओं की अवैध संपत्ति पर बुलडोजर नीति का ऐलान किया था. मुख्तार अंसारी से लेकर अतीक अहमद और विजय मिश्रा की संपत्तियों पर सरकार ने बुलडोजर चलाए, सरकारी जमीन पर किए कब्जों को ढहा दिया गया था. एक अनुमान के मुताबिक, बीते 5 सालों में सरकार ने मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, विजय मिश्रा, कुंटू सिंह जैसे तमाम माफियाओं की लगभग दो हजार करोड़ की अवैध संपत्ति पर कब्जे हटा दिलोगों को उम्मीद है कि योगी आदित्यनाथ अपराधियों के मकानों पर बुलडोजर चलवाएंगे. हालांकि बाबा का बुलडोजर क्या करता है यह तो आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा.