सरकार के एक फैसले का कमाल, पढ़ी-लिखी लड़कियों को बहू बनाने की मची होड़
फरीदाबाद. हरियाणा पंचायत चुनाव में शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता लागू होने से महिलाओं को भी इसका फायदा पहुंचने लगा है. दरअसल, पंचायत चुनाव में ज्यादातर सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होती हैं, ऐसे में हर कोई चाह रहा है कि उसकी बहू पढ़ी-लिखी आए. गांव की सरकार में दबदबा बनाए रखने के लिए लोग दहेज देकर भी पढ़ी-लिखी बहू लाने को तैयार हैं.
मेवात जिले में पिछले कुछ दिनों में कई पढ़ी-लिखी लड़कियों की शादी बिना दहेज के हो गई. इन दिनों नूंह खंड के हुसैनपुर (सतपुतियाका) में हुई बिन दहेज की शादी चर्चा में है. इस शादी में दुल्हा हुसैनपुर गांव का है और वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है. वहीं बहू राजस्थान के अलवर जिले के चौमा गांव की है और वह बीएड की पढ़ाई कर रही है.
मालूम हो कि लड़कियों के शिक्षा के मामले में मेवात का स्तर हरियाणा में सबसे खराब है. महिलाओं की साक्षरता दर तो शर्मसार करने वाली है. महज 36 प्रतिशत महिलाएं शिक्षित हैं, उनमें भी पांचवीं तक ज्यादा हैं.
जिले में कुल 443 गांव हैं तो करीब 317 पंचायत हैं. शिक्षित बहू आने से न केवल सरपंच बनने की संभावना प्रबल हो रही है. साथ ही लड़कियों की शिक्षा पर भी इसका असर देखने को मिलेगा.
जिन गांवों में सरपंच का पद महिलाओं के लिए आरक्षित है और दावेदारों के यहां पढ़ी -लिखी महिलाएं हैं ,वो रातोंरात अपने बेटे के लिए शिक्षित बहू की तलाश में हैं.
बताना जरूरी है कि मेवात जिले में दहेज का चलन सबसे अधिक है. दसवीं पास होते ही नहीं बल्कि जमीन अच्छी होने से लेकर पिता की नौकरी पर भी यहां लड़कियों के हाथ पीले करने पर कम से कम दहेज़ में गाड़ी की डिमांड की जाती है.
बावजूद इसके दहेज के दानव न केवल बहुओं की जान ले रहे हैं बल्कि महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान किया जाता है.
मेवात के थानों तथा कोर्ट में सैकड़ों केस दहेज के चल रहे हैं. भले ही कुछ लोगों को सरकार के इस कदम से गहरा झटका लगा हो, लेकिन अब समाज में पढ़ी-लिखी बेटियों का सम्मान और डिमांड बिना दहेज के भी बढ़ने लगी है.
हुसैन पर गांव का दूल्हा अब्बास और चौमा गांव की फारूना विवाह बंधन में बंधने के बावजूद अपने -अपने गांव में पढाई में लगे हैं. पंचायत चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद ससुराल वाले अपनी बहू को सरपंच बनाने के चक्कर में जल्द ही लेकर आने वाले हैं.
कुल मिलाकर जो मेवाती महिलाएं घूंघट में रहकर सरपंची कराती थी और खासकर पुरुष प्रधान उनके पद का नाजायज लाभ उठाते थे. कम से कम पढ़ी -लिखी बहू के चलते ऐसा नहीं होगा. फैसले से कही ख़ुशी तो कही निराशा से इंकार नहीं किया जा सकता.