देहरादून: उत्तराखंड सरकार ने गृहविहीन (होमलेस) बच्चों और मजदूरों के बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए मोबाइल स्कूल खोलने का निर्णय किया है । बाल अधिकारिकता और बाल हकदारी के क्षेत्र में धामी सरकार की यह पहल काबिले तारीफ़ है। जहां एक तरफ सरकारें समृद्ध परिवारों के बच्चों के लिए क्वालिटी एजुकेशन की सुविधा देने के लिए प्रयास में लगी रहती हैं लेकिन अनाथ, मजदूर और गरीब बच्चों की शिक्षा के विषय में कम ही सोचा जाता है लेकिन उत्तराखंड सरकार ने इस मामले में अपनी मंशा साफ कर दी है कि बालक किसी भी वर्ग, जाति, समुदाय, क्षेत्र का हो उसका विकास सुनिश्चित होना उत्तराखंड के विकास के सुनिश्चित होने के बराबर है। सबसे प्रमुख बात तो यह है कि उत्तराखंड सरकार ने ट्रैफिक सिग्नल पर सामान बेचने वाले बच्चों और अपनी आजीविका के लिए भीख मांगने वाले बच्चों को भी ” मोबाइल स्कूल ” के जरिये शिक्षा देने का अहम फैसला लिया है।
इसके लिए पहले चरण में कई एजेंसियों जैसे पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट, शिक्षा और श्रम विभाग के जरिये ऐसे बच्चों की पहचान की जाएगी। गौरतलब है कि हाल ही में प्रदेश सचिवालय में श्रम विभाग के सचिव पद की जिम्मेदारी सीनियर आईएएस ऑफिसर एस मीनाक्षीसुन्दरम को दी गई है और राज्य में बाल श्रम की घटनाओं को रोकने के नीतिगत स्तर पर उनकी भूमिका अति महत्वपूर्ण हो जाती है।
उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत का कहना है कि एक बार ऐसे बच्चों की पहचान कर लेने के बाद जुलाई, 2022 से मोबाइल स्कूल्स के जरिये ऐसे बच्चों को शिक्षा देने का काम शुरू हो जाएगा और इस क्रम में यह नही देखा जाएगा कि बच्चे का ओरिजिन स्टेट कौन सा है । शिक्षक इन मोबाइल स्कूल्स पर जाकर कक्षाएं ले सकेंगे। प्रदेश में निवास करने वाले हर चिन्हित बच्चे को ये सुविधा मिलेगी। इस पहल के तहत उत्तराखंड सरकार घुमंतू बच्चों ( नोमेडिक किड्स ) पर भी ध्यान देकर उन्हें शिक्षा प्रदान करेगी। उत्तराखंड सरकार इस काम में बाल अधिकार संरक्षण के क्षेत्र से जुड़े महत्वपूर्ण गैर सरकारी संगठनों और सरकारी अभिकरणों को जोड़ा जाएगा।