उत्तराखंड

देवभूमि के सिद्धपीठ सुरकंडा देवी मंदिर के लिए रोपवे सेवा हुई शुरू

सिद्धपीठ मां सुरकंडा देवी मंदिर के लिए रोपवे सेवा शुरू कर दी गई है। अब यहां तीर्थयात्रियों और भक्तों को डेढ़ किमी चढ़ाई नहीं चढ़नी पड़ेगी। गौरतलब है कि रोपवे नवरात्र से पहले बनकर तैयार हो गया था, लेकिन विभागीय कार्रवाई में देरी के कारण यह शुरू नहीं हो पाया था। अब इसे शुरू कर दिया गया है और पहले दिन  लकरीब 240 श्रद्धालुओं ने रोपवे से सफर कर मंदिर में दर्शन किए हैं। सुरकंडा देवी मंदिर के लिए वर्ष 2015-16 में पीपीपी मोड में रोपवे बनाने की स्वीकृति प्रदान की गई थी। 2017 में पार्टनरशिप कंपनी ने रोपवे निर्माण का कार्य शुरू किया। 32 करोड़ रुपये की लागत से बनाए गए रोपवे में 16 डिब्बे लगाए गए हैं। एक डिब्बे में छह लोग सफर कर सकते हैं। कद्दूखाल से मंदिर तक डेढ़ किमी की पैदल चढ़ाई से लोगों को अब राहत मिल जाएगी। 523 मीटर लंबे रोपवे से लोग महज पांच से दस मिनट में मंदिर पहुंच जाएंगे।

सुरकंडा मंदिर के बारे में :

सुरकंडा पहाड़ी टिहरी जनपद के पश्चिमी भाग में 2750 मीटर की ऊंचाई पर सुरकंडा मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मसूरी चंबा मोटर मार्ग पर पर्यटन स्थल धनोल्टी से 8 किमी. की दूरी पर तथा नरेन्द्र नगर से लगभग 61 किमी. की दूरी पर स्थित है। जिला मुख्यालय नई टिहरी से 41 किमी. की दूरी पर चंबा मसूरी रोड पर कद्दुखाल नामक स्थान है जहाँ से लगभग 2.5 किमी. की पैदल चढाई कर सुरकंडा माता के मंदिर तक पहुंचा जाता है। सुरकंडा माता का मंदिर घने जंगल से घिरा हुआ है। प्रत्येक वर्ष मई और जून के बीच अधिसंख्य तीर्थ यात्रियों के बीच यहाँ गंगा दशहरा का उत्सव हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है।

सुरकंडा मंदिर का इतिहास :

प्राचीन कथाओं के अनुसार माँ सती भगवान शिव की पत्नी एवं पौराणिक राजा दक्ष की पुत्री थी । दक्ष को अपनी पुत्री के पति के रूप में शिव को स्वीकार करना पसंद नहीं था। राजा दक्ष द्वारा सभी राजाओं के लिए आयोजित वैदिक यज्ञ में भगवान शिव के लिए की गई अपमान जनक टिप्पणी को सुनकर सती ने अपने आप को यज्ञ की ज्वाला में फेंक दिया। भगवान शिव को जब पत्नी की मृत्यु का समाचार मिला तो वो अत्यंत दुखी और नाराज हो गए और सती माता के पार्थिव शरीर को कंधे पर रख हिमालय की और निकल गए।

भगवान शिव के गुस्से को एवं दुःख को समाप्त करने के लिए एवं सृष्टी को भगवान शिव के तांडव से बचाने के लिए विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र को सती के नश्वर शरीर को धीरे धीरे काटने को भेजा। सती के शरीर के 51 भाग जहाँ जहाँ गिरे वहां पवित्र शक्ति पीठ की स्थापना हुयी और जिस स्थान पर माता सती का सिर गिरा वह सिरकंडा कहलाया जो कालान्तर में सुरकंडा नाम से प्रसिद्ध हो गया।

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