अक्षय तृतीया पर जागेगा सोया भाग
अगर साल का एक दिन ऐसा हो, जिसमें किया गया कोई भी शुभ काम आपको जन्म जन्मांतर के लिए पुण्य दे जाए, जिस दिन पूजा-पाठ, स्नान—दान करने का फल आपको शुभता के साथ वर्षों तक मिलता रहे तो शायद ही कोई ऐसा हो जो इस दिन का पूरा लाभ न लेना चाहे। वह दिन है अक्षय तृतीया। अक्षय तृतीया यानी वह दिन जिस दिन किए गए पुण्य का कभी क्षय नहीं होता। साथ ही भगवान परशुराम की जयंती भी हर्षोल्लास से मनाई जाएंगी। अक्षय तृतीया पर सोने के आभूषण खरीदने के खास परंपरा होती है। मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन अगर व्यक्ति सोना खरीदे उसके जीवन में सदैव माता लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहता है। इसके साथ ही व्यक्ति का जीवन सुख और वैभव के साथ बीतता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन से त्रेता युग का आरंभ हुआ था, भगवान परशुराम का अवतार भी इसी दिन हुआ। अक्षय तृतीया के दिन ही बद्रीनाथ धाम के कपाट खोले जाते हैं, इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है।
–सुरेश गांधी
जी हां, ऐसा शुभ दिन वैशाख शुक्ल मंगलवार, 3 मई को है। खास यह है कि इस बार अक्षय तृतीया के दिन ग्रहों का विशेष योग है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन मंगल रोहिणी नक्षत्र के शोभन योग, तैतिल करण और वृषभ राशि के चंद्रमा योग है। या यूं कहे इस दिन मंगलवार और रोहिणी नक्षत्र होने से मंगल रोहिणी योग का निर्माण होने जा रहा है। शोभन योग इसे ज्यादा खास बना रहा है। अक्षय तृतीया पर चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ और शुक्र अपनी उच्च राशि मीन में रहेंगे। वहीं शनि स्वराशि कुंभ और बृहस्पति स्वराशि मीन में विराजमान रहेंगे। भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चार ग्रहों का अनुकूल स्थिति में होना अपने आप में बहुत ही खास है। ये संयोग 30 साल बाद बना है और 50 साल बाद ग्रहों की विशेष स्थिति भी बनी है। ज्योतिषियों का कहना है कि इस संयोग और ग्रहों की विशेष स्थिति में अक्षय तृतीया पर दान करने से पुण्य की प्राप्ति होगी। इस दिन जल से भरे कलश पर फल रखकर दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन अबूझ मुहूर्त में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य फलदायी होगा। अक्षय तृतीया को अखा तीज के नाम से भी जाना जाता है। अक्षय का अर्थ होता है ’जिसका कभी भी क्षय न हो यानी कभी नाश न हो’ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस दिन किया गया शुभ कार्य, दान-पुण्य, स्नान,पूजा और तप करने से अक्षय फल की प्राप्ति होता है। अक्षय तृतीया पर सोने के आभूषण खरीदने की खास परंपरा होती है। मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन अगर व्यक्ति सोना खरीदे तो उससे जीवन में सदैव माता लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहता है। साथ ही व्यक्ति का जीवन सुख और वैभव के साथ बीतता है।
जरूर करें ये उपाय
अक्षय तृतीया को कई जगहों पर आखा तीज भी कहा जाता है। आखा तीज पर दो कलश का दान महत्वपूर्ण होता है। इसमें एक कलश पितरों का और दूसरा कलश भगवान विष्णु का माना गया है। पितरों वाले कलश को जल से भरकर काले तिल, चंदन और सफेद फूल डालें। वहीं, भगवान विष्णु वाले कलश में जलभरकर सफेद जौ पीला फूल, चंदन और पंचामृत डालकर उस पर फल रखें। इससे पितृ और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, साथ ही परिवार में सुख-समृद्धि भी बनी रहती है।
- ग्यारह बार श्रीसूक्त का पाठ करें।
- ॐ श्रीम श्रीये नमः इस मंत्र का 5 से 11 माला जाप करें।
- 108 मखानों की माला बनाकर मां लक्ष्मी को अर्पित करें।
छाएगा सामूहिक विवाह का उल्लास
इस अबूझ मुहूर्त में सामूहिक विवाह का उल्लास छाएगा। पिछले दो साल से कोरोना संक्रमण के चलते अक्षय तृतीया पर सामूहिक विवाह के आयोजन नहीं हुए थे। इस बार दर्जी, महार, कोरी, पाल सहित कई समाजों के सामूहिक विवाह के आयोजन होंगे। इसमें जल बचाने के साथ कई समाजिक सरोकार का संकल्प दिलाकर गृहस्थी की सामग्री भी उपहार में दी जाएगी। स्वयंसिद्ध मुहूर्त पर हजारों निजी वैवाहिक आयोजन होंगे। कई होटल व लॉन संचालकों का कहना है कि इस अबूझ मुहूर्त पर दो साल बाद एक बार फिर अक्षय तृतीया पर वैवाहिक आयोजन का उल्लास नजर आ रहा है।
जानें सोना खरीदने का शुभ मुहूर्त
अक्षय तृतीया तिथि आरंभ- 3 मई सुबह 5 बजकर 19 मिनट पर है जबकि समापन- 4 मई सुबह 7 बजकर 33 मिनट तक है। रोहिणी नक्षत्र- 3 मई सुबह 12 बजकर 34 मिनट से शुरू होकर 4 मई सुबह 3 बजकर 18 मिनट तक होगा। अक्षय तृतीया पर सोना खरीदना शुभ माना जाता है। इस साल सोना खरीदने का शुभ मुहूर्त सुबह 05ः18 बजे से सुबह 06ः05 बजे के बीच है जबकि पूजा मुहूर्त सुबह 06ः05 बजे से दोपहर 12ः37 बजे तक है। अक्षय तृतीया को नया व्यवसाय शुरू करने या परिवार में समृद्धि और भाग्य लाने वाली कोई चीज खरीदने के लिए वर्ष का सबसे अच्छा दिन माना जाता है। अधिकांश हिंदू घरों में, परिवार में इस दिन सौभाग्य लाने के प्रतीक के रूप में सोना, चांदी या अन्य कीमती सामान खरीदा जाता है। अक्षय तृतीया अनंत समृद्धि, खुशी, सफलता और आशा का तीसरा दिन है। इस विशेष दिन पर, पूरे भारत में धन और समृद्धि की देवी, देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। देश के कुछ हिस्सों में भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है। भक्त इस दिन लक्ष्मी नारायण पूजा करते हैं, इसलिए आप अक्षय तृतीया का व्रत भी रख सकते हैं। इस दिन भगवान विष्णु को चंदन का लेप और पुष्प अर्पित करें।
भक्तों द्वारा देवी लक्ष्मी और भगवान कुबेर की भी पूजा की जाती है। देवताओं को दूध, दाल, सोना, गेहूं आदि चढ़ाया जाता है। इस दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। कुछ स्थानों पर, सुदामा और कृष्ण की कहानी के अनुसार देवताओं को प्रसाद के रूप में पोहा भी चढ़ाया जाता है। गायों को घास खिलाना और जरूरतमंदों को चीजें दान करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन आप किसी भी समय में विवाह, सगाई कर सकते हैं और सोना, चांदी, आभूषण, मकान, वाहन या अन्य प्रॉपर्टी की खरीदारी कर सकते हैं। कहा जाता है कि इस दिन जल-पात्र का दान: जैसे गिलास, घड़ा, गाय की सेवा, जल में गुड़ मिलाकर गाय को पिलाना या रोटी में गुड़ लपेटकर खिलाना, भगवान विष्णु के चरणों में जौ अर्पित करना चाहिए, अन्न अर्थात चावल, आटा और दाल आदि के दान से लोगों की बंद किस्मत के द्वार खुल जाते हैं, उन्हें धन दौलत, वैभव और मान-सम्मान प्राप्त होता है।
राशि अनुसार खरीदारी
मेषः अक्षय तृतीया के अवसर पर मेष राशि के जातकों को लाल मसूर की दाल खरीदनी चाहिए, यह आपके पुण्य फल में वृद्धि करने वाला होगा।
वृषः वृष राशि के जातकों को अक्षय तृतीया वाले दिन बाजरा या चावल खरीदना चाहिए। इससे आपके जीवन में सुख एवं समृद्धि आएगी।
मिथुनः अक्षय तृतीया पर मिथुन राशि के लोगों को कपड़ा, हरा मूंग या फिर धनिया खरीदना चाहिए. यह आपके लिए शुभता प्रदान करने वाला होगा।
कर्कः आपकी राशि का स्वामी ग्रह चंद्रमा है, इसलिए अक्षय तृतीया पर आपकी राशि के लोगों को चावल या दूध खरीदना चाहिए, यह आपकी उन्नति के लिए अच्छा होगा।
सिंहः सिंह राशि के स्वामी ग्रह सूर्य हैं, इस वजह से सिंह राशि वालों को अक्षय तृतीया पर तांबे के बर्तन या फिर लाल वस्त्र खरीदना चाहिए, यह तरक्की में सहायक होगा।
कन्याः अक्षय तृतीया के दिन कन्या राशि वालों को मूंग दाल खरीदना शुभ रहेगा. आपको अक्षय पुण्य की प्राप्ति होगी।
तुलाः इस राशि के लोगों को अक्षय तृतीया वाले दिन चावल या फिर शक्कर खरीदना चाहिए, यह आपके सुखमय जीवन में वृद्धि करेगा।
वृश्चिकः अक्षय तृतीया के अवसर पर आपकी राशि के जातकों को गुड़ या फिर पानी खरीदना शुभ रहेगा, आपके पुण्य में वृद्धि होगा।
धनुः आपकी राशि के स्वामी ग्रह गुरु हैं, इसलिए आपकी राशि के लोगों को पीले चावल या फिर केला खरीदना चाहिए। यह पुण्य फल में वृद्धि करने वाला होगा।
मकरः मकर के स्वामी ग्रह शनि हैं, अक्षय तृतीया के दिन आपकी राशि के लोगों को उड़द की दाल खरीदना शुभ रहेगा।
कुंभः अक्षय तृतीया पर कुंभ राशि के लोगों को काला तिल या वस्त्र खरीदना चाहिए, इस राशि के स्वामी भी शनि देव हैं।
मीनः इस राशि के स्वामी भी गुरु हैं, इस राशि के जातकों को चने की दाल या फिर हल्दी खरीदनी चाहिए. यह आपके भाग्य में वृद्धि करने वाला होगा।
मिलता है अक्षय फल
मान्यता है कि अक्षय तृतीय पर किया गया स्नान, दान, जप, हवन आदि करने पर इसका अक्षय फल मिलता है। इस दिन अपने पूर्वजों की याद में ठंडे जल से भरे मटके प्याऊ में रखवाने और शीतल चीजों के दान का विशेष महत्व बताया गया है। आखातीज के दिन ही हिंदुओं के पवित्र चारधाम तीर्थयात्रा के बद्रीनाथ और केदारनाथ के कपाट भी खुलेंगे। माना जाता है कि इस दिन ही सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ हुआ था। इस दिन भगवान परशुराम का अवतरण भी हुआ था। इस दिन भगवान गणेशजी एवं माता लक्ष्मी के पूजन का भी विधान है। कुछ लोग तो इस दिन महालक्ष्मी मंदिर में जाकर धन प्राप्ति की कामना से चारों दिशाओं में सिक्के उछालने की परंपरा भी निभाते हैं। माना जाता है कि कन्या दान सभी दानों में उत्तम होता है। इसलिए अक्षय तृतीय पर विवाह के विशेष आयोजन होते हैं और वर वधु का जीवन अक्षय रहता है। अक्षय तृतीय पर सोन चांदी के आभूषण खरीदने से घर में बरकत होती है। इस दिन माता लक्ष्मी की चरण पादुकाएं लाकर घर में रखना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किए जाने वाला दान- पुण्य का भी कभी क्षय नहीं होता। इस लिए सभी को इस दौरान दान- पुण्य करना चाहिए। जिसमें साधु संतों के साथ ब्राह्मणों व गरीबों को भोजन कराकर व वस्त्र दान करने के साथ गायों को हरा चारा खिलाना चाहिए। जिससे विशेष लाभ मिलता है और भगवान विष्णु की कृपा अपने भक्तों पर हमेशा बनी रहती है।
गूजेंगी शहनाइयां
अक्षय तृतीया पर तो शहर में शहनाइयां गूंजेगी ही, उसके बाद जून के महीने में भी शादी की धूम रहेगी। अक्षय तृतीया पर शहर में कई जोड़े विवाह के बंधन में बंधेंगे। इस बार मई महीने में विवाह के लिए 14 मुहूर्त हैं। गुरूवार 2 मई के बाद से इसी महीने में 6, 7, 8, 12, 14, 15, 17, 19, 21, 23, 28, 29 और 30 को विवाह के लिए शुभ मुहूर्त पड़ रहा है। वहीं जून माह में 8, 9, 10, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18, 19, 25 व 26 और जुलाई माह में 6 व 7 दो लग्न हैं।
कहीं बटती है सगुन, कहीं गुड्डे-गुड्डियों की शादी
यूपी के बुन्देलखण्ड में इसे मनाने का तरीका बिल्कुल अनोखा व अद्भूत है। अक्षय तृतीया से पूर्णिमा तक इसे उत्सव के रुप में मनाते है, जिसे सतन्जा कहा जाता है। इस दिन से कुमारी कन्याएं अपने भाई, पिता, बाबा तथा गांव-घर के लोगों को सगुन बांटती है और झूम-झूम कर गीत गाती है। जबकि बुंदेलखंड में अक्षय तृतीया पर कुंवारी कन्याएं अपने भाई, पिता तथा गांव में मौजूद घर और कुटुंब के लोगों को शगुन बांटती हैं और भक्तिमय लोकगीत गाती हैं। इस दिन मध्य प्रदेश व पंजाब में लड़कियां सात तरह के अनाजों से देवी पार्वती की पूजा कर सुयोग्य पति की कामना करती है तो मालवा- उज्जैन में नए घड़े के ऊपर खरबूजा और आम्रपल्लव रखकर लोग अपने कुल देवता या इष्टदेव का पूजन करते हैं। राजस्थान में अक्षय तृतीया के दिन वर्षा ज्ञान के लिए शकुन निकाला जाता है तथा अछी वर्षा के लिए लड़कियां शकुन गीत गाती है।
परंपरागत तरीके से होता है विवाह
छत्तीसगढ़ में इसे ‘अक्ती‘ के नाम से जाना जाता है। गांव-गांव में अक्ती पर शादियां होती हैं। अक्ती के दिन शादी करने की इतनी अधिक मान्यता है कि जिस घर में किसी युवक-युवती का ब्याह नहीं हो रहा तो भी उस घर के बच्चे अपने गुड्डा-गुड़िया का ब्याह रचाते हैं और विवाह की खुशियां मनाई जाती है। हालांकि इसे लेकर यहां के कई जिलों में भ्रांतियां भी घर कर गयी और पुतरा-पुतरी के विवाह की परंपरा निभाते हुए लोग अपने छोटे-छोटे बच्चों के भी विवाह काराने लगे, जो अब प्रशासन के लिए खत्म कराना चुनौती बन गया है। काफी हद तक पुतरा-पुतरी के विवाह पर काबू भी पा लिया गया है। और गुड्डे-गुड़ियों के विवाह कर परपंरा का निवर्हन किया जा रहा है। परंपरागत रूप से बनने वाले पुतरा-पुतरी में बांस और मिट्टी का इस्तेमाल होता है। परंपरागत परिधान से हटकर शूट-बूट और घाघरा-चोली में सजे गुड्डे-गुड़ियों की विवाह कराया जाता है। इसके लिए बाकायदा विवाह के मंडप सजाये जाते है। पास-पड़ोस के लोगों को आमंत्रित करते है। गुड्डा पक्ष द्वारा गुड्डी पक्ष वालों के घर बारात ले जायी जाती है। इससे पूर्व तेल, हल्दी की परंपरा भी वास्तविक विवाह की तरह पूरी की जाती है। गुड्डे की बारात के साथ आये लोगों को विधिवत सम्मान देने के साथ नाश्ता आदि परोसा जाता है। इसमें चुकिया, कलशी, मौर, आल्ता आदि का भी प्रयोग किया जाता है। बड़े-बुजुर्गो का कहना है कि उनके समय में बांस और मिट्टी से निर्मित पुतरा-पुतरी का चलन था। अब भी यह देखने को मिलता है, लेकिन आधुनिकता इस पर भी हावी हो गई है।
नववर्ष के रुप में मनाने की परंपरा
इससे इतर छत्तीसगढ़ में इस दिन को कृषि के नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन गांव के सभी किसान अपने-अपने घरों से धान लेकर एक जगह एकत्रित होते हैं। फिर उसे कोई एक सिद्ध व्यक्ति, जिसे बैगा कहा जाता है, साथ मिलाकर उसे मंत्रों से अभिमंत्रित करता है। फिर उसे सभी ग्रामवायिों में वितरित कर दिया जाता है। गांव वाले इसी धान को लेकर अपने-अपने खेतों में जाते हैं और उसकी बुवाई करते हैं। जिन गांवों में बैगा के द्वारा अभिमंत्रित नहीं किया जाता उन गांवों में किसान बोआई के लिए संग्रहित धान को एक टोकरी में लेकर जाता है और अपने कुल देवता सहित अन्य ग्राम्य देवताओं में चढ़ाकर बाकी धान की रोपाई अपने खेत में कर देता है।
जैन धर्म में तपस्वियों के लिये विशेष दिन
‘अक्षय तृतीया’ का पर्व जैन धर्मावलंबियों के लिए खासा महत्व रखता है। कहते है इस दिन ही जैन तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या के बाद पारायण किया था। और गन्ने के रस का पान किया था। वे जैन धर्म के ऐसे प्रथम तपस्वी थे, जिन्होंने सत्य और अहिंसा का प्रसार करने के उद्देश्य से पारिवारिक प्रेम और स्नेह का त्याग करते हुए जैन वैराग्य को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। जैन धर्म को मानने वाले इस दिन इक्षु तृतीया के नाम से भी संबोधित करते है। बता दें गन्ने को ही इक्षु नाम दिया गया है। कहते है, वर्षीतप के पूर्ण हो जाने पर जैन तीर्थ श्री शत्रुंजय पर जाकर ‘अक्षय तृतीया’ के दिन उपवास तोड़ा जाता है। यदि वर्षीतप करने वाली कोई महिला हुई तो उसे उसके भाई द्वारा पारायण कराया जाता है, जिसे पारणा नाम दिया गया है। पारणा के साथ तपस्वी को उनके पारिवारिक सदस्य, ईष्ट मित्र आदि भेंट प्रदान करते है। इस दिन सारे तपस्वी जो शत्रुंजय पर एकत्रित होते है। उनकी भव्य शोभायात्रा समारोह पूर्वक निकाली जाती है। सभी तपस्वियों को उपहार प्रदान किये जाते है जिसे प्रभावना कहा जाता है।