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अमृत काल में हमारी दृष्टि एक ऐसी न्यायिक व्यवस्था की होनी चाहिए, जिसमें आसान न्याय, त्वरित न्याय और सभी के लिए न्याय हो : प्रधानमंत्री मोदी
भोपाल: मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में आयोजित राज्यों के मुख्यमंत्री और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन में शामिल हुए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सम्मेलन का शुभारंभ कर संबोधित भी किया। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना एवं कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी सम्मेलन को संबोधित किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "हमारे देश में जहां एक ओर जुडिशियरी की भूमिका संविधान संरक्षक की है, वहीं लेजिस्लेचर नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है। मुझे विश्वास है कि संविधान की इन दो धाराओं का ये संगम, ये संतुलन देश में प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था का रोडमैप तैयार करेगा।” उन्होंने कहा कि आजादी के इन 75 सालों ने जुडिशियरी और एग्जीक्यूटिव, दोनों के ही रोल्स और रिस्पांसिबिलिटीज को निरंतर स्पष्ट किया है। उन्होंने कहा कि जहां जब भी जरूरी हुआ, देश को दिशा देने के लिए ये रिलेशन लगातार इवॉल्व हुआ है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि न्यायालयों में, और खासकर स्थानीय स्तर पर लंबित मामलों के समाधान के लिए मध्यस्थता- मेडिएशन भी एक महत्वपूर्ण जरिया है। हमारे समाज में तो मध्यस्थता के जरिए विवादों के समाधान की हजारों साल पुरानी परंपरा है। उन्होंने कहा कि आपसी सहमति और आपसी भागीदारी अपने तरीके से न्याय की एक अलग मानवीय अवधारणा है। इस सोच के साथ, प्रधानमंत्री ने कहा, सरकार ने संसद में मध्यस्थता विधेयक को एक अंब्रेला लेजिसलेशन के रूप में पेश किया है। उन्होंने कहा, “हमारी समृद्ध कानूनी विशेषज्ञता के साथ, हम मध्यस्थता द्वारा समाधान के क्षेत्र में एक विश्व गुरु बन सकते हैं। हम पूरी दुनिया के सामने एक मॉडल पेश कर सकते हैं।"
यह सम्मेलन देश के नागरिकों को शीघ्र न्याय दिलाने की दिशा में प्रयासों के प्रभावी समन्वय के लिए आयोजित किया गया। दिन भर चले सम्मेलन के दौरान, कार्यपालिका और न्यायपालिका द्वारा इस दिशा में प्रयासों के तालमेल के साझा आधार खोजने के तरीकों पर विस्तार से चर्चा की गई।
संयुक्त सम्मेलन कार्यपालिका और न्यायपालिका को एक मंच पर लाने का बहुमूल्य अवसर रहा। सम्मेलन में लोगों को सरल एवं सुविधाजनक ढंग से न्याय सुलभ कराने की रूपरेखा तैयार करने और इसके साथ ही न्याय प्रणाली के समक्ष मौजूद विभिन्न चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक कदमों पर चर्चा हुई।
सम्मेलन में ऐसी न्यायिक व्यवस्था स्थापित करने पर विस्तार से चर्चा की गई, जिसमें आसान न्याय, त्वरित न्याय और सभी के लिए न्याय हो। सम्मेलन में जुडिशियल सिस्टम में टेक्नोलॉजी की संभावनाओं पर मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से इसे और आगे बढ़ाने पर मंथन भी हुआ।
स्वतंत्र और निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करने के लिए अदालतों का एक सुरक्षित वातावरण में कार्य करना बेहद महत्वपूर्ण है विषय पर चर्चा करते हुए राज्यों के मुख्यमंत्रियों से न्यायाधीशों और अदालत परिसरों में पर्याप्त सुरक्षा सुनिश्चित करने के संबंध में भी चर्चा की गयी।
सम्मेलन में कोरोना के दौरान देश की अदालतों द्वारा कोरोना महामारी के दौरान डिजिटल माध्यम से सुनवाई कर न्यायिक प्रक्रिया को संचालित रखने की भी चर्चा हुई। बताया गया कि कोरोना वायरस महामारी ने न्याय वितरण तंत्र को बुरी तरह प्रभावित किया, लेकिन अदालतों ने डिजिटल माध्यमों के जरिए इन चुनौतियों का सामना किया। हाई कोर्ट और अधीनस्थ अदालतों ने मिलकर लगभग दो करोड़ मामलों पर डिजिटली सुनवाई की।