नई दिल्ली: विकसित देश विकासशील देशों को अलग अलग तरीकों से अपनी नीतियों के जरिए प्रभावित करते रहते हैं। कभी सुरक्षा के मुद्दों पर, तो कभी व्यापार वाणिज्य के मुद्दे पर, कभी पर्यावरण के मुद्दे पर तो कभी बौद्धिक संपदा अधिकार के मुद्दे पर। ऐसे अनगिनत क्षेत्र हैं जिनमें विकसित देश अपने राष्ट्रीय हितों को ज्यादा से ज्यादा तवज्जो देते हैं और विकासशील देशों पर दबाव डालने की कोशिश करते हैं। इन्हीं में से एक प्रमुख मुद्दा है बौद्धिक संपदा अधिकारों का मुद्दा और इस मामले में हर साल स्पेशल 301 रिपोर्ट जारी करके अमेरिका विकासशील देशों पर आरोप लगाता है कि उनके यहां बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण के लिए मजबूत कानून नहीं हैं।
दूसरे शब्दों में अमेरिका इस रिपोर्ट में यह कहता रहता है कि भारत जैसे विकासशील देशों में बौद्धिक संपदा की चोरी होने की संभावनाएं अधिक होती हैं। अब ऐसा कह देना तो आसान है लेकिन इसका किसी देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा ऐसा अमेरिका रिपोर्ट देने के पहले नहीं सोचता। यह सोचने की बात है कि अमेरिका जैसा महाशक्ति के दर्जे वाला देश अगर किसी दूसरे देश के लिए कहे कि वहां बौद्धिक संपदा अधिकार यानी पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क , इंडस्ट्रियल डिजाइन की सुरक्षा का पुख्ता प्रावधान नहीं है तो दुनिया भर की कंपनियां भारत या अन्य विकासशील देशों में कैसे निवेश करेंगे , कैसे विश्वास करेंगे कि उनका ट्रेड सीक्रेट सुरक्षित रहेगा या उनका इंडस्ट्रियल डिजाइन चोरी नहीं किया जाएगा या किसी पेटेंट का उल्लंघन नहीं किया जाएगा। औषधियों के निर्माण, डिजाइन , उनके इनग्रेडिएंट्स और खासकर जाली दवाइयों पर भी अमेरिका अपनी इस रिपोर्ट में विभिन्न देशों की स्थितियों को उजागर करता है। यह एक हद तक ठीक है कि विकासशील देशों को स्पेशल 301 रिपोर्ट से सीख लेते हुए अपने अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में आवश्यक सुधार करनी चाहिए लेकिन अमेरिका जैसे देशों को भी यह सोचना जरूरी है कि उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्थाओं की क्षमता विकास प्रक्रिया पर बार-बार चोट करने का अनावश्यक प्रयास ना करें ।
वर्ष 2022 के लिए जारी अपनी स्पेशल 301 रिपोर्ट में अमेरिका ने हाल ही में भारत, चीन, रूस समेत सात अन्य देशों को अपनी वार्षिक प्रॉयोरिटी वॉच लिस्ट में शामिल किया है। यह कदम बौद्धिक संपदा की सुरक्षा और प्रवर्तन के लिए उठाया गया है। इस लिस्ट में शामिल किए गए चार अन्य देश अर्जेंटीना, चिली, इंडोनेशिया और वेनेजुएला हैं। इस साल की लिस्ट में शामिल ये सातों देश पिछले साल की लिस्ट में भी मौजूद थे।
गौरतलब है कि प्राथमिकता निगरानी सूची में उन देशों को रखा जाता है जिनके बौद्धिक संपदा अधिकार यानी आइपीआर ढांचे में कमजोर कानून और उनके लचर क्रियान्वयन एवं प्रवर्तन के चलते बौद्धिक संपदा अधिकारों का लगातार उल्लंघन होता है। स्पेशल 301 समीक्षा प्रक्रिया का प्रमुख लक्ष्य अमेरिकी सरकार की उन देशों की पहचान करने में मदद करना है जो न तो बौद्धिक संपदा अधिकारों को प्रभावी और पर्याप्त सुरक्षा देते हैं, अपितु बौद्धिक संपदा सुरक्षा चाहने वाले अमेरिकी व्यक्तियों को विदेशी बाजार की निष्पक्ष व न्यायसंगत पहुच बनाने से भी रोकते हैं।
वर्ष 2016 में अमेरिका ने जब यह रिपोर्ट दी थी तब भारत की वाणिज्य व उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण ने बौद्धिक संपदा अधिकार पर अमेरिका की स्पेशल 301 रिपोर्ट का विरोध करते हुए इसे एकतरफा कदम बताया है। उन्होंने कहा था कि किसी भी देश को दूसरे देश की संप्रभुता में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है। भारत समय-समय पर इस रिपोर्ट के विरुद्ध अपनी प्रतिक्रिया दर्ज कराता रहा है क्योंकि भारत को लगता है कि यहां पर बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण काम हो रहा है और वर्ष 2016 में भारत सरकार ने अपनी पहली राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति भी जारी की थी। भारत सरकार का कहना है कि दुनिया भर से इतनी बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत में व्यवसाय करने की इच्छुक हैं , भारत विदेशी निवेश के सर्वोत्तम गंतव्य स्थान के रूप में बना हुआ है, उसके पीछे कुछ तो महत्वपूर्ण कारण होगा अन्यथा विभिन्न निवेशक भारत में इतनी रुचि क्यों लेते। इसलिए भारत सरकार का मत यह है कि अब जबकि वर्ष 2022 में भारत ने बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर लिए हैं, नीतियां बना ली हैं, उन्हें लागू कर लिया है तो अमेरिका जैसे देशों को भारत के संदर्भ में भ्रम फैलाने का काम नहीं करना चाहिए।
( लेखक अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं )