उत्तराखंड

उत्तराखंड का “घोस्ट विलेज” मटियाल फिर से हो रहा आबाद

विवेक ओझा

( पलायन रोकथाम के धामी सरकार के प्रयास हो रहे सफल)

देहरादून: अल्मोड़ा का बलूनी और नैनी खैरी गाँव हो , पुनाकोट गाँव हो या फिर पौड़ी का घोस्ट विलेज दलमोथा हो या पिथौरागढ़ का मटियाल गाँव हो अब उत्तराखंड के कई ऐसे गाँव जिन्हें उत्तराखंड पलायन आयोग घोस्ट विलेज मान चुका था , फिर से आबाद होने शुरू हो गए हैं। जब हम उत्तराखंड माइग्रेशन कमीशन की वर्ष 2018 की रिपोर्ट देखते हैं जिसमें बताया गया है कि वर्ष 2011 से उत्तराखंड में 734 गांव निर्जन हो गए गए यानी वहां कोई नही रहता और इन्हें भूतिया गाँव ( Ghost Villages) कहते हैं और कुछ अन्य रिकार्ड्स में तो ऐसे 1700 गांवों का जिक्र है , तब हमें पता चलता है कि धामी सरकार के लगातार प्रयासों के चलते फिर से इन निर्जन क्षेत्रों का रिहायशी इलाकों के रूप में तब्दील होना उत्तराखंड को एक नई उपलब्धि की ओर ले जाएगा।

बड़े पैमाने पर उत्तराखंड के घोस्ट विलेज कहे जाने वाले गांवों से पलायन हो चुका है और यहां की आबादी कहीं और रोजी रोटी की तलाश में शिफ्ट हो गई थी। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के मटियाल गांव की भी यही कहानी थी। इस गांव को लोगों ने भूतिया मानकर छोड़ दिया था। लेकिन वर्ष 2020 में कोविड लॉकडाउन के बाद दो युवा अपने इस गांव लौटे। मुंबई के एक रेस्तरां में काम करने वाले 34 वर्षीय विक्रम सिंह मेहता और पानीपत में ड्राइवर का काम करने वाले 35 वर्षीय दिनेश सिंह ने अपने गांव में रहने की ही ठानी। जून 2020 में जब वे गांव लौटे तो कई लोगों ने उन्हें समझाने का भरसक प्रयास किया। भूतिया गांव की भी बात कही। लेकिन, उन दोनों ने स्थिति में बदलाव लाने की ठान ली थी। जिद थी कि स्थिति को बदल देंगे। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से भूतिया गांव को फिर से ‘मटियाल गांव’ बना दिया।

यहां आपको बता दें कि उत्तराखंड पलायन आयोग ने सितंबर , 2020 में आंकड़ा जारी करते हुए कहा था कि 2020 में 3 लाख 27 हज़ार लोगों ने उत्तराखंड में रिवर्स माइग्रेशन किया , यानी पहले वो उत्तराखंड के पहाड़ गांव छोड़कर कहीं और चले गए लेकिन फिर से वापस अपने गांव में बसने आ गए। इस ट्रेंड को मजबूती मिली मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना से जिसे उत्तराखंड सरकार ने मई 2020 में लांच किया था और जिसका मकसद उत्तराखंड में वापस आने वाले प्रवासियों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना था। इस स्कीम के तहत उत्तराखंड सरकार ने तय किया था कि देवभूमि में वापस आने वाले प्रवासी उत्तराखंडियों को 15 से 25 प्रतिशत के बीच निवेश सब्सिडी दी जाएगी यदि वे नई सेवा , बिजनेस , सूक्ष्म उद्योग या कोई स्वरोजगार शुरू करना चाहते हैं।

मटियाल गांव के संदर्भ में इस योजना के लाभों का आंकलन करें तो पहले कोविड लॉकडाउन के दौरान इस गांव में लौटे दोनों युवाओं विक्रम सिंह मेहता और दिनेश सिंह के सामने एक खाली गांव था लेकिन, पानी की कमी नहीं थी। जमीन भी उपजाऊ थी। इसलिए अनाज और सब्जियों की खेती करने का फैसला इन दोनों ने लिया। इसके लिए उन्होंने मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना से 1.5 लाख रुपये का कर्ज लिया। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत स्थानीय ग्रामीणों को सब्सिडी पर 10 लाख रुपये से 25 लाख रुपये तक का ऋण दिए जाने का प्रावधान है। उन्होंने इसका लाभ लिया। खेती ने मुनाफा दिया तो अब दोनों ने गाय, बैल और बकरियां खरीदी। गांव में पशुपालन का काम शुरू कर दिया। उनकी तरक्की को देख लोगों में भूतिया गांव का भ्रम टूटने लगा है। अन्य परिवार भी अब घर वापसी की तैयारी कर रहे हैं। इसके साथ ही चंपावत जिले के स्वाला गांव को भी आबाद करने के बारे में सोचा जा रहा है।

गौरव पंत जो उत्तराखंड के बागवानी विभाग के सहायक विकास अधिकारी हैं , का इस मामले में कहना है कि ” मटियाल गांव के विक्रम मेहता और दिनेश सिंह को राज्य सरकार के एंटी-माइग्रेशन योजना के तहत सुविधा दी गई। राज्य सरकार ग्रामीण इलाकों से पलायन रोकने के लिए लगातार काम कर रही है। उन्होंने कहा कि मटियाल की पहचान एक पलायन प्रभावित गांव के रूप में की जाती है। अब कोटली में जाकर बसे तीन अन्य परिवार भी वापस मटियाल लौट आए हैं। मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना के तहत ऐसे गांव में वापस बसने वाले लोगों को सुविधा दिए जाने का प्रावधान है। इसके साथ ही उत्तराखंड में 50 फीसदी से अधिक पलायन वाले गांवों में लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं।

( लेखक दस्तक टाइम्स के उत्तराखंड संपादक हैं )

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