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ज्ञानवापी मस्जिद में मिले हिंदू देवी-देवताओं के चिह्न खोलेंगे राज

सर्वे टीम के साथ वीडियोग्राफी करने पहुंचे कैमरामैन गणेश का दावा है कि श्रृंगार गौरी सहित दीवारों परएक-दो नहीं कई हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र उकेरी गयी है। कई जगह स्वास्तिक के साथ-साथ कमल के भी निशान कैमरे में कैद किया गया है। ज्ञानवापी परिसर में स्थित कथित मस्जिद की पश्चिम दीवार के पीछे प्राचीन काल से मौजूद देवी मां श्रृंगार गौरी की छवि है। इसको लेकर हर साल विवाद होता है। साल में एक दिन चैत्र नवरात्रि की चतुर्थी तिथि को दर्शन-पूजन के लिए खुलता है, इस दावे के बाद अब सियासत भी तेज हो गयी है।

सुरेश गांधी

फिलहाल, अब ज्ञानवापी विवाद का भी प्रकरण श्रृंगार गौरी मंदिर के जरिए सामने आ रहा है। दरअसल काशी में नौ गौरी के पूजन की मान्यता है इसी कड़ी में श्रृंगार गौरी का भी पूजन किया जाता है। ज्ञानवापी परिसर स्थित मां श्रृंगार गौरी व अन्य देवी- देवताओं के विग्रहों के बारे में मौके की वस्तुस्थिति जानने के लिए अदालत द्वारा आठ अप्रैल को अधिवक्ता अजय कुमार मिश्र को एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किया गया था। इसकी रिपोर्ट 10 मई को न्यायालय में दी जानी है और उसी के तहत सर्वे किया जा रहा है। लेकिन मुस्लिम पक्ष द्वारा लगातार दुसरे दिन भी हंगामा खड़ा करने से सर्वे नहीं हो सका। लेकिन कैमरामैन गणेश ने अपने कैमरे में दिवारों पर उकेरे गए हिन्दू-देवताओं के चित्र को कैद करने के बाद दावा किया मस्जिद के दीवारों पर एक-दो नहीं कई देवी-देवताओं के चित्र व स्वास्तिक के निशान मौजूद है। ज्ञानवापी परिसर में स्थित कथित मस्जिद की पश्चिम दीवार के पीछे प्राचीन काल से मौजूद देवी मां श्रृंगार गौरी की छवि है।

बता दें कि काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। सर्वे के दूसरे दिन भी मस्जिद परिसर में पुलिस को धता बताकर घुस गए कुछ मुस्लिमों ने सर्वे का जमकर विरोध किया, जिससे काम नहीं हो पाया। सर्वे टीम का कहना है कि हरिशंकर जैन और विष्णु जैन को मस्जिद परिसर में नहीं जाने दिया गया। हिंदू पक्ष का कहना है कि मस्जिद के अंदर कई लोग मौजूद थे, जिन्होंने बैरिकेडिंग कर सर्वे टीम को रोक दिया। उधर, मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता ने कोर्ट कमिश्नर के खिलाफ याचिका दायर की़। सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर की अदालत में सुनवाई हुई। अदालत ने फैसला सुरक्षित रखते हुए सर्वे जारी रखने का आदेश दिया। जबकि मामले की अगली सुनवाई तिथि नौ मई मुकर्रर की है। उधर, सर्वे की इस कार्रवाई को एएमआईए प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कानून का उल्लंघन करने वाला बताया है। खास यह है कि बता दें, वाद में भी कुछ इसी तरह के दावे किए गए है। वर्ष 1936 में दायर एक मुकदमा के मुताबिक हिंदू धर्मावलंबी वर्षों से मां श्रृंगार गौरी और परिसर में मौजूद भगवान हनुमान, भगवान गणेश, नंदी और अन्य दृश्य व अदृश्य देवी-देवताओं की अराधना कर रहे हैं। साथ ही भगवान विश्वेश्वरनाथ के मंदिर की परिक्रमा कर रहे हैं। वाद में इतिहासकारों द्वारा औरंगजेब के कार्यकाल में मंदिर के स्वरुपों में किए गए बदलावों का भी जिक्र किया गया है। साथ ही वर्ष 1936 में मंदिर-मस्जिद प्रकरण मे सिविल जज बनारस की अदालत में दायर मुकदमे में पक्षकारों की हुई गवाही का उल्लेख किया गया है।

दरअसल, श्री काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी परिसर का विवाद कोई नया नहीं है. लगभग 350 साल पहले औरंगजेब ने सनातन धर्म की आस्था के सबसे बड़े केंद्र को ध्वस्त करने का आदेश दिया. उसके बाद 1991 से लगातार श्री काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी परिसर का विवाद अदालत में चल रहा है. इन सबके बीच अगस्त 2021 में इस विवाद में एक नया मोड़ आ गया, जब ज्ञानवापी परिसर की बाउंड्रीवॉल के पश्चिमी छोर पर बाहरी दीवार से लगभग 6 फीट की दूरी पर चबूतरे पर स्थापित मां श्रृंगार गौरी की प्रतिमा के नियमित दर्शन की मांग को लेकर वाराणसी के सिविल कोर्ट सीनियर डिवीजन में 5 महिलाओं ने याचिका दायर की है. हालांकि द्वादश ज्योतिर्लिंगों में मुख्य श्री काशी विश्वनाथ मंदिर और उसी परिक्षेत्र में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का केस वर्ष 1991 से वाराणसी की स्थानीय अदालत में चल रहा है. अब हाईकोर्ट के आदेश के बाद मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में जारी है. हालांकि, मां श्रृंगार गौरी का केस महज साढ़े 7 महीने ही पुराना है. 18 अगस्त 2021 को वाराणसी की पांच महिलाओं जिनमें राखी सिंह, सीता साहू, मंजू व्यास, रेखा पाठक और लक्ष्मी देवी ने बतौर वादी वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना दर्शन-पूजन की मांग सहित अन्य मांगों के साथ एक वाद दर्ज कराया था. इस मांग में इन सभी ने कोर्ट से यह गुहार लगाई है कि मां श्रृंगार गौरी के मंदिर में पूर्व की तरह दर्शन पूजन शुरू हों. गणेश, हनुमान, नंदी जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष देवता परिक्षेत्र में विद्यमान हैं, उनकी स्थिति जानने के लिए एक कमीशन बनाया जाए. कोर्ट ने इसे स्वीकार करते हुए जमीनी हकीकत जानने के लिए वकीलों का एक कमीशन गठित करने के लिए अधिवक्ता कमिश्नर के रूप में अजय कुमार मिश्रा को नियुक्त किया।

लेकिन अब 5 महिलाओं ने प्रतिदिन इसके दर्शन-पूजन के लिए याचिका दायर की है. याचिका दायर करने वाली 5 महिलाओं में से सीता साहू का कहना है कि याचिका हम लोगों ने इसलिए दायर की है कि मां श्रृंगार गौरी की हम लोग प्रतिदिन पूजा-पाठ करना चाहते हैं. साथ में जो कॉरिडोर का हिस्सा है उसमें स्थित मंदिरों में हम लोग जाना चाहते हैं. उसमें हमारी मूर्तियां हैं. वहां जो मूर्तियां हैं उसकी फोटोग्राफी चाहते हैं. उन्होंने कहा कि वह देखना चाहती हैं कि वहां मंदिरों की क्या स्थिति है.इस याचिका की सुनवाई करते हुए वाराणसी की अदालत ने 6 और 7 मई को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित श्रृंगार गौरी मंदिर में वीडियोग्राफी का आदेश दिया था. लेकिन मस्जिद कमेटी के विरोध के चलते सर्वे नहीं हो सका। इस बारे में श्रृंगार गोरी प्रकरण में संघर्ष कर रहे गुलशन कपूर और जानकार सोहन लाल आर्या का कहना है कि विश्वनाथ मंदिर से 5 मकान छोड़कर ही उनका पुश्तैनी मकान है और उस मकान की वजह से उनका पूरा बचपन ज्ञानवापी और विश्वनाथ मंदिर परिसर में ही बीता. उनका कहना है कि श्रृंगार गौरी मंदिर में नियमित दर्शन करने वालों में उनका परिवार शामिल रहा. लेकिन, 1996-97 में एक साथ एक ही दिन हिंदू-मुस्लिम का एक त्यौहार पड़ने की वजह से यहां पर एक सीआरपीएफ कैंप रिजर्व पुलिस के तौर पर बसाया गया. बाद में अधिकारियों का ट्रांसफर हुआ और यह कैंप यहीं पर आ गया. इस रास्ते को बंद कर दिया गया, जिसके लिए 10 सालों तक उन्होंने एक हिंदूवादी संगठन के साथ मिलकर संघर्ष किया. बाकायदा 2010 के बाद उन्हें यहां पर नियमित तो नहीं लेकिन नवरात्रि चैत्र चतुर्थी पर श्रृंगार गौरी के दर्शन वाले दिन पूजा और दर्शन करने का लिखित आदेश मिला. इसके बाद से वह हर साल यहां पर जाते हैं और पूजा-पाठ करने के साथ ही माता श्रृंगार गौरी की आराधना भी करते हैं।

गुलशन कपूर का कहना है कि यह कोई मंदिर का विग्रह नहीं, बल्कि ज्ञानवापी मस्जिद के बाउंड्रीवॉल से 6 फीट की दूरी पर चबूतरे में मौजूद एक छोटा सा विग्रह है, जो सिंदूर से रंगा हुआ है. 1991 में जब विश्वनाथ मंदिर ज्ञानवापी विवाद की शुरुआत हुई और 1992 में अयोध्या में बाबरी विध्वंस हुआ. उसके बाद 1993 से बैरिकेडिंग शुरू होने के बाद यहां पर दर्शन की रोक-टोक शुरू कर दी गई थी और 10 सालों तक तो यहां दर्शन पूरी तरह से बंद था. इस छोटे से विग्रह पर सुहागिन महिलाओं के सिंदूर चढ़ाने की परंपरा आज की नहीं, बल्कि सदियों पुरानी है. इसी छोटे से लगभग 5 से 10 मीटर के हिस्से का ही विवाद है. इस याचिका के अलावा 1991 में भी एक मुकदमा दायर हुआ था. इसमें मांग की गई थी कि मस्ज़िद में स्वयम्भू विश्वेश्वर नाथ शिवलिंग आज भी स्थापित है. इसके पूजा-पाठ और मरम्मत का अधिकार मांगा गया था. कोर्ट ने उसमें पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया था. यह मामला अभी लंबित है. इस बीच श्रृंगार गौरी का नया मामला आ गया. वहीं, ज्ञानवापी मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई है. इस मस्जिद को लेकर दावा किया जाता है कि इसे मंदिर तोड़कर बनाया गया था. हिंदू पक्ष का दावा है कि इस ढांचे के नीचे 100 फीट ऊंचा विशेश्वर का स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग स्थापित है. पूरा ज्ञानवापी इलाका एक बीघा नौ बिस्वा और छह धूर में फैला है.

कोर्ट में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करीब 2,050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था. लेकिन, मुगल सम्राट औरंगजेब ने सन् 1664 में मंदिर को नष्ट कर दिया था. दावा किया गया कि इसके अवशेषों का उपयोग मस्जिद बनाने के लिए किया था, जिसे मंदिर भूमि पर निर्मित ज्ञानवापी मस्जिद के रूप में जाना जाता है. सन् 1585 में राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था. वे अकबर के नौ रत्नों में से एक थे. लेकिन, 1669 में औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को पूरी तरह तोड़ दिया गया और वहां पर एक मस्जिद बना दी गई. बाद में मालवा की रानी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी परिसर के बगल में नया मंदिर बनवाया. इसे आज हम काशी विश्वनाथ मंदिर के रूप में जानते हैं. ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि इस विवादित ढांचे के नीचे ज्योतिर्लिंग है. यही नहीं ढांचे की दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र भी प्रदर्शित हैं. हालांकि, कुछ इतिहाकारों का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण 14वीं सदी में हुआ था और इसे जौनपुर के शर्की सुल्तानों ने बनवाया था. लेकिन, इस पर भी विवाद है. कई इतिहासकार इसका खंडन करते हैं. उनके मुताबिक, शर्की सुल्तानों द्वारा कराए गए निर्माण के कोई साक्ष्य नहीं मिलते हैं और न ही उनके समय में मंदिर के तोड़े जाने के साक्ष्य मिलते हैं.

किसने दाखिल की अर्जी?
वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के पास ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है. यहां अभी मुस्लिम समुदाय रोजाना पांचों वक्त सामूहिक तौर पर नमाज अदा करता है. मस्जिद का संचालन अंजुमन-ए-इंतजामिया कमेटी द्वारा किया जाता है. साल 1991 में स्वयंभू लॉर्ड विश्वेश्वर भगवान की तरफ से वाराणसी के सिविल जज की अदालत में एक अर्जी दाखिल की गई. इस अर्जी में यह दावा किया गया कि जिस जगह ज्ञानवापी मस्जिद है, वहां पहले लॉर्ड विशेश्वर का मंदिर हुआ करता था और श्रृंगार गौरी की पूजा होती थी. मुगल शासकों ने इस मंदिर को तोड़कर इस पर कब्जा कर लिया था और यहां मस्जिद का निर्माण कराया था. ऐसे में ज्ञानवापी परिसर को मुस्लिम पक्ष से खाली कराकर इसे हिंदुओं को सौंप देना चाहिए. उन्हें श्रृंगार गौरी की पूजा करने की इजाजत दी जानी चाहिए. वाराणसी की अदालत ने इस अर्जी के कुछ हिस्से को मंजूर कर लिया और कुछ को खारिज कर दिया. अदालत ने सीधे तौर पर कोई फैसला सुनाने के बजाय विस्तार से सुनवाई का फैसला लिया.

अर्जी का विरोध?
ज्ञानवापी मस्जिद का संचालन करने वाली अंजुमन-ए-इंतजामिया कमेटी ने साल 1998 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर स्वयंभू भगवान विशेश्वर की इस अर्जी का विरोध किया. वाराणसी की अदालत में शुरू होने वाली सुनवाई पर रोक लगाए जाने की गुहार लगाई. मस्जिद कमेटी की तरफ से अदालत में यह दलील दी गई कि साल 1991 में बने सेंट्रल रिलिजियस वरशिप एक्ट 1991 के तहत यह याचिका पोषणीय नहीं है और इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए. दलील यह दी गई एक्ट में यह साफ तौर पर कहा गया है कि अयोध्या के विवादित परिसर को छोड़कर देश के बाकी धार्मिक स्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 को थी, उसी स्थिति को बरकरार रखा जाएगा. उसमें बदलाव किए जाने की मांग वाली कोई भी याचिका किसी भी अदालत में पोषणीय नहीं होगी. अगर किसी अदालत में कोई मामला पेंडिंग भी है तो उसमे भी 15 अगस्त 1947 की स्थिति के मालिकाना हक को मानते हुए ही फैसला सुनाया जाएगा. मस्जिद कमेटी के साथ ही यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी हाईकोर्ट में इसी दलील के साथ अर्जी दाखिल की थी. हाईकोर्ट ने इस मामले में अंतिम फैसला आने तक वाराणसी की अदालत में चल रही सुनवाई पर रोक लगा दी थी.

दूसरी अर्जी
इसके बाद स्वयंभू भगवान विशेश्वर की तरफ से वाराणसी की अदालत में एक दूसरी अर्जी दाखिल की गई, जिसमें यह कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग के तहत किसी भी मामले में जब छह महीने से ज्यादा स्टे यानी स्थगन आदेश आगे नहीं बढ़ाया जाता है तो वह खुद ही निष्प्रभावी यानी खत्म हो जाता है. निचली अदालत में सुनवाई पर रोक के मामले में कोई स्थगन आदेश लंबे समय से पारित नहीं किया है, इसलिए यह स्टे खत्म हो गया है और सिविल जज सीनियर डिवीजन को इस मामले में फिर से सुनवाई शुरू कर देनी चाहिए. वाराणसी की अदालत ने इस अर्जी को मंजूर कर लिया और फिर से सुनवाई शुरू किये जाने का फैसला सुनाया. दोनों मुस्लिम पक्षकारों अंजुमन ए इंतजामिया कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इसके खिलाफ भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी.

सिविल कोर्ट का आदेश
हाईकोर्ट ने इस अर्जी को पहले से चल रहे मुकदमें से जोड़ दिया और एक साथ सुनवाई की. सभी चार अर्जियों पर सुनवाई पूरी होने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले साल यानी 2021 की 15 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. हाईकोर्ट का फैसला आने से पहले ही वाराणसी की सिविल जज की अदालत ने 8 अप्रैल 2021 को एक आदेश पारित कर एएसआई यानी और आर्कियालाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को विवादित परिसर की खुदाई कर यह पता लगाने का आदेश दिया कि क्या वहां पहले कोई और ढांचा था. क्या मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया गया था और क्या इन दावों के कोई अवशेष वहां से मिल रहे हैं. आर्केयालॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को खुदाई और सर्वेक्षण का काम एक हाई लेवल की कमेटी द्वारा कराए जाने का आदेश पारित किया गया था.

29 मार्च से शुरू हुई नियमित सुनवाई
अंजुमन-ए-इंतजामिया कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने निचली अदालत के इस फैसले को भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कई महीनों तक चली सुनवाई के बाद 9 सितंबर 2021 को अपना फैसला सुनाते हुए एएसआई से सर्वेक्षण कराए जाने के आदेश पर रोक लगा दी और आगे सुनवाई के आदेश दिए. हाईकोर्ट ने इस विवाद से जुड़ी सभी छह याचिकाओं को सूचीबद्ध करने का आदेश देते हुए एक साथ सुनवाई करने का फैसला किया. इस साल 29 मार्च से इस मामले में नियमित तौर पर सुनवाई शुरू हो चुकी है. दोनों पक्ष अपनी शुरुआती दलील पेश कर चुके हैं. इन दिनों अंतिम बहस हो रही है. दस मई को दोपहर दो बजे से होने वाली सुनवाई में सबसे पहले हिन्दू पक्ष अपनी बची हुई दलीलें पेश करेगा. इसके बाद मुस्लिम पक्षकारों को बहस का मौका दिया जाएगा. दो से तीन सुनवाई में हाईकोर्ट में चल रही बहस पूरी हो सकती है और जजमेंट रिजर्व करने के कुछ दिनों बाद अदालत अपना फैसला सुना सकती है.

जमीन का है विवाद, हो चुकी है अदला बदली
इस मामले में हाईकोर्ट को मुख्य तौर पर यही तय करना है कि क्या वाराणसी की जिला अदालत में इकतीस बरस पहले साल 1991 में दाखिल किये गए मुकदमें की सुनवाई हो सकती है या नहीं. एक बीघा नौ बिस्वा और छह धुर जमीन के इस विवाद में जहां हिन्दू पक्षकार विवादित जगह हिन्दुओं को देकर वहां पूजा करने की इजाजत दिए जाने की मांग कर रहे हैं तो वहीं मुस्लिम पक्ष 1991 के वर्शिप एक्ट का हवाला देकर मुकदमें के दाखिले को ही गलत बता रहा हैं. इंतजामिया कमेटी के वकील और इलाहाबाद हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट सैयद फरमान नकवी के मुताबिक इस मामले में ज्ञानवापी मस्जिद का काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट से किसी तरह का कोई विवाद नहीं है. मंदिर का ट्रस्ट इस पूरे मामले में कहीं भी पक्षकार नहीं है और ना ही उसने कहीं कोई याचिका दाखिल कर रखी है. स्वयंभू भगवान विशेश्वर पक्ष थर्ड पार्टी के तौर पर पिछले करीब तीन दशकों से अदालती लड़ाई लड़ रहा है. ऐसे में अदालत का फैसला किसके पक्ष में आएगा और अगर अर्जी मंजूर होती है तो जमीन किसे सौंपी जाएगी, यह कहना मुश्किल है. अदालत में चल रही सुनवाई के दौरान यह तथ्य भी सामने आए कि काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट और अंजुमन ए इंतजामिया कमेटी के भी बीच रिश्ते काफी बेहतर हैं. मस्जिद कमेटी ने विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट से एक जमीन की अदला बदली भी की है. यह अदला बदली आपसी सहमति के आधार पर की गई है. इतना ही नहीं इस ट्रांसफर में लगने वाली स्टैम्प ड्यूटी का खर्च भी मंदिर की कमेटी के ट्रस्ट ने ही उठाया है.

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