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योगी के ट्विट के बाद लखनऊ का नाम बदलने की चर्चा तेज

औरंगजेब ने मिटा दिया था ‘लक्ष्मण टीले’ का नामोनिशान

संजय सक्सेना, लखनऊ

अभी कुछ दिनों पूर्व ‘नमस्ते लखनऊ विद राजनाथ सिंह’ कार्यक्रम में देश की जानीमानी लेखिका और पद्मश्री से सम्मानित साहित्यकार विद्या बिन्दु सिंह के लखनऊ के सांसद एवं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लखनऊ का नाम बदलने के अनुरोध का मामला ठंडा भी नहीं पड़ा था और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक ट्विट ने फिर से लखनऊ का नाम बलने जाने की चर्चा गरमा दी है। वैसे यह पहली बार नहीं है जब लखनऊ का नाम बदले जाने की मांग उठी है।इस तरह की मांग इससे पहले भी कई बार उठ चुकी हैं,लेकिन तब की सरकारों ने इस मांग को गंभीरता से नहीं लिया,परंतु जिस तरह से योगी जनपदों और बाजारों के नाम बदल रहे हैं,उसको देखते हुए लखनऊ का नाम बदले जाने की मांग को गंभीरता से लिया जाने लगा है। उस पर योगी के ट्विट ने रही सही कसर पूरी कर दी है।

दरअसल,16 मई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लखनऊ आगमन पर उनके स्वागत में सीएम योगी के एक ट्वीट से लखनऊ का नाम बदले जाने की अटकलें लगने लगीं हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट में लिखा, ‘शेषावतार भगवान श्री लक्ष्मण जी की पावन नगरी लखनऊ में आपका हार्दिक स्वागत व अभिनंदन।’ सीएम योगी ने यह ट्वीट अमौसी एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वागत करते हुए खींची गई फोटो को टैग करते हुए किया है। इस ट्वीट के बाद यह सवाल उठने लगा है कि लखनऊ का नाम लक्ष्मण जी के नाम पर किया जा सकता है। यह अटकलें इसलिए भी लगाई जा रही हैं, क्योंकि इससे पहले लखनऊ का नाम बदलकर लखनपुरी, लक्ष्मणपुरी और लखनपुर करने की मांग उठाई जा चुकी है। योगी सरकार ने इससे पहले कई जगहों के नाम बदले हैं। इलाहाबाद और फैजाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज और फैजाबाद का नाम अयोध्या किया जा चुका है। इसी प्रकार मुगलसराय स्टेशन का नाम पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर रखा गया था हालांकि सीएम के आधिकारिक ट्विटर हैंडिल से इसी तस्वीर के साथ किए गए ट्वीट की भाषा बदली हुई है। इसमें उन्होंने इस ट्वीट में लखनऊ के चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर स्वागत की बात लिखी है।

बहरहाल, लखनऊ का नाम बदलने की मांग बेवजह नहीं है। इसके पीछे भी आक्रांता औरंगजेब ही था,जिसने यहां से प्रभु लक्ष्मण की पहचान मिटाने का भरसक प्रयास किया। एक समय आज का लखनऊ जिसे लक्ष्मणपुर या लखनपुर कहा जाता था,गोमती नदी के किराने लक्ष्मण टीला के आसपास बसा हुआ था,जिसे अब पुराना लखनऊ कहा जाता है.अब ‘लक्ष्मण टीला’ का नाम पूरी तरह मिटा दिया गया है। यह स्थान अब ‘टीले वाली मस्जिद’ के नाम से जाना जाता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि लखनऊ की संस्कृति पर यह जबरदस्ती थोपा गया है। यह दावा लखनऊ के पूर्व बीजेपी सांसद लालजी टंडन(अब दिवंगत) ने अपनी किताब ‘अनकहा लखनऊ’ में भी किया है। पार्षद से लेकर कैबिनेट मंत्री और दो बार लखनऊ के सांसद तक छह दशक से अधिक का सामाजिक और सियासी सफर लखनऊ में पूरा करने वाले लालजी टंडन बीजेपी के वरिष्ठ नेता थे। उन्होंने लखनऊ के इतिहास पर एक पुस्तक ‘अनकहा लखनऊ’ लिखी थी। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि, ‘पुराना लखनऊ लक्ष्मण टीले के पास बसा हुआ था. अब लक्ष्मण टीला का नाम पूरी तरह मिटा दिया गया है। यह स्थान अब टीले वाली मस्जिद के नाम से जाना जाता है।

लक्ष्मण टीले पर मुगल शासकों की नजर हमेशा टेड़ी रही। इसी लिए बार-बार लक्ष्मण टीला ध्वस्त करने की कार्रवाई से बाद में सिर्फ लक्ष्मण टीला नाम रह गया था। कहते हैं बाद में औरंगजेब ने यहां पर मस्जिद बनवा दी,जबकि 1857 के पहले के लखनऊ के एक नक्शे में इस मस्जिद का कोई जिक्र नहीं है। कहा तो यह भी जाता है कि 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेज अफसरों के घोड़े यहां बंधा करते थे। इस तरह 1857 के बाद यहां बनी ‘गुलाबी मस्जिद’ पर अंग्रेज अफसर घोड़े बांधने लगे। बाद में राजा जंहागीराबाद की गुहार पर अंग्रेजों ने मस्जिद को खाली किया। लेकिन हर दौर में इसका नाम लक्ष्मण टीला बना रहा। टंडन जी का आरोप था कि समाजवादी पार्टी की मुलामय सरकार में गुलाबी मस्जिद का नाम बदलकर टीलेवाली मस्जिद करके लक्ष्मण टीला के वजूद को ही नकार दिया गया।इतिहासकार स्वर्गीय योगेश प्रवीन ने तो यहां तक कहा था कि लक्ष्मण टीले का मामला भी ठीक बाबरी मस्जिद जैसा ही है, अधिकतर मुगलकालीन इमारतें या मस्जिदें पुरानी इमारतों को तोड़कर ही बनाए गए हैं, लेकिन इस सबके बीच लक्ष्मण टीले पर गुफा की कहानी बिल्कुल गायब हो गई।

वैसे टंडन जी अकेले ऐसे नहीं थे,कई इतिहासकार यहां तक की आम जनता को इस बात से इतिफाक रखती है। लखनऊ की संस्कृति के साथ यह जबरदस्ती की गई है. लखनऊ के पौराणिक इतिहास को नकार कर नवाबी कल्चर में ढालने के लिए ऐसा किया गया है। लक्ष्मण टीले पर शेष गुफा थी, जहां बड़ा मेला लगता था। टीले पर लक्ष्मण जी का एक छोटा सा मंदिर भी था। खिलजी के वक्त यह गुफा ध्वस्त की गई और उसके बाद यह जगह टीले में तब्दील कर दी गई। औरंगजेब ने बाद में यहां एक मस्जिद बनवा दी, जिसे टीले वाली मस्जिद के नाम से जाना जाने लगा। तब हिन्दू पक्ष ने इसका बेहद जोरदार तरीके से विरोध भी किया था,लेकिन मुगल शासन के दौरान उनकी एक नहीं सुनी गई और उनकी आवाज जोर-जुल्म से दबा दी गई थी।

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