पुतिन के ‘Plan C’ ने बदली युद्ध की तस्वीर ! रूस ने पूर्वी यूक्रेन पर हमले किए तेज, मुश्किल में जेलेंस्की
नई दिल्ली । रूस और यूक्रेन का युद्ध (Russia and Ukraine War) तीन महीने पुराना हो चुका है. जिस जंग को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) 72 घंटे में खत्म करने के दावे कर रहे थे, वो लड़ाई अब 100 दिन से ज्यादा लंबी खिच चुकी है. ऐसा इसलिए हो पाया है क्योंकि पुतिन के तमाम शुरुआती आकलन गलत साबित हुए और उनकी सेना (army) को इसका हरजाना भी भुगतना पड़ा. 72 घंटे वाले दावे के बाद पुतिन कीव पर कब्जा करना चाहते थे, लेकिन वहां यूक्रेनी सैनिकों ने खदेड़ दिया. लेकिन उन झटकों से उबरने के लिए पुतिन के दिमाग में एक प्लान सी भी था. इसी प्लान ने अब जमीन पर इस युद्ध की तस्वीर को फिर बदलकर रख दिया है. एक बार फिर समीकरण बदले हैं, रूस ज्यादा आक्रमक दिखाई पड़ रहा है. उसने पूर्वी और दक्षिण यूक्रेन पर अपने हमले तेज कर दिए हैं.
इस समय रूसी सेना की नजर दोनेत्स्क और लुहांस्क शहरों पर टिकी हुई है. ये दोनों ही प्रांत डोनबास क्षेत्र में पड़ते हैं जहां पर पिछले कई दिनों से रूस का आक्रमण जारी है. इसी कड़ी में दावा हो गया है कि रूस ने पूर्वी यूक्रेन में एक प्रमुख रेलवे जंक्शन पर अपना कब्जा जमा लिया है. ये भी दावा हुआ है कि लिमान शहर को पूरी तरह मुक्त करा लिया गया है. ये वहीं इलाका है जहां पर पिछले आठ सालों से अलगाववादियों द्वारा युद्ध छेड़ा हुआ है. रूस उन अलगाववादियों का समर्थन करता है, लिहाजा इन इलाकों पर कब्जा होना एक बड़ी कामयाबी मानी जाएगी. वैसे भी रूस को अपने ही देश में इस युद्ध की वजह से काफी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. कई ऐसे सर्वे सामने आए हैं जहां पर रूसी लोग ही अपनी सेना का समर्थन नहीं कर रहे हैं.
ऐसे में अगर डोनबास क्षेत्र में रूसी सेना को बड़ी कामयाबी मिल जाती है, पुतिन इसे अपनी जीत की तरह दिखाएंगे और इस युद्ध को न्यायोचित बताने में भी देर नहीं करेंगे. ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने भी ये आशंका जाहिर कर दी है कि रूस इस समय इन्हीं इलाकों पर कब्जा करने में लगा हुआ है. अगर वो ऐसा कर जाता है तो जमीन पर युद्ध के समीकरण रूस के पक्ष में जा सकते हैं. वैसे यूक्रेन की चुनौती इसलिए भी ज्यादा बढ़ गई है क्योंकि अब रूसी सेना के हमले सिविरोदोनेत्स्क और नजदीकी लिसिचांस्क शहरों तक पहुंच चुके हैं. ये दोनों ही इलाके लुहांस्क प्रांत में पड़ते हैं. जितने घातक वहां पर हवाई हमले किए जा रहे हैं, जमीन पर वो तबाही साफ देखने को मिल रही है. ज्यादातर इमारतें बर्बाद हो चुकी हैं.
उस इलाके में यूक्रेनी सैनिकों को अपनी घेराबंदी का डर भी सताने लगा है. जिस तेजी से रूसी सैनिक आगे बढ़ रहे हैं, लुहांस्क के गवर्नर मान रहे हैं कि कुछ समय के लिए यूक्रेनी सैनिक सिविरोदोनेत्स्क छोड़कर जा सकते हैं. वहां के स्थानीय लोगों में भी इस बात का डर है कि रूसी सैनिक सिविरोदोनेत्स्क में भी मारियूपोल जैसी तबाही कर सकते हैं. अब लोगों के मन में मारियूपोल जैसी स्थिति का डर इसलिए है क्योंकि सिर्फ मारियूपोल और खेर्सोन में ही रूस को बड़े स्तर पर कामयाबी हाथ लगी है. बाकी जगहों पर यूक्रेन ने ना सिर्फ मुकाबला किया है, बल्कि कई इलाकों से रूसी लड़ाकों को पीछे भी खदेड़ा है.
वैसे सिविरोदोनेत्स्क में जारी रूसी हमलों को लेकर एक्सपर्ट एक और बात की ओर ध्यान आकर्षित कर रहे हैं. उनके मुताबिक रूस अपने हमलों से सिविरोदोनेत्स्क की इमारतों को तो ध्वस्त कर सकता है, लेकिन जमीन पर आगे बढ़कर पूरे इलाके पर कब्जा करना उसके लिए चुनौती साबित होगा. तर्क दिया जा रहा है कि अर्बन वॉरफेयर में रूस हमेशा से कमजोर रहा है. इस युद्ध में भी रूसी सेना की ये कमजोरी कई मौकों पर उभरकर सामने आई है. ऐसे में यूक्रेन भी उसी कमजोरी पर वार करना चाहता है. राष्ट्रपति जेलेंस्की का कहना है कि अगर आक्रमणकारियों को ऐसा लगने लगा है कि लिमान या सिविरोदोनेत्स्क उनके हो जाएंगे, तो वे गलत हैं. डोनबास हमेशा यूक्रेन का ही अभिन्न अंग रहने वाला है.