राष्ट्र में इस्लामी आतंक नागवार है !
स्तंभ: आतंकी सरगना मौलाना मसूद अजहर ने भारतीय मुसलमानों से पुरजोर अपील की है कि यदि ज्ञानवापी मस्जिद तथा मथुरा के शाही ईदगाह पर कोई माफिक अदालती निर्णय नहीं आता है तो ”काफिरों पर हमले” की तैयारी करें। अजहर ने यह बयान अपने अड्डे नवाबी शहर (सोहन हलवा के लिये मशहूर) बहावलपुर से जुमे की नमाज के बाद (27 मई 2022) दिया था। उसने शाहीनबाग—स्थित (नोयडा रोड) पापुलर फ्रन्ट आफ इंडिया के जिहादियों की ऐसी ही मांग की तस्दीक भी की है। फ्रन्ट उच्चतम न्यायालय द्वारा ज्ञानवापी के वजूखाने के उपयोग पर पाबंदी से गुस्सा है। बदला चाहता है।
यह कातिल मौलाना अजहर वहीं आतंकी है जिसे अटल बिहारी वाजपेयी काबीना ने 30 दिसम्बर 1999 का जेल से रिहा करने का आदेश दिया था। यह दिवस प्रधानमंत्री के जन्मदिन की प्लेटिनम जयंती के चार दिन बाद का था। हालांकि बाद में गृह मंत्री लालचन्द किशिनचन्द आडवाणी ने इस कदम को ”सरासर त्रुटिपूर्ण” बताया था (हिन्दुस्तान टाइम्स 23 दिसम्बर 2002)। संप्रग सरकार के इसी निर्णय के बाद सिलसिलेवार ढंग से विगत दो दशकों में इस आतंकी मजहर ने दहशत को विस्तृत अंजाम दिया। उसने खुद लिखा था कि भारतीय जेल से छूटकर उसने पाकिस्तानी तालिबानी की मेहमाननवाजी पायी थी। जब वह पहली दफा जनवरी 1994 में वली आदम ईसा के छद्म नाम से नयी दिल्ली के अशोक होटल में पधारा था, तब भारत में कांग्रेस राज था। अजहर निर्बाध घूमता रहा। श्रीनगर और अनंतनाग की सैर करता रहा। फिर खानाबल में सुरक्षा सैनिकों ने उसे पकड़ा था। तबतक वह कई विस्फोट और हत्या के अपराध कर चुका था।
यही जनाब मसूद अजहर ही थे जिन्होंने पुलवामा में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस की गाड़ी पर हमला करवाया था। इसमें 40 सैनिक मारे गये थे। जवाब में मोदी सरकार ने पाक—अधिकृत कश्मीर के बालाकोट पर बमबारी की थी। नतीजन लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत पाया था। मगर राहुल गांधी और अरविन्द केजरीवाल को संदेह था कि पुलवामा हिंसा अजहर ने नहीं, भाजपा ने सत्ता पाने हेतु करायी थी। वोट हासिल कर लिये। इतना बड़ा राष्ट्रघाती प्रचार इन कांग्रेसी तथा आम आदमी पार्टियों के पुरोधाओं ने किया था।
अब फिर जिक्र हो दानवी नरसंहारी अजहर का। सर्वप्रथम तो उन भारतीयों पर जिन्होंने अपने संगे—संबंधियों को हाईजैक से जहाज पर कांधार ले गये थे। छुड़वाने के लिये इस अजहर को मुक्त करने हेतु इतनी जोर जबरदस्ती थी। क्या क्या ऐसे लोग भारतभक्त थे ? उत्सर्ग नहीं दे सकते थे ? फलस्वरुप इस दोषीसूची में 71—वर्षीय ब्रजेश मिश्र, सेनानिवृत्त अधिकारी, जो 75—वर्षीय प्रधानमंत्री के परम परामर्शदाता रहें, जो वानप्रस्थ की आयु पर थे। इन दोनों निर्णायकों के फैसले का खामियाजा बाद पुलवामा के सैनिक तथा कश्मीरी पंडित भुगते।
मगर प्रश्न यहां महत्वपूर्ण यह है कि अजहर की अपील का भारतीय मुसलमानों का क्या जवाब होगा ? क्या वे इस सिरफिरे हत्यारे, शत्रुराष्ट्र पाकिस्तान के नागरिक का साथ देंगे ? अर्थात उनके लिये भारतीय राष्ट्रीयता के कोई मायने हैं ? क्या वे न्यायपालिका का सुझाव मानेंगे या उल्लंघन करेंगे ?
अचरज तो इस बात पर है कि कातिल अजहर के विरुद्ध देश में अभी तक एक भी तंजीम, जमात, मिल्लत, दानीश्वर, शायर, सहाफी अथवा मौलाना ने बयान नहीं दिया कि वह भारत राष्ट्र का शत्रु, पूरी कौम का असली दुश्मन है। बाटला हाउस काण्ड पर ट्रेनें भरकर आजमगढ़ से जाने वाले नेता अबकी फिर रेल से नयी दिल्ली—स्थित पाकिस्तानी उच्चायुक्त कार्यालय नहीं गये, प्रदर्शन करने। इस पर सवाल उठे हैं कि भारतीय मुसलमान हुबुल—वतनी को क्या नहीं स्वीकारते ? फिर तो मूल प्रश्न उठेगा नागरिक कर्तव्यों का? देश की सुरक्षा से सरोकार का ? हिन्दुस्तान आखिर किसका है? उसके बाशिन्दों का अथवा किसी और का? याद कीजिये किस तरह कुछ साल पूर्व बिहार विधानसभा मतदान पर बिन लादेन की वेशभूषा में एक आदमी को राम विलास पासवान ने प्रचार में घुमाया था।
लादेन के नाम पर मुस्लिम वोटरों को रिझाने की यह अतीव घृणित योजना थी। ऐसा व्यवहार राष्ट्रघातक है। भारतद्रोही है। गद्दारी है। मृत्यु दण्ड का गुनहगार है। भारत किसी धर्म या मजहब अथवा आस्था से प्रेरित अथवा उस पर केन्द्रित नहीं होगा। पंथनिरपेक्ष लोग ही भारत में रह सकेंगे। संविधान यही मांग करता है। मुस्लिम सत्यशोधक संघ, पुणे, के अध्यक्ष स्वर्गीय हमीद दलवाई कहते थे कि यदि निजामे मुस्तफा के तहत रहना है तो लीबिया जाओ। (तब कर्नल गद्दाफी को मारा नहीं गया था)। आलमगीर औरंगजेब भारत में फिर न जन्मेगा, न राज कर पायेगा। हिन्दुस्तान की संस्कृति दोआबवाली है, सदा रहेगी। नोट कर लें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)