विश्व के पास्ता उद्योग में भारत के वर्चस्व को तोड़ने की टर्की की नई चाल
नई दिल्ली: पास्ता व्हीट, मैकरोनी व्हीट , दुरूम व्हीट यही उस गेहूं का नाम है जो भारत और टर्की के बीच विवाद का कारण बना है। जब कोई देश किसी दूसरे देश के वनस्पति या पौधों से जुड़े स्वास्थ्य चिन्ताओं को ध्यान में रखकर वस्तुओं को अपने यहां आने नहीं देता तो इसे टेक्निकल भाषा में फाइटोसैनिटरी कंसर्न कहा जाता है। ऐसा ही कंसर्न जताते हुए टर्की ने भारतीय दुरूम गेहूं की खेप को लेने से मना कर दिया और उसे वापस लौटा दिया। 56,877 टन दुरूम गेहूं जो भारत से टर्की भेजा गया था अब वह टर्की से वापस गुजरात के कांडला पोर्ट पर पहुँच रहा है। टर्की के कृषि और वानिकी मंत्रालय के अनुसार , भारतीय गेंहू रूबेला वायरस से संक्रमित पाया गया है।
गौरतलब है कि दुनिया भर के पास्ता उद्योग की पहली पसंद है दुरूम गेहूं से तैयार होने वाला आटा सेमोलिना है क्योंकि इसी से बनता है पास्ता। अब किसान जैविक गेहूं से सेमोलिना तैयार कर इसकी सीधी आपूर्ति भी कर रहे हैं। इसके लिए दुरूम को सबसे बेहतर गेंहू माना जाता है। रूस यूक्रेन के युद्ध के बीच दुनिया में गेहूं संकट के बावजूद टर्की ने भारत को उसका गेंहू वापस लौटाया है। टर्की भी गेहूं की कमी की समस्या से जूझ रहा है। लेकिन उसने भारत से आयात के खिलाफ़ एक बड़ा कदम उठाया है।
आधिकारिक सूत्रों ने कहा है कि टर्की ने ऐसा राजनीतिक कारणों या भारतीय गेहूं के आयातक देशों में ‘कॉर्पोरेट प्रतिस्पर्धा’ के कारण किया है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, टर्की को भेजे जाने वाले गेहूं की खेप सीधे भारत से निर्यात नहीं की गई थी और भारतीय कंपनी आईटीसी लिमिटेड ने इसे नीदरलैंड स्थित एक कंपनी को बेच दिया था। ITC LTD के एक अधिकारी द्वारा बताया गया है कि आईटीसी ने फ्री ऑन बोर्ड (वजन और गुणवत्ता) आधार पर एक डच फर्म को गेहूं बेचा जिसने इसे एक तुर्की कंपनी को बेच दिया। ITC और डच फर्म दोनों को गेहूं की खेप के लिए पैसे मिल गए हैं। यह एक राजनीतिक फैसले से प्रेरित लगता है।
टर्की का भारत विरोध जगजाहिर है। धारा 370 को हटाने का समय समय पर विरोध हो , कश्मीर को आजाद करने की मांग हो , पाकिस्तान का खुलकर समर्थन और उसके साथ रक्षा व्यापार बढ़ाना हो , यूएन में भारत विरोध हो , FATF में पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट होने से बचाना हो ,ऐसे तमाम उदाहरण हैं जहां टर्की का भारत के खिलाफ़ विरोध और पूर्वाग्रह दिखता है। OIC के मुस्लिम देशों में लामबंदी कर अपने नेतृत्व को मजबूत करने की चाहत में भी वह भारत विरोध करता दिखाई देता है।
रूबेला वायरस के बारे में :
रूबेला वायरस एक संक्रामक वायरल इन्फेक्शन के लिए जाना जाता है। इसे जर्मन मीजल्स या थ्री मीजल्स के नाम से भी जानते हैं। यह गर्भ में पल रहे भ्रूण को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए जाना जाता है। भ्रूण को रूबेला सिंड्रोम से ग्रसित होने का खतरा होता है। अधिकांश लोग जिन्हें रूबेला का संक्रमण होता है उनमें जो लक्षण दिखाई देते हैं वो हैं :
लो ग्रेड फीवर , सिरदर्द , माइल्ड पिंक आँखे , आंखों में सूजन , लसिका ग्रंथियों में सूजन , खाँसी , नाक से पानी बहना। रेड रैशेज इसमें सबसे प्रमुख लक्षण है। ये रैशेज पहले चेहरे पे फिर पूरे शरीर पर हो जाते हैं। रूबेला एक संक्रमित व्यक्ति के खाँसने और छीकने से फैलता है। इसके अलावा जब एक गर्भवती महिला रूबेला से संक्रमित होती है तो वह गर्भ में पल रहे शिशु को संक्रमित कर सकती है। यह महिलाओं में मिसकैरिज के लिए जिम्मेदार वायरस है। यह भ्रूण में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को उत्पन्न करता है।
आमतौर पर बच्चों और युवा वयस्कों में यह संक्रमण होता है। गर्भवती महिलाओं में पहले ट्रीमेस्टर के दौरान यह मिसकैरेज, भ्रूण की मृत्यु , स्टिलबर्थ , कंजेनिटल रूबेला सिंड्रोम का कारण बनता है।
कंजेनिटल रूबेला सिंड्रोम से ग्रसित बच्चों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है वो है : सुनने की ताकत में कमी आना , आंखों और दिल से जुड़ी समस्याएं, ऑटिज़्म , डाइबिटीज मेलिटस,
थाइरोइड से जुड़ी समस्या।
इसके उपचार के लिए एमएमआरवी वैक्सीन Measles, mumps and varicella (MMRV) और MMR वैक्सीन ( measles mumps rubella vaccine) ही कारगर हैं।
( लेखक अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं )