जुमे की नमाज के बाद यूपी में बवाल, इन पांच जगहों पर प्रशासन से हुई भारी चूक
लखनऊ : खुफिया एजेंसियों ने अटाला में विरोध का अंदेशा जताया था। जुमे की नमाज से पहले पुलिस और प्रशासन ने तैयारी पूरी की थी। धर्मगुरुओं के साथ बैठक की थी। अमन की अपील की थी लेकिन इसके बाद भी पुलिस और प्रशासन का सारा इंतजाम धरा रह गया। जुमे की नमाज के बाद बवाल हो गया। डीएम ने गुरुवार की शाम आननफानन में धर्मगुरुओं की बैठक बुलाई थी। सबसे शांति बनाए रखने की अपील की थी। सोशल मीडिया से प्रचार-प्रसार किया कि शुक्रवार को शांति बनाए रखना है। एसएसपी ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वालों की पहचान कर कार्रवाई करने को कहा था। सबको सतर्क किया था। जुमे की नमाज से पूर्व सभी मस्जिदों के बाहर फोर्स पहुंच गई। एडीजी, कमिश्नर, आईजी, एसएसपी समेत अन्य अफसर मौके पर थे। नमाज के दौरान पैरामिलिट्री फोर्स के साथ गश्त करते नजर आए। धर्मगुरुओं से जाकर मिले लेकिन इतनी तैयारियों के बाद भी बवाल हो गया।
बवाल वहां हुआ, जहां सुबह से ही सबसे ज्यादा फोर्स थी। बाकी शहर शांत रहा। अटाला में पीएसी के अलावा पैरामिलिट्री जवानों को लगाया गया था। बवाल से पुलिस और प्रशासनिक इंतजामों की पोल खुल गई। न तो सोशल मीडिया का प्रचार-प्रसार काम आया और न स्थानीय लोगों ने पुलिस-प्रशासन पर भरोसा जताया। सड़क पर आकर बच्चों से बड़ों तक ने जमकर बवाल किया।
1-खुफिया तंत्र कमजोर-खुफिया एजेंसियों ने अटाला में विरोध की बात पहले से बताई थी। इसमें शक नहीं है। लेकिन उनके पास पथराव या बवाल की जानकारी पूरी नहीं थी। पुलिस अफसरों को यह बताया गया था कि भीड़ जुटी तो विरोध होगा। पुलिस की पूरी तैयारी भीड़ जुटने से रोकने की थी। अटाला में भीड़ न लगे, इसलिए स्कूल व कॉलेज का गेट बंद कराया गया था कि अटाला में मस्जिद से निकलने के बाद कहीं कोई एकत्र न हो सके। खुफिया एजेंसियों की कमजोरी साफ नजर आई।
2-पुलिस फोर्स की कमी-अटाला में पुलिस ने आरएएफ, पीएसी के अलावा कई थानों की फोर्स लगाई थी। लेकिन जब बवाल शुरू हुआ तो पुलिस चारों तरफ से घिरी नजर आई। एक गली में घुस रही थी तो दूसरी ओर से बवाल होने लग रहा था। आरएएफ जवानों की संख्या कम थी। इसलिए वे मोर्चा नहीं संभाल पा रहे थे। पथराव करने वालों में आरएएफ का भी डर नहीं था। फोर्स की कमी से बवाल काबू करने में काफी समस्या हुई। यह हाल तब था जब बवाल सिर्फ एक जगह हो रहा था।
3-तैयारी पूरी नहीं थी-इस बवाल के लिए पुलिस अफसर पूरी तरह तैयार नहीं थे। वहां न सिर्फ फोर्स की कमी दिखी, बल्कि उनमें तालमेल न होना समेत कई कमियां नजर आईं। बाइक फूंक दी गई। एक छोटे से जगह पर बवाल हो गया। सिपाही और आरएएफ के जवान घायल होने लगे लेकिन मौके पर तत्काल एम्बुलेंस नहीं पहुंचा। जवान चिल्ला रहे थे और कोई मददगार नहीं मिल रहा था। प्राथमिक उपचार के लिए भी समस्या सामने आई।
4-दंगा नियंत्रण की पोल खुली-सबसे बड़ी कमी दंगा नियंत्रण टीम का सक्रिय न होना दिखी। हर शुक्रवार को एसएसपी पुलिस लाइन में दंगा नियंत्रण का अभ्यास कराते हैं। जोन से दिग्गज पुलिसकर्मियों को एडीजी ने इसमें जोड़ा था। लेकिन जब असल मौका आया तो सब धरा रह गया। दंगा नियंत्रण टीम की हालत यह थी कि एंटी रॉयट गन चलाने को जवान मुंह देख रहे थे। एसपी सिटी आंसू गैस के गोले दागते दिखे।
5-तालमेल का अभाव-एक और कमी थी लोगों से तालमेल की। बवाल होने के बाद पुलिस के पास स्थानीय लोगों का कोई सपोर्ट नहीं था। पुलिस के पास मोहल्ले के न तो नेता थे और न पीस कमेटी से जुड़े लोग वहां नजर आए। साथ देने वालों में सिर्फ जिला अपराध निरोधक समिति से जुड़े अफसर और सदस्य थे। अगर बड़े लोग, बुजुर्ग, नेता, शिक्षक, वकील पुलिस और प्रशासन की मदद में आगे आते तो यह हाल न होता।