नई दिल्ली : सफेद दाग(vitiligo) को आयुर्वेद की भाषा में ‘श्वित्रा’ कहा जाता है। यह ऑटोइम्यून के कारण होने वाला स्किन डिजिज होता है। इससे ग्रसित व्यक्ति के शरीर पर सफेद रंग के दाग दिखने लगते हैं। हालांकि, यह डिजिज स्किन, आंखो और बालों का रंग निर्धारित करने वाले तत्व मेलेनिन के नष्ट हो जाने से होता है। लेकिन समाज में इस रोग को छुआछूत जैसे कई तरह के कारणों से जुड़ा जाता है। यह अवधारणाएं कई बार विटिलिगों के मरीजों में अवसाद का कारण भी बनती है।
सफेद दाग की बीमारी लंबे समय तक चलती है। लेकिन यह संक्रामक या जानलेवा नहीं होती। विटिलिगो सभी प्रकार की त्वचा और उम्र के लोगों को प्रभावित करता है, लेकिन यह भूरी या काली त्वचा और 30 तक की उम्र में ज्यादा विजिबल होता है। इसके उपचार की जानकारी और तरीकों की सीमितता इस बीमारी को तनावपूर्ण बना देती है। इसलिए हमने बात की भारत के हजारों साल पुरानी चिकित्सा पध्दति आयुर्वेद के विशेषज्ञ डॉक्टर शरद कुलकर्णी से और जाना कि क्या विटिलिगों का आयुर्वेदिक इलाज मुमकिन है?
आयुर्वेद में है विटिलिगो का सबसे बेहतर उपचार
पिछले एक दशक से आयु्र्वेद के क्षेत्र में काम कर रहें हैं, बेंगलुरु के जीवोत्तम आयुर्वेद सेंटर के डॉ. शरद कुलकर्णी M.S (Ayu),(Ph.D.) बताते हैं कि सफेद दाग के लिए आयुर्वेदिक उपचार सबसे उत्तम है। यह दूसरे मौजूदा विकल्पों से बेहतर होन के साथ ज्यादा विश्वसनीय और किफायती भी है।
आयुर्वेद विशेषज्ञ बताते हैं कि विटिलिगो त्रिदोष(वात, पित्त, कफ के असंतुलन) के कारण होता है। इसके अलाव मानसिक तनाव और आनुवांशिक कारक भी इस रोग में सहायक होते हैं। यह एक ऑटोइम्यून डिजिज होता है जिसमें हमारे प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर के अच्छे सेल्स को खत्म करने लगती है। विटिलिगो में दो तरह की स्थितियां होती है पहली जब सफेद दाग शरीर के किसी एक भाग पर ही होता है। दूसरी स्थिति है जब यह सफेद दाग समय के साथ पूरे शरीर में फैलने लगते हैं।
आयुर्वेद में कैसे होता है विटिलिगो का उपचार?
विशेषज्ञ बताते हैं कि विटिलिगो के मरीजों के इलाज के लिए शरीर को डिटॉक्सीफाई करने वाली तकनीक पंचकर्म का इस्तेमाल किया जाता है। जिसमें वमन, विरेचन और रक्तमोक्षण की मदद से शरीर को डिटॉक्स किया जाता है। यदि मरीज लंबे समय से विटिलिगो से ग्रसित है तो इस प्रक्रिया को दोहराया भी जाता है।
लीच थेरेपी
यदि सफेद शरीर के किसी एक भाग में हो- इस स्थिति में वमन और विरेचन के बाद मरीज को लीच(जोंक) थेरेपी दी जाती है। आयुर्वेद में ज्यादातर इसका उपयोग किया जाता है। इस बीमारी में टॉक्सिक ब्लड मुख्य भूमिका निभाती है। इसलिए इसे जोंक की मदद से शरीर से बाहार निकाला लिया जाता है।
शिरावेद थेरेपी
यदि सफेद दाग पूरे शरीर में फैला हो- इस स्थिति में मरीज को शिरावेद थैरेपी दी जाती है। इसमें नीडल या सुई द्वारा शरीर की नसों से गंदे या टॉक्सिक ब्लड को बाहर निकाला जाता है।
मरीजों के कंसेंट के आधार पर की जाती है थेरेपी
डॉक्टर शरद बताते हैं कि पंचकर्म में शामिल थेरेपी के लिए मरीज से उसकी सहमति ली जाती है। साथ ही इन थेरेपी को करने की कुछ गाइडलाइन है जिसे फॉलो करते हुए ही इसे किया जाता है। जैसे-वमन, इसे सभी मरीजों पर नहीं इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए शारीरिक रूप से फिट होना बहुत जरूरी होता है। इसकी जगह पर शिरावेद, लीच थेरेपी या लेपन किया जाता है। हालांकि ये माना जाता है कि वमन और विरेचन के साथ बाकी थेरेपी करन से ज्यादा बेहतर परिणाम मिलते हैं। लेकिन कमजोर या ज्यादा उम्र और छोटी उम्र के मरीजों में इसकी सख्त मनाही होती है।
बाकुची है विटिलिगो की दवा
डॉक्टर बताते हैं कि बाकुची विटिलिगो में मुख्य तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली एक प्रकार की औषधी होती है। इसका उपयोग लेपन थेरेपी में किया जाता है। इसके लेप को तैयार करके विटिलिगो से प्रभावित शरीर के हिस्से पर लगाया जाता है, या इसका काढ़ा तैयार करके मरीज को पिलाया जाता है। यह सारी प्रक्रिया पंचकर्म के साथ ही होती है।
किस तरह का डाइट फॉलो करना चाहिए
डॉक्टर बताते हैं कि 3-4 महिने तक चलने वाली विटिलिगो की थेरेपी के बाद मरीजों को अपनी डाइट का बहुत ध्यान रखना होता है। डाइट में विरुध्द आहार यानि ऐसे भोजन जिनका कॉम्बिनेशन शरीर के लिए हानिकारक होता है उसके सेवन की सख्त मनाही होती है। इनमें प्रमुख है- दूध+दही, दूध+केला, मछली+दूध इत्यादि।