क्या होता है जनेऊ संस्कार? जाने इसके वैज्ञानिक महत्व
नई दिल्ली : हिंदू धर्म में जनेऊ संस्कार (Janeu Sanskar) बेहद जरूरी होता है। इसे यज्ञोपवित संस्कार भी कहते हैं। कहते हैं विवाह तब तक पूरा नहीं होता है जब तक जनेऊ धारण न किया जाए। इसके अलावा कोई भी पूजा पाठ, यज्ञ आदि करने से पहले भी जनेऊ धारण करना चाहिए।
धार्मिक महत्व और वैज्ञानिक महत्व (Religious Significance and Scientific Significance Janeu Sanskar)
जनेऊ सिर्फ धागा नहीं होता है, बल्कि इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी होता है। यदि कोई बालक जनेऊ पहनता है तो वह यज्ञ तथा स्वाध्याय कर सकता है। उसे गायत्री मंत्र की दीक्षा मिलती है। अगर इसके वैज्ञानिक महत्व की बात करें तो इसे पहननें के बाद जातक को कई नियमों का पालन करना पड़ता है जैसे उसे साफ सफाई का खास ध्यान रखना होता है, यही वजह है कि वह कई बीमारियों से दूर रहता है। जनेऊ से हृदय रोग का खतरा भी कम होता है, क्योंकि इससे रक्त संचार सुचारू रूप से संचालित होता है।
तीन सूत्र में होते हैं त्रिमूर्ति (Trimurti are in three sutras)
जनेऊ में मुख्य रूप से 3 धागे होते हैं जिन्हें देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण का प्रतिक माना जाता है। इसे पहनने से ब्रह्रमा, विष्णु, महेश तीनों का आशीर्वाद मिलता है।
कैसे पहनें जनेऊ (how to wear Janeu Sanskar)
जनेऊ को बाएं कंधे के ऊपर और दाईं भुजा के नीचे पहना जाता है। यह बाएं कंधे के ऊपर रहना चाहिए।
जनेऊ पहनने के अनगिनत फायदे
जनेऊ एक पवित्र धागा होता है और इसे पहनने से बुरी शक्तियां हमारे पास नहीं आती। इसके अलावा बुरे सपने भी नहीं आते हैं। इससे याददाश्त अच्छी रहती है। साथ ही यह जातक को याद दिलाता है कि उसे बुरे कर्मों से बचना चाहिए।
इन नियमों का करें पालन
इस पवित्र धागे को धारण करने के बाद जातक को इसकी पवित्रता भंग करने से बचना चाहिए। इसके लिए मल मूत्र त्याग करते समय आप इसे दाएं कान के ऊपर चढ़ा लेना चाहिए। हाथों की अच्छी तरह से साफ करने के बाद ही आप इसे छुएं। यदि जनेऊ को साफ करना हो तो उससे शरीर से उतारे बिना ही उसकी सफाई करें। इसके अलावा यदि इसका का कोई धागा टूट जाता है तो उसकी जगह नया जनेऊ पहन सकते है। 6 महीने से ज्यादा एक जनेऊ नहीं पहनना चाहिए। यदि घर में किसी बच्चे का जन्म होता है या किसी की मृत्यु होती है तो सूतक लग जाता है। सूतक खत्म होने के बाद जातक को जनेऊ जरूर बदलना चाहिए।
अन्य धर्मों में जनेऊ संस्कार (Janeu Sanskar)
इस्लाम मज़हब में मक्का में काबा की परिक्रमा से पहले यह संस्कार किया जाता है।
वहीं सारनाथ की बहुत प्राचीन बुद्ध की मूर्ति को यदि ग़ौर से देखें तो यह ज्ञात होता है कि उनकी छाती पर यज्ञोपवीत की पतली रेखा दिखाई देती है।
वहीं जैन धर्म में भी यह संस्कार संपन्न होता है।
इसके अलावा पारसी और यहूदी धर्म के अनुयायी भी इस परंपरा का पालन करते हैं।
सिख धर्म में इसे अमृत संचार के रूप में जाना जाता है।
ईसाई धर्म में इसे बपस्तिमा कहते हैं।
जनेऊ संस्कार की विधि (janeoo sanskaar kee vidhi)
जनेऊ संस्कार के लिए एक यज्ञ का आयोजन होता है।
इस दौरान जिस बालक का संस्कार होता है वह सहपरिवार यज्ञ में हिस्सा लेता है।
जनेऊ पूर्ण विधि के अनुसार बाएँ कंधे से दाएँ बाजू की ओर शरीर में धारण किया जाता है।
जनेऊ के समय बिना सिले वस्त्र धारण किया जाता है।
इस दौरान हाथ में एक दंड लिया जाता है।
गले में पीले रंग का एक वस्त्र डाला जाता है।
मुंडन के पश्चात एक चोटी रखी जाती है।
पैरों में खड़ाऊ होती हैं।
इस दौरान मेखला या कोपीन धारण की जाती है।
यज्ञ के दौरान सूत्र को विशेष विधि से बनाया जाता है।
यज्ञोपवीत को पीले रंग से रंगा जाता है।
गुरु दीक्षा के बाद ही इसे हमेशा धारण किया जाता है।
यज्ञोपवीत संस्कार हेतु मंत्र
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।
जनेऊ संस्कार कब होना चाहिए?
सामान्य रूप से जनेऊ संस्कार किसी बालक के किशोरावस्था से युवा अवस्था में प्रवेश करने पर किया जाता है। शास्त्रों की मानें तो ब्राह्मण बालक के लिए 07 वर्ष, क्षत्रिय के लिए 11 वर्ष और वैश्य समाज के बालक का 13 वर्ष के पूर्व जनेऊ संस्कार होना चाहिये और किसी भी परिस्थिति में विवाह योग्य आयु के पूर्व यह संस्कार अवश्य हो जाना चाहिए।
जनेऊ संस्कार के लिए शुभ समय – हिन्दू पंचांग के माघ माह से लेकर अगले छ: माह तक यह संस्कार किया जाता है। माह की प्रथमा, चतुर्थी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या या फिर पूर्णिमा तिथि जनेऊ संस्कार को संपन्न करने के लिए शुभ तिथियाँ होती हैं। वहीं यदि हम वार की बात करें तो सप्ताह में बुध, बृहस्पतिवार एवं शुक्रवार इसके लिए अति उत्तम दिन माने जाते हैं। रविवार मध्यम तथा सोमवार बहुत कम योग्य है। लेकिन मंगलवार एवं शनिवार के दिन को त्यागा जाता है क्योंकि इसके लिए ये दोनों ही दिन शुभ नहीं होते हैं।
जनेऊ संस्कार के लिए शुभ मुहूर्त – नक्षत्रों में हस्त, चित्रा, स्वाति, पुष्य, घनिष्ठा, अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, श्रवण एवं रेवती इस संस्कार के लिए शुभ नक्षत्र माने जाते हैं। एक दूसरे नियमानुसार यह भी कहा जाता है कि भरणी, कृत्तिका, मघा, विशाखा, ज्येष्ठा, शतभिषा नक्षत्र को छोड़कर सभी अन्य नक्षत्रों में जनेऊ संस्कार की विधि संपन्न की जा सकती है।