जानें डॉलर की दहाड़ से क्यों कांप रहा रुपया, 80 के पार जाने को बेताब, आपके किचन का बजट ऐसे बिगाड़ेगा Dollar
नई दिल्ली : रसातल में जा रहे रुपये के लिए मंगलवार का दिन बड़ा अमंगल साबित हुआ। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया मंगलवार को 79.36 प्रति डॉलर (अस्थायी) के अपने ऑल टाइम लो पर आ गया। यानी अब यह 80 रुपये प्रति डॉलर के पार भी पहुंच सकता है। ऐसी स्थिति में हालात और खराब हो सकते हैं।
खाद्य तेल और दलहन का बड़ी मात्रा में भारत आयात करता है। डॉलर महंगाई होने से तेल और दाल के लिए अधिक खर्च करने पड़ेंगे जिसका असर इनकी कीमतों पर होगा। ऐसे में इनके महंगा होने से आपके किचन का बजट बिगड़ सकता है। इसके अलावा विदेश में पढ़ाई, यात्रा, दलहन, खाद्य तेल, कच्चा तेल, कंप्यूटर, लैपटॉप, सोना, दवा, रसायन, उर्वरक और भारी मशीन जिसका आयात किया जाता है वह महंगे हो सकते हैं। दरअसल डॉलर कभी इतना महंगा नहीं था , इसे बाज़ार की भाषा में कहा जा रहा हैं कि रुपया रिकॉर्ड लो पर यानी अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। मुद्रा का दाम हर रोजाना घटता बढ़ता रहता है। डॉलर की जरूरत बढ़ती चली गई। इसकी तुलना में बाक़ी दुनिया में हमारे सामान या सर्विस की मांग नहीं बढ़ी, इसी कारण डॉलर महंगा होता चला गया। शेयरखान बाय बीएनपी पारिबा के शोध विश्लेषक अनुज चौधरी ने कहा कि डॉलर के मजबूत होने और उम्मीद से कमजोर घरेलू आर्थिक आंकड़ों के कारण भारतीय रुपया मंगलवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले नए रिकॉर्ड निचले स्तर को छू गया। दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती को परखने वाला डॉलर सूचकांक 0.89 प्रतिशत बढ़कर 106.07 पर पहुंच गया।
पहला कारण कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी। भारत अपनी जरूरत के 80% कच्चे तेल को इंपोर्ट करता है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में एक बैरल कच्चे तेल की कीमत 121 डॉलर से ज्यदा चल रही है। यानी भारत को कच्चे तेल के लिए ज़्यादा डॉलर खर्च करने पड़ रहे हैं। ये डॉलर हमारी तेल कंपनियों को बाज़ार से ख़रीदना पड़ता है। डॉलर की मांग बढ़ रही हैं तो फिर उसकी कीमत भी बढ़ रही है। इसी तरह हम फ़ोन ,कम्प्यूटर, सोना डॉलर खर्च करके देश में मंगवाते है। दूसरा कारण है अमेरिका में ब्याज दर बढ़ना। महंगाई से निपटने के लिए भारत ही नहीं, अमेरिका समेत कई बड़े देश ब्याज दरों को बढ़ा रहे हैं। इसका परिणाम ये है कि जो विदेशी निवेशक भारत के शेयर या बांड बाजार में पैसे लगा रहे थे, उन्हें डॉलर पर अमेरिका में अधिक रिटर्न मिलेगा तो वो डॉलर वापस ले जाएंगे यानी डॉलर की क़िल्लत हो सकती है।