अखिलेश से नहीं टिकता किसी का गठबंधन, राजभर के झटके से पहले कांग्रेस, बीएसपी, शिवपाल ने भी दिए फटके
लखनऊ : सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव एनडीए के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के सम्मान में आयोजित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की डिनर में गए तो उनके अखिलेश यादव से अलग होने के चर्चे राजनीतिक गलियारों में होने लगे। अब दोनों ने घोषणा कर दी है कि वो 18 जुलाई को होने वाले चुनाव में एनडीए उम्मीदवार के समर्थन में हैं। विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा जब वोट मांगने लखनऊ आए तो शिवपाल और राजभर दोनों की अनदेखी की गई। अखिलेश यादव ने रालोद नेता जयंत चौधरी को फोन किया लेकिन ओम प्रकाश राजभर को नहीं बुलाया। बाद में राजभर ने कहा कि ऐसा लगता है कि अखिलेश को अब उनकी जरूरत नहीं है। हालांकि राजभर अभी भी अखिलेश के साथ गठबंधन में हैं।
विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने जाति आधारित छोटी पार्टियों से गठजोड़ कर मजबूत गठबंधन बनाया था। हाल के घटनाक्रम से पता चलता है कि गठबंधन टूटने की ओर बढ़ रहा है। विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के तुरंत बाद अखिलेश यादव के चाचा और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव और महान दल के तत्कालीन अध्यक्ष केशव देव मौर्य के साथ रिश्ते खराब हुए। जहां केशव मौर्य ने सपा से नाता तोड़ लिया, वहीं शिवपाल यादव से भी बातचीत लगभग बंद हो गई। अब एसबीएसपी प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने भी सपा से अलग होने के संकेत दिए हैं। भले ही शिवपाल और राजभर अभी अखिलेश के साथ हैं लेकिन इस गठबंधन में विवाद शुरू हो गए हैं।
2019 में सपा और बसपा ने गठबंधन किया। दोनों ने साथ चुनाव लड़ा और हार गए। इसी के बाद दोनों अलग हो गए। दोनों ही पार्टी अध्यक्षों ने एक दूसरे के काम पर सवाल उठाए। यहां तक कि सपा ने मायावती के कई नेता अपनी पार्टी से जोड़े। ऐसे में मायावती ने भी रामपुर और आजमगढ़ में सपा के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारा। इससे पहले साल 2017 में सपा और कांग्रेस भी साथ थी। दोनों ने साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा। हालांकि इसमें हार के बाद दोनों के बीच रिश्ते बिगड़ गए और अभी तक इनमें सुधार नहीं हो पाया। यहां तक कि 2019 चुनाव में अखिलेश ने कांग्रेस को गठबंधन में शामिल नहीं किया और 2022 चुनाव में भी कांग्रेस से दूर है।