वाराणसी : वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर में मिले कथित शिवलिंग पर हिंदुओं को धार्मिक अनुष्ठान करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। इसमें कहा गया है कि चूंकि श्रावण का महीना शुरू हो रहा है इसलिए हिंदुओं को शिवलिंग की पूजा और अनुष्ठान करने की अनुमति दी जाए। याचिका कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति दल के अध्यक्ष राजेश मणि त्रिपाठी ने दाखिल की है। ज्ञानवापी-शृंगार गौरी प्रकरण की मेरिट पर जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में शुक्रवार को हिंदू पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने बहस पूरी की।
उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी को लेकर प्रतिवादी की ओर से उपासना स्थल एक्ट के उल्लंघन का लगातार हवाला दिया जाता है, जबकि असलियत में यहां हिन्दूओं के अधिकारों का हनन किया गया है। उन्होंने बताया कि विशेष उपासना स्थल एक्ट-1991 के बनने से पहले यह परिसर हिन्दूओं का पूजा स्थल घोषित था। उस स्थान पर यह कानून लागू नहीं होता है। इसके लिए 1947 के धार्मिक स्वरूप जानना होगा। धार्मिक स्वरूप साबित करने के लिए केवल बिल्डिंग काफी नहीं बल्कि उनके सभी पक्षों को जानना पड़ेगा। वेद, शास्त्रत्त्, उपनिषद, स्मृति, पुराण से साबित है कि पूरी सम्पत्ति मंदिर की है। यहां जबरदस्ती घुस आने या नमाज पढ़ लेने से मस्जिद की सम्पत्ति नहीं हो जाती है।
उन्होंने यह भी बताया कि 1983 में काशी विश्वनाथ नियमावली का रजिस्ट्रेशन है। उसमें भी परिसर को हिंदुओं का अधिकार पूजन करने का माना गया है। इसके बाद 1991 में राममंदिर मामले के बाद यहां बैरिकेडिंग कर दी गई। 1993 तक लगातार पूजन होता रहा। व्यासजी तहखाने में पूजा करते थे। परिसर में विराजमान शृंगार गौरी, गणेश, गौरी व हनुमान की मूर्तियों की पूजा होती रही। 1993 में हिन्दुओं को अंदर जाने से रोक दिया गया। लेकिन ऊपर मस्जिद में नमाज जारी रही। उन्होंने इस्माइल फारुकी के केस का हवाला दिया कि नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है। मस्जिद का होना जरूरी नहीं है।