ईरान न्यूक्लियर बम बनाने में सक्षम
(ईरान के सुप्रीम लीडर आयोतुल्ला खमेनी के सलाहकार ने कही बड़ी बात)
अलजजीरा के अरबी सेवा को दिए एक साक्षात्कार में ईरान के सुप्रीम लीडर आयोतुल्ला खमेनी के वरिष्ठ सलाहकार कमल खर्राज़ी ने कहा है कि ईरान परमाणु बम बनाने में सक्षम है। उनका कहना था कि कुछ ही दिनों में हम 60 प्रतिशत तक यूरेनियम संवर्धन करने में सक्षम हो जाएंगे और हम आसानी से 90 प्रतिशत संवर्धित यूरेनियम का उत्पादन कर सकेंगे।
वरिष्ठ सलाहकार ने स्पष्ट करते हुए यह भी कहा कि यद्यपि ईरान तकनीकी रूप से नाभिकीय बॉम्ब बनाने में सक्षम है लेकिन अभी उसे यह निर्णय करना बाकी है कि वह इसे बनाएगा या नही।
कमल खर्राजी का कहना था कि अभी तक ईरान ने नाभिकीय बम बनाने का कोई फैसला नहीं लिया है।
गौरतलब है कि अमेरिका लगातार ईरान पर यह दबाव बनाता रहा है कि वह यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम को छोड़ दें क्योंकि इस कार्यक्रम के जरिए वह नाभिकीय हथियार बना सकता है, जबकि ईरान लगातार कहता रहा है कि उसका मकसद यूरेनियम संवर्धन के जरिए नाभिकीय ऊर्जा का शांतिपूर्ण प्रयोग है और वह किसी तरीके के नाभिकीय हथियार के निर्माण के प्रति व्यग्र नहीं है।
ईरान का नाभिकीय कार्यक्रम :
1950 के दशक में ईरान ने शांतिपूर्ण तरीके से परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत की थी लेकिन बात तब बिगड़ गयी जब वर्ष 2002 में यह बात सामने आई कि नाभिकीय परमाणु अप्रसार संधि ( एनपीटी ) पर हस्ताक्षर करने के बावजूद ईरान अपने नाभिकीय हथियारों को तेज़ी से इकठ्ठा कर रहा है। इस कारण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर चिंता बढ़ने लगी।
अमेरिका समेत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के सदस्य देशों को ईरान से एक प्रकार का खतरा महसूस होने लगा। 2006 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने ईरान पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगाए। यूएस और ईयू ने भी तब ईरान पर प्रतिबंध लगाए थे। इससे ईरान के अन्य देशों के साथ व्यापारिक संबंधों पर बुरा असर पड़ने लगा , ईरान आर्थिक मुसीबतों का सामना करने लगा।
इसके बाद ईरान को यह रास्ता छोड़ने के लिए अमेरिका जैसे विकसित देशों ने उससे वार्ता करने का मन बनाया। जुलाई 2015 में ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के 5 स्थायी सदस्य देशों अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन तथा अस्थायी सदस्य जर्मनी और यूरोपीय संघ ने ईरान के साथ एक परमाणु समझौता किया। इसमें सुरक्षा परिषद् के पाँचों सदस्य और जर्मनी को सम्मिलित रूप से फाइव प्लस वन कहा जाता है।
इस समझौते में ईरान के सामने कई शर्त रखी गई। पहली शर्त थी कि, ईरान को अपने संवर्द्धित यूरेनियम के भण्डार को कम करना होगा। इसके तहत, ईरान को उच्च संवर्द्धित यूरेनियम का 98 फीसदी हिस्सा नष्ट करना था या देश के बाहर भेजना था ताकि उसके परमाणु कार्यक्रम पर विराम लग सके।
दूसरी शर्त के मुताबिक यूरेनियम को 3.67 फीसद तक ही संवर्द्धित करने की इजाज़त दी गई, ताकि उसका इस्तेमाल बिजली उत्पादनों या अन्य ज़रूरतों में ही किया जा सके। उल्लेखनीय है कि नाभिकीय हथियार बनाने के लिए यूरेनियम का संवर्द्धन 90 फीसदी से ज्यादा यानी उच्च संवर्द्धन जरूरी होता है, अन्यथा उससे नाभिकीय हथियार नहीं बनाये जा सकते।
तीसरी शर्त यह थी कि ईरान कुल सेंट्रीफ्यूज का दो तिहाई संख्या कम करेगा। इसके तहत, लगभग 6 हज़ार सेंट्रीफ्यूज रखने पर सहमति बनी जबकि डील से पहले ईरान के पास कुल 19 हज़ार सेंट्रीफ्यूज थे।सेंट्रीफ्यूज एक प्रकार की मशीन होती है जिसकी सहायता से यूरेनियम का संवर्द्धन किया जाता है।
नाभिकीय हथियार के निर्माण के लिये उच्च संवर्द्धित यूरेनियम की काफी मात्रा में जरूरत होती है और 5-6 हज़ार सेंट्रीफ्यूज से हथियार बनाने के लिये आवश्यक यूरेनियम के संवर्द्धन में काफी लंबा समय लगता है। ऐसे समय में जब दुनिया के अधिकतर देश परमाणु कार्यक्रम चला रहे हैं तब केवल ईरान को रोकना तर्कसंगत नहीं होता। लिहाज़ा इन सभी शर्तों का उद्देश्य ईरान को नाभिकीय हथियार बनाने से पूरी तरह रोकना नहीं था बल्कि, ईरान के परमाणु कार्यक्रम को विलंब करना था ताकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को किसी भी तरह के संकट से जूझने के लिये समय मिल सके। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने वर्ष 2015 में ईरान के साथ हुए परमाणु डील से अमेरिका के हट जाने का ऐलान किया था।