त्याग, तपस्या और बलिदान की याद दिलाता है स्वतंत्रता दिवस
इस साल देश अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस अमृत दिवस के रुप में मना रहा है. ये दिन देश के उन वीरों की गौरव गाथा और बलिदान का प्रतीक है जिन्होंने अंग्रेजों के दमन से देश आजाद कराने में अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया था। 15 अगस्त 1947 को हमें ब्रिटिश शासन के 200 सालों के राज से आजादी मिली थी। ये दिन हमारे फ्रीडम फाइटर्स के त्याग और तपस्या की याद दिलाता है। महात्मा गांधी, भगत सिंह, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ.राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सुखदेव, गोपाल कृष्ण गोखले, लाला लाजपत राय, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, चंद्र शेखर आजाद, खुदीराम बोस समेत असंख्य वीरों ने देश के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया था और आजाद भारत के सपने को साकार किया था। ये इन असाधारण वीरों का बलिदान ही है कि हम आज आजाद भारत में सांस ले पा रहे हैं। स्वतंत्रता दिवस केवल एक दिन विशेष नहीं बल्कि, देश के उन असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति हमारे सम्मान को प्रदर्शित करने का जरिया भी है जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया था। ये दिन राष्ट्र के प्रति अपनी एकजुटता और निष्ठा दिखने का दिन भी है। साथ ही ये पावन अवसर युवा पीढ़ी को राष्ट्र की सेवा के लिए प्रेरित करता है। राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को समझने और देशभक्ति का महत्व समझने के लिए ये स्वतंत्रता दिवस हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है
–सुरेश गांधी
हमारे वेदों का वाक्य है- मृत्योः मुक्षीय मामृतात्। अर्थात, हम दुःख, कष्ट, क्लेश और विनाश से निकलकर अमृत की तरफ बढ़ें, अमरता की ओर बढ़ें। यही संकल्प आज़ादी के इस अमृत महोत्सव का भी है। आज़ादी का अमृत महोत्सव यानी- आज़ादी की ऊर्जा का अमृत, आज़ादी का अमृत महोत्सव यानी स्वाधीनता सेनानियों से प्रेरणाओं का अमृत। आज़ादी का अमृत महोत्सव यानी नए विचारों का अमृत। नए संकल्पों का अमृत। आज़ादी का अमृत महोत्सव यानी आत्मनिर्भरता का अमृत। और इसीलिए, ये महोत्सव राष्ट्र के जागरण का महोत्सव है। ये महोत्सव, सुराज्य के सपने को पूरा करने का महोत्सव है। ये महोत्सव, वैश्विक शांति का, विकास का महोत्सव है। मतलब साफ है स्वतंत्रता दिवस जश्न का दिन तो है ही, लेकिन यह सिर्फ जश्न का ही दिन नहीं है। हमें जश्न के साथ चिंतन करने की भी जरुरत हैं। हमें दुनिया के मुकाबले अपनी व्यावहारिक रुप से तुलना करने की जरुरत है। ताकि कोरी कल्पना से बाहर निकलकर हम यर्थाथ का भी सामना कर सकें। हमें अपने देश पर गौरव है, लेकिन नीति, विचार, व्यावहार की वजह से कहीं हमारा देश पिछड़ तो नहीं रहा है? इसे भी जांचने-परखने की जरुरत है। किसी भुलावे के साथ जीने से बेहतर है कि हम सच को स्वीकार करें और उसे बेहतर बनाने के लिए प्रयास करें। भारत का स्वतंत्रता दिवस हर वर्ष 15 अगस्त को मनाया जाता है।
सन 1947 में इसी दिन भारत के निवासियों ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। हर साल पूरे जोश और देशभक्ति के साथ स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। भारत के कई हिस्सों इस दिन परेड और प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है। इसके साथ दुनिया भर में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। भारत इस वर्ष 75वीं वर्षगांठ अमृत महोत्सव के रुपमें मना रहा है। आजादी के 75 साल! सबसे प्राचीन सभ्यताओं में एक की जन्मभूमि रही भारत-भूमि के समय-सागर में किसी बुलबुले के मानिंद हैं ये साल। इतने सालों में सभ्यता तो क्या, उसका हाशिया भी तैयार नहीं होता, लेकिन 15 अगस्त 1947 की आधी रात को उस गौरवशाली क्षण में, जब दुनिया सो रही थी, यह देश नये विहान के संकल्प के साथ जगा हुआ था। फैसला करना था कि अतीत को नये सिरे से सजाना है, पुरानेपन में लौट जाना है या धर्म, जाति, लिंग, क्षेत्र, भाषा और परंपरा के बंधनों को झटककर एक नयी राह- मानवीय स्वतंत्रता की राह- पर चलना है। उस रात सिंधु सभ्यता के वारिसों ने खुद से एक वादा किया कि उन्हें अतीत के भग्वनावशेषों में कैद नहीं होना है, बल्कि भारत के नाम से ‘राष्ट्र-रूप’ होना है। उस क्षण राष्ट्र ने मानवता के एक नये युग में कदम रखा था।
‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’
यह हम सभी का सौभाग्य है कि हम आजाद भारत के इस ऐतिहासिक कालखंड के साक्षी बन रहे हैं। हमारे यहां मान्यता है कि जब कभी ऐसा अवसर आता है तब सारे तीर्थों का एक साथ संगम हो जाता है। आज एक राष्ट्र के रूप में भारत के लिए भी ऐसा ही पवित्र अवसर है। ऐसा लग रहा है जैसे आज़ादी के असंख्य संघर्ष, असंख्य बलिदानों का और असंख्य तपस्याओं की ऊर्जा पूरे भारत में एक साथ पुनर्जागृत हो रही है। उन सभी वीर जवानों को भी नमन करने का अवसर है, जिन्होंने आज़ादी के बाद भी राष्ट्ररक्षा की परंपरा को जीवित रखा, देश की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिए, शहीद हो गए। जिन पुण्य आत्माओं ने आज़ाद भारत के पुनर्निर्माण में प्रगति की एक एक ईंट रखी, 75 वर्ष में देश को यहां तक लाए, उन सभी के चरणों में भी नमन करने का अवसर है अमृत महोत्सव। जब हम ग़ुलामी के उस दौर की कल्पना करते हैं, जहां करोड़ों-करोड़ लोगों ने सदियों तक आज़ादी की एक सुबह का इंतज़ार किया, तब ये अहसास और बढ़ता है कि आज़ादी के 75 साल का अवसर कितना ऐतिहासिक है, कितना गौरवशाली है। इस पर्व में शाश्वत भारत की परंपरा भी है, स्वाधीनता संग्राम की परछाई भी है, और आज़ाद भारत की गौरवान्वित करने वाली प्रगति भी है। इतिहास साक्षी है कि किसी राष्ट्र का गौरव तभी जाग्रत रहता है जब वो अपने स्वाभिमान और बलिदान की परम्पराओं को अगली पीढ़ी को भी सिखाता है, संस्कारित करता है, उन्हें इसके लिए निरंतर प्रेरित करता है। किसी राष्ट्र का भविष्य तभी उज्ज्वल होता है जब वो अपने अतीत के अनुभवों और विरासत के गर्व से पल-पल जुड़ा रहता है। फिर भारत के पास तो गर्व करने के लिए अथाह भंडार है, समृद्ध इतिहास है, चेतनामय सांस्कृतिक विरासत है। इसलिए आज़ादी के 75 साल का ये अवसर एक अमृत की तरह वर्तमान पीढ़ी को प्राप्त होने का अवसर है। एक ऐसा अमृत जो हमें प्रतिपल देश के लिए जीने, देश के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित करेगा।
हुतात्माओं को नमन करने का अवसर है अमृत महोत्सव
इसी तरह आज़ादी की लड़ाई में अलग-अलग संग्रामों, अलग-अलग घटनाओं की भी अपनी प्रेरणाएं हैं, अपने संदेश हैं, जिन्हें आज का भारत आत्मसात कर आगे बढ़ सकता है। 1857 का स्वतंत्रता संग्राम, महात्मा गांधी का विदेश से लौटना, देश को सत्याग्रह की ताकत फिर याद दिलाना, लोकमान्य तिलक का पूर्ण स्वराज्य का आह्वान, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज का दिल्ली मार्च, दिल्ली चलो, ये नारा आज भी हिन्दुस्तान भूल नहीं सकता है? 1942 का अविस्मरणीय आंदोलन, अंग्रेजों भारत छोड़ो का वो उद्घोष, ऐसे कितने ही अनगिनत पड़ाव हैं जिनसे हम प्रेरणा लेते हैं, ऊर्जा लेते हैं। ऐसे कितने ही हुतात्मा सेनानी हैं जिनके प्रति देश हर रोज अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता है। 1857 की क्रांति के मंगल पांडे, तात्या टोपे जैसे वीर हों, अंग्रेजों की फौज के सामने निर्भीक गजर्ना करने वाली रानी लक्ष्मीबाई हों, कित्तूर की रानी चेन्नमा हों, रानी गाइडिन्ल्यू हों, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, अशफाकउल्ला खां, गुरू राम सिंह, टिटूस जी, पॉल रामासामी जैसे वीर हों, या फिर पंडित नेहरू, सरदार पटेल, बाबा साहेब आंबेडकर, सुभाषचंद्र बोस, मौलाना आजाद, खान अब्दुल गफ्फार खान, वीर सावरकर जैसे अनगिनत जननायक! ये सभी महान व्यक्तित्व आजादी के आंदोलन के पथ प्रदर्शक हैं। आज इन्हीं के सपनों का भारत बनाने के लिए, उनको सपनों का भारत बनाने के लिए हम सामूहिक संकल्प ले रहे हैं, इनसे प्रेरणा ले रहे हैं। हमारे स्वाधीनता संग्राम में ऐसे भी कितने आंदोलन हैं, कितने ही संघर्ष हैं जो देश के सामने उस रूप में नहीं आए जैसे आने चाहिए थे।
ये एक-एक संग्राम, संघर्ष अपने आप में भारत की असत्य के खिलाफ सत्य की सशक्त घोषणाएं हैं, ये एक-एक संग्राम भारत के स्वाधीन स्वभाव के सबूत हैं, ये संग्राम इस बात का भी साक्षात प्रमाण हैं कि अन्याय, शोषण और हिंसा के खिलाफ भारत की जो चेतना राम के युग में थी, महाभारत के कुरुक्षेत्र में थी, हल्दीघाटी की रणभूमि में थी, शिवाजी के उद्घोष में थी, वही शाश्वत चेतना, वही अदम्य शौर्य, भारत के हर क्षेत्र, हर वर्ग और हर समाज ने आज़ादी की लड़ाई में अपने भीतर प्रज्वलित करके रखा था। जननि जन्मभूमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसी, ये मंत्र आज भी हमें प्रेरणा देता है। कोल आंदोलन हो या ‘हो संघर्ष’, खासी आंदोलन हो या संथाल क्रांति, कछोहा कछार नागा संघर्ष हो या कूका आंदोलन, भील आंदोलन हो या मुंडा क्रांति, संन्यासी आंदोलन हो या रमोसी संघर्ष, कित्तूर आंदोलन, त्रावणकोर आंदोलन, बारडोली सत्याग्रह, चंपारण सत्याग्रह, संभलपुर संघर्ष, चुआर संघर्ष, बुंदेल संघर्ष, ऐसे कितने ही संघर्ष और आंदोलनों ने देश के हर भूभाग को, हर कालखंड में आज़ादी की ज्योति से प्रज्वलित रखा। इस दौरान हमारी सिख गुरू परंपरा ने देश की संस्कृति, अपने रीति-रिवाज की रक्षा के लिए, हमें नई ऊर्जा दी, प्रेरणा दी, त्याग और बलिदान का रास्ता दिखाया। और इसका एक और अहम पक्ष है, जो हमें बार-बार याद करना चाहिए। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है- ‘सम-दुःख-सुखम् धीरम् सः अमृतत्वाय कल्पते’। अर्थात्, जो सुख-दुःख, आराम चुनौतियों के बीच भी धैर्य के साथ अटल अडिग और सम रहता है, वही अमृत को प्राप्त करता है, अमरत्व को प्राप्त करता है। अमृत महोत्सव से भारत के उज्ज्वल भविष्य का अमृत प्राप्त करने के हमारे मार्ग में यही मंत्र हमारी प्रेरणा है। आइये, हम सब दृढ़संकल्प होकर इस राष्ट्र यज्ञ में अपनी भूमिका निभाएँ।
देश की आत्मा को वाणी मिली थी
इस देश की आत्मा को वाणी मिली थी, जिसमें अतीत के सारे श्रेष्ठ मूल्यों का उच्चार था और भविष्य के प्रत्येक क्षण को इन मूल्यों से आयत्त करने का उत्साह। उस आधी रात के उस क्षण की तरफ हमें हर साल लौटना होता है। तिरंगे को आकाश में फहराने से पहले रस्सी की गांठों को बांधते और खोलते, दरअसल इस देश का हर आम और खास आदमी अतीत के उस गौरवशाली क्षण से साक्षात्कार करता है। उस क्षण मन में प्रश्न जागते हैं कि बीते सालों की यात्रा में यह देश किन मोर्चों पर आगे बढ़ा और वे कौन-से मुकाम रहे, जहां हम बस गोल-गोल चक्कर काटते रह गये। 135 करोड़ लोगों की आबादी वाले इस लोकतंत्र में रोटी-कपड़ा-मकान, सेहत, शिक्षा और आगे बढ़ने के अवसर के लिहाज से जो जितना आगे या पीछे है, वहीं से खड़ा होकर देश-जीवन के आगे बढ़ने, पीछे जाने या ठहरे होने के उत्तर तलाशता है। इन जवाबों में खुशी झांकती है कि ढाई से साढ़े तीन फीसदी की सालाना कछुआ-चाल से सरकने वाली अर्थव्यवस्था आज पूरी दुनिया को चौंकाते हुए किसी चीते की तरह सात फीसदी की रफ्तार से छलांग लगा रही है। अंतरिक्ष से लेकर समुद्र के गर्भ तक भारतीय मेधा की धमक है और आधी से ज्यादा आबादी अपनी नौजवानी की ऊर्जा से विकास का कोई भी लक्ष्य भेद सकती है। और इन जवाबों में यह दुख भी झांकता है कि कतार में खड़े आखिरी आदमी के आंख से आंसू पोंछने का वादा अभी पूरा किया जाना बाकी है। जाति, धर्म, लिंग और क्षेत्र के भेदों को पाटना अभी बाकी है।
संकल्प लेने का दिन है स्वतंत्रा दिवस
बीते सालों में राजनीतिक अस्थिरता ने स्थिति को और भी विकट बना डाला था। पर एक राष्ट्र के रूप में हमारे जीवट और लोकतांत्रिक साहस का ही परिणाम था कि इस हताशा भरे ठहराव की जकड़ का रास्ता निकाल ही लिया गया। देश के आर्थिक जीवन में अधिक लोगों की भागीदारी है और जीवन स्तर बेहतर हुआ है। उदारीकरण ने आर्थिक वातावरण के साथ सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में भी सकारात्मक बदलाव किया है। डॉ राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि उस राजनीतिक दर्शन का कोई अर्थ नहीं है जिसकी सोच के केंद्र में लोगों का हित और उनकी समस्याएं नहीं हैं। महात्मा गांधी ने स्वराज में विकास के बहुलतावादी और सतत गतिमान होने की बात कही थी। बाबा साहेब आंबेडकर ने आर्थिक और सामाजिक विषमता को दूर करने का संदेश दिया था और चेतावनी दी थी कि ऐसा नहीं हुआ तो राजनीतिक लोकतंत्र खतरे में पड़ जायेगा। देश की बड़ी आबादी तक समृद्धि और विकास के लाभ नहीं पहुंच सके हैं। गरीबी, बीमारी और अशिक्षा के साये में करोड़ों लोग जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं। समाज में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अवहेलना की प्रवृत्ति का निरंतर बढ़ते जाना देश की एकता और अखंडता तथा भविष्य की आकांक्षाओं के लिए बेहद नुकसानदेह है। लोकतांत्रिक देश के रूप में सफल होने के लिए नागरिकों में एका और अधिकारों के प्रति परस्पर सम्मान की भावना मूलभूत शर्त है। बलिदान हुए देशभक्तों, महान राष्ट्र निर्माताओं तथा लोकतांत्रिक भारत को सशक्त करने वाले नेताओं और विभिन्न कार्यों में संलग्न होकर अथक मेहनत और मेधा से इसे आगे ले जाने वाले अनगिनत लोगों के प्रति श्रद्धा के भाव के साथ हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि विषमता, अन्याय और शोषण की समाप्ति में हम हरसंभव योगदान करेंगे, और परस्पर मेलजोल की भावना के साथ एक-दूसरे का हाथ थामे राष्ट्र की महायात्रा के सहभागी बनेंगे।