दस्तक-विशेष

कश्मीर में त्रिनेत्रधारी पर ही अब टेढ़ी दृष्टि !!

के . विक्रम राव

स्तंभ: हर धर्म का उद्गम स्थल होता है। सब पुनीत होते हैं। सुरक्षित रहते हैं। मसलन, इस्लाम का मक्का रहा। यहूदियों का इस्राइल। ईसाईयों का बीटिट्यूडस की पर्वत श्रृंखला ‘‘सर्मन ऑन दि माउंट‘‘ वाला, बौद्धों का सारनाथ, जैनियों का बिहार का गंगाक्षेत्र इत्यादि। ये सब तीर्थस्थल हैं। मगर गत माह सनातनियों के शंकरपल पर आशंका जन्मी है।

इस सिलसिले में खबर है कि इस कश्मीर शैवस्थल पर अधिकारियों ने ड्रिल मशीन द्वारा काटपीट शुरू की है। नष्टप्राय हो जायेगा, यदि न थमा तो। यहां करीब तेरह सदियों पुरानी शंकरपल-शिला है। श्रीनगर के निकट दागवान नदी के पूर्व में महादेव पर्वत श्रृंखला पर, दाचीग्राम (दस गांव), अधुना शालीमार उद्यान (डल झील के पूरब) के समीप है। नया थीड हरवान दारूल उलूम निकट ही है।

इस शंकरपल शिला का महात्म्य है। शंकरपल का इतिहास दैवी है। नौंवी सदी के मध्य में कश्मीर शैव मतावलंबी (अद्वैत वेदांत) के प्रवर्तक वासुगुप्त के स्वप्न में स्वयं भगवान शिवशंकर आये थे और संकेत दिया कि इस पहाड़ी झरने पर बनी शिला पर परमाराध्य, लोकवल्लभ, अनासक्त, वैरागी, महादेव ने अपने 77 शिवसूत्र उत्कीर्ण किये हैं। भक्त वासुगुप्त को आदेश था कि वह स्थल पर जायंे। तर्जनी से शिला स्पर्श करंे। वह पलटी और सारे सूत्र वासुगुप्त ने कंठस्थ कर प्रसारित किये गये। फिर वह शिलापट्ट पलट कर मूल स्थिति पर अवस्थित हो गयी।

यहीं से कश्मीरी शैवधर्म की उत्पत्ति भी हुयी। उसी युग के ही चिंतक, रहस्यसाधक, कवि, तर्कशास्त्री अभिनवगुप्त थे। उनके नाम लखनऊ विश्वविद्यालय में एक शोध संस्थान की रचना हुयी थी। इसके निदेशक रहे डा. नवजीवन रस्तोगी जो कश्मीर शैवधर्म के निष्णात है। बीए में मेरे सहपाठी थे। हमदोनों कुलाधिपति प्रो. के.ए. सुब्रमन्यम अय्यर के छात्र थे। डा. नवजीवन बाद में विश्वविद्यालय यूनियन के अध्यक्ष (1959) भी निर्वाचित हुये थें।

इन्हीं नवजीवन रस्तोगी को उनके कश्मीरी मित्रों ने दुखद सूचना दी कि शंकरपल शिला पर उत्खनन किया जा रहा है। मशीनों द्वारा ड्रिलिंग की जा रही है। तत्काल उन्होंने घाटी में सुहृदों को सचेत किया। बंगलूरू के सुनील रैना और स्वामी अमृतानंद देवतीर्थ ने भी भक्तों को सचेत कर दिया। किन्तु भाजपाई विधान पार्षद अजय कुमार का भिन्न मत था। वे बोले कि उन्हीं के प्रयासों से इस धर्म स्थान का सौंदर्यीकरण प्रस्तावित है। हालांकि वर्षों से कश्मीर के आम जन का कटु अनुभव यही रहा कि राजनेताओं ने सौंदर्यीकरण की आड़ में सार्वजनिक स्थलों का व्यवसायीकरण तथा अतिक्रमण किया है।

लेखक ने आज (15 अगस्त 2022) उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को फोन द्वारा स्थिति के बारे में अवगत करा दिया। पर ड्रिलिंग कार्रवाही केवल स्थगित हुयी है। फिर चली तो? आशंका है कि यह पावन शिव-आराधना स्थल फिर निर्माण कराने हेतु ध्वस्त किये जाने की कगार पर आ जाये तो? रंज इस बात का है कि अब पृथकतावादी धारा 370 निरस्त होने के बाद कम से कम सनातनी धर्मस्थल तो क्षति और नाश से ग्रस्त न हों। विगत 75 वर्षों से तो जो दुर्गत आस्थावानों की इस घाटी में हुयी है वह सर्वविदित है। अब सुधारात्मक परिवर्तन अपेक्षित है। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल श्री मनोज सिन्हा ने एक बातचीत में फोन पर मुझे बताया कि वे तत्काल सुरक्षार्थ कदम उठा रहे हैं। ‘‘इस शंकरपाल स्थल की न केवल सुरक्षा सुनिश्चित की जायेगी, वरन तीर्थस्थल लायक सुविधायें भी मुहैय्या करायी जायेंगी। इसी प्रकार के अन्य आस्था स्थलों की सूचना मिलती है तो उनका भी विकास किया जायेगा‘‘, श्री मनोज सिन्हा ने बताया।

अतः इतनी आशा की किरण तो हिन्दुओं में जगी है कि शंकरपल धर्म केन्द्र भी न केवल ड्रिलिंग मशीन द्वारा तोड़ फोड़ से बचायी जायेगी, वरन विश्व के अन्य ईशकेन्द्रों की भांति भव्य बनेगा। इस परिवेश में मक्का का वह स्थल काबिले-तारीफ है जहां लाखों अकीदतमंद मुसलमान हर साल हज के लिये जाते हैं। यहीं हीरा शिखर पर पैगंबर को धर्म स्थापना हेतु दैवी आदेश मिला था। माउन्ट साईनाई (इस्राइल) में तो धर्मों का संगम रहा। यहीं से यहूदी मतावलम्बी को अनुप्राणित किया गया था। बुद्ध ने सारनाथ और महावीर ने बिहार (गंगाक्षेत्र) में बौद्ध और जैन धर्म प्रारम्भ किया था। सभी स्थल आधुनिक पैमाने पर विकसित हो गये हैं।

इतनी सदियों तक यह स्थल बहुत उपेक्षित रहा। इस्लामी शासकों को न फिक्र थी, न जरूरत। मगर गत माह इस शिला को ही ध्वस्त करने की कोशिश हुयी। अर्थात कश्मीर में वास्तविक सेक्युलर राज आने के बाद भी हिन्दू अल्पमत पर होता रहा जुल्म चालू है। आशा है कि श्री मनोज सिन्हा के शासन में अब स्थिति और सुरक्षा बेहतर होगी। धर्म स्थलों का अतिक्रमण और दुरूपयोग वर्जित होगा। यह अपेक्षा बलवती हुयी है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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