देहरादून: आज उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंडवासियों को बटर फेस्टिवल की शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा, ” सभी क्षेत्रवासियों को अण्डुड़ी उत्सव (बटर फेस्टिवल) की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं! मेरी इच्छा थी कि मैं भी आप सभी के मध्य आकर ‘बटर फेस्टिवल’ में उपस्थित रहूं लेकिन मौसम की खराबी की वजह से यह संभव नहीं हो पाया। आशा करता हूं कि शीघ्र ही आप सभी के बीच आकर आपसे भेंट करूंगा। “
दरअसल मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी प्रकृति और पर्यावरण से बेहद लगाव रखते हैं और प्रकृति से जुड़े त्योहारों से उनकी भावनाएं गहराई से जुड़ी हुई हैं। भारत में सबसे अनोखा और दिलचस्प त्यौहार है बटर फेस्टिवल, जो 13000 फीट की ऊंचाई पर मनाया जाता है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में दयारा बुग्याल में बटर फेस्टिवल मनाया जाता है। उत्तरकाशी जिले के रैथल क्षेत्र के अंतर्गत दयारा बुग्याल स्थित है। बटर फेस्टिवल को स्थानीय भाषा में अंडूडी कहा जाता है। यह त्योहार पूरी तरह से प्रकृति को समर्पित है।
इस त्यौहार में स्थानीय लोग प्रकृति और अपने देवता का पूजन करते हैं। देवता की पूजा के साथ ही इस त्यौहार की शुरुआत हो जाती है। इस त्यौहार में सबसे पहले ही गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है, क्योंकि इंद्र के प्रकोप से गोकुल वासियों को बचाने के लिए श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था। गोवर्धन पर्वत को ग्वालों का सहायक कहा जाता है, ऐसे में यह सभी लोग गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं और भगवान का आभार जताते हैं। गोवर्धन पर्वत की पूजा के बाद इष्ट देवता और वन देवियों की पूजा की जाती है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां इष्ट देवता की कृपा से ही दुधारू पशु स्वस्थ और फल फूलते हैं। स्थानीय लोग प्रकृति और इष्ट देवता की पूजा के साथ ही इस त्यौहार की शुरुआत करते हैं।
रैथल और उसके आसपास के स्थानीय लोग बुग्यालों के निचले क्षेत्र में अपने दुधारू पशुओं को चुगान के लिए ले जाते हैं। अंडूडी यानी बटर फेस्टिवल को मनाने की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो जाती हैं। इस त्यौहार में लोग एक दूसरे को बटर लगाकर शुभकामनाएं देते हैं। इस त्यौहार में होली की तरह पिचकारी छोड़ी जाती है, लेकिन रंग की नहीं बल्कि दूध और छाछ की। बटर फेस्टिवल का आनंद लेने के लिए दयारा बुग्याल पहुंचने वाले हर पर्यटक यहां स्थानीय इन लोगों के साथ बिल्कुल रम जाते हैं।
बटर फेस्टिवल में राधा और कृष्ण के प्रतीक के तौर पर एक युवती और युवक को राधा कृष्ण बनाया जाता है, जो मुख्य गेट पर लगे मखन की मटकी को तोड़कर इस त्यौहार की शुरुआत करते हैं। मटकी टूटते ही सभी लोग एक दूसरे पर पिचकारी से दूध और छाछ डालते नजर आते हैं। लोग एक दूसरे को गालों पर बटन लगाते हैं। हरे-भरे बुग्याल में बहुत शानदार तरीके से बटर फेस्टिवल मनाते लोग नजर आते हैं। महिलाएं एक दूसरे को बटर लगाती हुई नजर आती हैं। इस त्यौहार का सीधा सा मतलब यह है कि प्रकृति के द्वारा दुधारू पशुओं को जो आहार मिलता है। उसका धन्यवाद स्थानीय लोग यहां इस त्यौहार के जरिए करते हैं। महिलाओं का कहना है इस त्यौहार की शुरुआत चंद्र सिंह राणा जी ने की थी, पहले यह सिर्फ गौशालाओं में ही मनाया जाता था। लेकिन अब इसे दयारा बुग्याल में मना कर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने का कार्य किया जा रहा है।