उत्तर प्रदेशराज्यवाराणसी

देश की आजादी में कलमकारों की भूमिका अतुलनीय: प्रो हरेराम त्रिपाठी

धर्म का स्वरुप बिगडेगा तो विनाश का मार्ग बनेगा : प्रो शिवराम
सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय संगोठी का आयोजन

सुरेश गांधी

वाराणसी। स्वतंत्रता आंदोलन भारतीय इतिहास का वह युग है, जो पीड़ा, कड़वाहट, दंभ, आत्मसम्मान, गर्व, गौरव तथा सबसे अधिक शहीदों के लहू को समेटे है। स्वतंत्रता के इस महायज्ञ में समाज के प्रत्येक वर्ग ने अपने-अपने तरीके से बलिदान दिए। इस स्वतंत्रता के युग में साहित्यकार और लेखकों ने भी अपना भरपूर योगदान दिया। अंग्रेजों को भगाने में कलमकारों ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई। उनकी भूमिका अतुलनीय है। यह बाते सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी ने कहीं। वे योगसधना केन्द्र मे एक सप्ताह से चल रहे आजादी का अमृत महोत्सव एवं संस्कृत सप्ताह के अन्तर्गत “स्वतंत्रता संग्राम में साहित्यकारों का योगदान“ विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कही। प्रो त्रिपाठी ने कहा कि साहित्यकारों के हर शब्द राष्ट्र के लोगों को जागृत कर मूल भाव राष्ट्रीयता, भारतीयता को अन्तर्मन से जोड़ दिया जो देश की आजादी मे अलख जगाया। बंकिमचन्द्र चटर्जी, रवींद्र नाथ टैगोर, बालगंगाधर तिलक एवं अन्य राष्ट्र भक्तो ने अपने कलम से अमरत्व का मार्ग प्रशस्त किया।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के साहित्य विभागाध्यक्ष प्रो शिवराम शर्मा ने बतौर मुख्य वक्ता कहा कि संस्कृत वांगमय में सम्पूर्ण ब्रहमांड के ज्ञान तत्व निहित हैं। इसी से हम वैश्वीक स्तर पर प्रतिष्ठित हुये हैं। हमारे विद्वान साहित्यकारों ने अपने रचना, छन्द, गीत आदि के माध्यम से स्थायी भाव अन्तःमन से जोड़कर जन जन को जागृत कर जोश भरकर उनके इच्छा-शक्ति को बढ़ाया। प्रो शर्मा ने कहा कि भारतीय ज्ञान राशि सम्पूर्ण प्रकृति व जगत कल्याण के लिये है, यही हमारा धर्म भी है। जब भी धर्म का स्वरुप बदलकर अधर्म बनेगा तो विनाश की स्थिति उतपन्न होगी। हम परतंत्र होंगे। इसलिये सदैव धर्म आदर्श के साथ स्वीकार आत्मिक, मानसिक रूप से स्वतन्त्र रहें तभी वास्तविक स्वतंत्रता होगी।

स्वाधीनता संग्राम में साहित्यकारों में महावीर प्रसाद द्विवेदी, मैथलीशरण गुप्त, श्रीधर पाठक, माखनलाल चतुर्वेदी, सुभद्रा कुमारी चौहान एवं जयशंकर प्रसाद आदि लोगों ने स्वाधीनता संग्राम मे अपनी तलवाररुपी कलम को पैना किया। आम जनता के अंदर राष्ट्र भावना जगाकर प्रेरित किया। मुख्य अतिथि प्रो रामकिशोर त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृत, हिन्दी एवं आल्हा के छंदो कविताओं से स्वाभिमान जागृत हुआ तभी हम आजाद हुये।

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