राज्य संग्रहालय में करें 1000 साल पुरानी 9 देवियों की मूर्तियों के दर्शन
भोपाल : नवरात्रि का महीना मां दुर्गा की आराधना के चलते विशेष फलदायी माना जाता है। इस महीने में घरों से लेकर मंदिरों तक आपको मां दुर्गा की खूबसूरत मूर्तियां देखने को मिल जाएंगी। राज्य संग्रहालय 40, 50 नहीं बल्कि 1000 साल की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासतों को समेटे हुए है। इसमें मां दुर्गा की विभिन्न स्वरूपों की झलक आपको देखने के लिए मिलती है। जो राज्य की विभिन्न जगहों की लाल व काली मिट्टी से बनी हुई हैं। इस तरह की प्रतिमाएं शहर के बहुत कम मंदिरों में देखने के लिए मिलेंगी। इन मूर्तियों की कलात्मकता अद्भुत है।
11वीं सदी की चामुण्डा के मुख पर रौद्रभाव से विस्फारित नयन अवनत उदर एवं जटामुकुट मुण्ड माला का आलेखन है। चामुण्डा को सप्तमातृका में शाक्त एवं तांत्रिक सम्प्रदाय में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह मूर्ति हिंगलाजगढ़ से पुरातत्व विभाग की खुदाई में मिली थी। मूर्ति की बनावट और इसकी कलात्मकता गजब की है। मूर्तिकार ने इसे बड़े ढंग से गढ़ा है।
मन्दसौर से प्राप्त 10वीं सदी की गौरी विष्णु धर्मोत्तर के अनुसार पार्वती ही उमा व गौरी के नाम से जानी जाती है। प्रतिमा निर्माण के नियमों में कम अंतर होने की वजह से उमा और पार्वती दोनों ही चतुराष्ट्रा कहलाई जाती हैं। दोनों ने अक्षमालापद्म कमण्डल धारण किए हैं। जबकि चौथी भुजा से साहित्यिक अभिलेखों के अनुसार उमा को दर्पण व गौरी को अक्षमाला धारण किए होना चाहिए।
शहडोल से प्राप्त हुई 10वीं सदी की योगिनी द्विभंग मुद्रा में शिल्पांकित है। अलंकृत, प्रभामण्डल युक्त अष्टभुजी योगिनी भुजाओं में क्रमश अभय मुद्रा, चक्र, पद्म, शंख धारण किए हैं। बाकी भुजाएं खंडित हैं। यह प्रतिमा चौसठ योगिनी में से एक है। प्रतिमा के पाद्पीठ पर कपालिनी उत्कीर्ण हैं।
प्रतिमा विकसित कमल पुष्प पर उत्कटासन एवं बीस भुजाओं के साथ शिल्पांकित हैं। परिकर में मालाधारी विद्धाधर एवं पाद्पीठ पर सिहों का आलेखन है। क्षेमकारी दुर्गा का उल्लेख दुर्गा सप्तशती एवं देवी महात्म में किया गया है।
कलश हिन्दू धर्म में पूजनीय माना जाता है। शिवपुरी से 11वीं व 12वीं शताब्दी ईसवी के प्राप्त कलश का आकार घट की तरह है। इसके ऊपरी भाग में आम्र पर्ण व मुख पर श्रीफल बना है। इसे पुष्प वल्लरियों व लघु आकार घंटियों एवं त्रिवलय से सजाया गया है। शास्त्रों के अनुशार कलश के मुख पर विष्णु, कण्ठ में रूद्र व मूल में ब्रह्मा मध्य में मातृकाएं समाहित हैं।