देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पेशावर कांड के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की पुण्यतिथि पर मुख्यमंत्री कैम्प कार्यालय में उनके चित्र पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। मुख्यमंत्री ने कहा कि वे साहस एवं वीरता की प्रतिमूर्ति एवं महान स्वाधीनता संग्राम सेनानी थे। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी की शौर्य गाथा सदैव हमारी स्मृतियों में जीवंत रहेगी।
तारीख 30 अप्रैल, जगह पेशावर का किस्साखानी बाजार, साल 1930, सामने हजारों स्वतंत्रता सेनानी खड़े थे, अंग्रेजी अफ्सर ने रॉयल गढ़वाल राइफल्स को आदेश दिये और कहा गढ़वाली ओपन फायर, बगल में खड़े भारत माता के सच्चे सपूत ने उससे उंची आवाज में कहा गढ़वाली सीज फायर, सैनिकों ने अपने हथियार जमीन पर रख दिये। ये जाबांज सैनिक था चंद्रसिंह, वीर चंद्र सिंह, वीर चंद्र सिंह गढ़वाली….. 24 दिसंबर 1891 को गढ़वाल की थैलीसैण तहसील के एक सुदूर गाँव में जन्मे चन्द्रसिंह भी पेशावर में तैनात टुकड़ी का हिस्सा थे। बहुत कम पढ़ा-लिखा होने और अंग्रेज़ फ़ौज में नौकरी करने के बावजूद गढ़वाली स्वतंत्रता आंदोलन की तपिश से खुद को अछूता नहीं रख पाये थे। फौजी होने के बावजूद वे आज़ादी की गुप्त मीटिंगों और सम्मेलनों में शिरकत किया करते थे। अप्रैल 1930 में पेशावर के किस्साखानी बाज़ार में खां अब्दुल गफ्फार खां के नेतृत्व में हजारों लोग सत्याग्रह कर रहे थे। इसे कुचलने के लिए अंग्रेज़ हुकूमत ने रॉयल गढ़वाल राइफल्स को तैनात किया गया था। यह भारत के इतिहास का वो दौर था जब सारा देश आज़ादी के आन्दोलन में हिस्सेदारी करने को आतुर हो रहा था।
1857 के ग़दर के बाद यह भारत के इतिहास में घटी सैन्य विद्रोह की सबसे बड़ी घटना थी. बौखलाए अंग्रेजों ने गोरे सिपाहियों को कत्लेआम का आदेश दिया। बड़ी संख्या में जानें गईं और चन्द्रसिंह गढ़वाली और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया। जब अंग्रेज़ कप्तान ने गढ़वाली से बगावत की वजह जाननी चाही तो चन्द्रसिंह गढ़वाली ने कहा ” हम हिंदुस्तानी सिपाही हिंदुस्तान की हिफाजत के लिए भर्ती हुए हैं, न कि अपने भाइयों पर गोली चलाने के लिए!”
23 अप्रैल 1930 के दिन पेशावर में हज़ारों सत्याग्रही जुलूस निकाल रहे थे। एक मोटरसाइकिल सवार अंग्रेज़ सिपाही इस भीड़ को चीरता हुआ निकला जिससे कई लोग घायल हो गये। गुस्साई भीड़ ने सिपाही को दबोच कर पीटा और मोटरसाइकिल को आग लगा दी। इस घटना से मौके पर मौजूद अंग्रेज़ अफसरान घबरा गए और रॉयल गढ़वाल राइफल्स के सिपाहियों को किस्साखानी बाज़ार के काबुली फाटक पर तैनात कर दिया गया। कमांडर ने लाउडस्पीकर पर लोगों को घर जाने का आदेश दिया लेकिन भीड़ की उत्तेजना बेकाबू हो चुकी थी.कमांडर ने अंततः गोली चलाने का आर्डर जारी करते हुए चिल्लाते हुए कहा “गढ़वाली ओपन फायर!” कमांडर की ऐन बगल से उससे भी तेज़ एक निर्भीक आवाज़ आई “गढ़वाली सीज़ फायर!” यह चन्द्रसिंह गढ़वाली थे जिनकी बात मानते हुए 67 सिपाहियों ने अपनी बंदूकें ज़मीन पर रख दीं। कोर्टमार्शल के बाद सभी सिपाहियों को सज़ा हुई। आजीवन कारावास के रूप में सबसे बड़ी सजा चन्द्रसिंह को मिली।
1947 में आज़ादी मिलने के बाद भी स्वतंत्र भारत में इस योद्धा को अपने साम्यवादी विचारों के कारण कई बार जेल जाना पड़ा। शर्म की बात है कि आज़ाद भारत में जब उन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया तो वारंट में पेशावर काण्ड करने को उनका अपराध बताया गया था। आजीवन संघर्ष करते और भीषण आर्थिक अभावों से जूझते हुए चन्द्रसिंह गढ़वाली की 1 अक्टूबर, 1979 को दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। आज उनकी पुण्य तिथि के मौके पर सारा हिन्दुस्तान उन्हें याद कर रहा है।