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स्वाद, सेहत और गर्म तासीर का हर्बल खजाना, जानिए चित्रक से लेकर कायफल के फायदे

herbs-for-brain-55ffd51606cc4_lये हर्बल चीजें वाकई सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हैं। सर्दियों में इन्हें भोजन में शामिल करने से काफी लाभ मिलता है। जानिए अकरकरा, सौंठ, कायफल और इस तरह की कुछ और चीजों के सेहतभरे फायदों के बारे में…

अकरकरा: कम प्रचलित अकरकरा सामूहिक और राजसी दावतों की दाल, कढ़ी, मसाला बाटियों, गट्टा और पुलाव, कबूली के लिए जरूरी है। इसका प्रयोग दंतमंजनों और पेस्ट में होता है। ये पाचक और रुचिवर्धक होता है। इसके उपयोग से दांतदर्द, सूजन,मसूढ़ों की पीड़ा मिटती है व दांत मजबूत होते हैं। तुतलाहट की चिकित्सा में भी यह असरकारक है।

कालीमिर्च: काली मिर्च कच्ची अवस्था में हरी पकने पर लाल और सुखाने पर काले रंग के गोल दाने हो जाते हैं। प्राचीन काल में ये विदेश व्यापार व विदेशी मुद्रा उपार्जन का प्रमुख स्रोत थी। ये विश्वभर की रसोईयों के व्यंजनों का अनिवार्य हिस्सा है।  नेत्र ज्योति बढ़ाने, मोटापा कम करने, पेट के रोग, सभी तरह के बुखार में इसका विशेष प्रयोग होता है। यह भूख खोलती है।  कालीमिर्च का अचार व मुरब्बा भी बनाया जाता है। कालीमिर्च को गाय के दही में घिसकर आंखों में लगाने से रतौंधी मिटती है। दही गुड़ और काली मिर्च के मिश्रण से नकसीर मिटती है। दही, पुराना गुड़, और कालीमिर्च पुराना जुकाम मिटाते हैं। कालीमिर्च चूर्ण व शहद चाटने से सर्दी, खांसी में लाभ होता है।

कायफल: पूरे हिमालय क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले छोटे वृक्ष की खाकी, भूरी लालिमायुक्त छाल को कायफल कहते हैं। यह गर्म तासीर वाला,कड़वा, कसैला और चरपरा होता है। ये वायु, पित्त, कफ तीनों दोषों से उत्पन्न श्वास, ज्वर, जुकाम, मूत्र रोग जीर्ण, अतिसार, बवासीर, बड़ी आंत की सूजन और एनिमिया में उपयोगी है। गाय के घी में कायफल का हलवा पुराने सिरदर्द में प्रयोग करते हैं। कायफल तिल के तेल में पकाकर बनाया तेल जोड़ों और मांसपेशियों के दर्द में लाभदायक है।

 चित्रक: इसके सफेद फूलों वाला अधिक व लाल व काले फूल का पौधा कम मिलता है। स्वाद व पाचन में चरपरी, हल्की, बहुत गर्म तासीर वाली रुचिवर्धक,मोटापा कम करने वाली, दीपन, पाचन, बवासीर, पेटदर्द, वायु, आंतों व गुदा की सूजन, संग्रहणी, कमिृ व पीलिया में लाभदायक है। चित्रक चूर्ण ग्वारपाठे के गूदे पर रखकर खाने से बढ़ी हुई तिल्ली ठीक होती है। दूध या जल के साथ घिसकर लेप करने से दागधब्बे मिटते हैं।

जायफल : सेव जैसे ये सुंदर वृक्ष कर्नाटक व केरल में बहुतायत से उत्पन्न होते हैं। भोजन में स्वाद व खुशबू के लिए डाला जाता है। बच्चों को दस्त व जुकाम, खांसी होने पर जायफल को गर्म पानी में घिसकर चटाया जाता है। मुंहासों पर कच्चे दूध में घिसकर लगाते हैं। कफ और वायु के रोगों, अतिसार, पेचिश व संग्रहणी में खाया जाता है। इसके फूल जावित्री कहलाते हैं। श्वास रोग में पान में दो-तीन पंखुड़ी जावित्री डालकर, बहुमूत्र में जावित्री व मिश्री दूध में डालकर, दस्त में छाछ में डालकर,

गठिया में सोंठ व जावित्री मिश्रण गर्म पानी से लेने पर लाभ होता है।

तेजपत्ता : ये पत्ते गुण में गरम, सुगंधित हैं। वायु, कफ नाशक, भोजन में रुचि और स्वाद बढ़ाने वाले ये पत्ते हर घर में दाल, सब्जी, पुलाव आदि में छौंक में प्रयोग किए जाते हैं। जुकाम में, छींके आने और सिर भारी होने, स्वाद खत्म होने पर पांच-पांच ग्राम तेजपत्ता चूर्ण बनाकर चाय की तरह दूध और चीनी में उबालकर पीएं। सिरदर्द में तीन तेजपत्ते डंठल सहित गर्म पानी में पीसकर सिर पर दो घंटे के लिए लेप करें।

दालचीनी: तज व दालचीनी के मध्यम कद के हरे-भरे वृक्षों की छाल ही दालचीनी होती है। दालचीनी दवाओंं, गरम मसाले तथा रसोई में काम आती है। तज की छाल छाल में दालचीनी की मिलावट होती है। दोनों में फर्क ये है कि तज की छाल मोटी, तेलरहित होती है। जबकि दालचीनी की छाल पतली, गुलाबी,  चरपरी, तेलयुक्त है। ये गर्म, हल्की, वायुनाशक,पित्त बढ़ाने वाली, कफ, वायु, विष प्रभाव, चर्मरोग, ह्दय रोग कृमिरोग, जुकाम, बवासीर, पाचन रोग दूर करती है। खाने के बाद आधा चम्मच चूर्ण लेने से शुगर नियंत्रण में रहती है।

लौंग: दक्षिण प्रदेशों व जंजीबार में उत्पन्न होने वाले वृक्षों के फूल हैं लौंग। इसके पत्ते भी सुगंधित होते हैं। ये चरपरी ठंडी व कड़वी होती है। ये मुंह की बदबू, डकार, वमन में उपयोगी है। दांत दर्द में ये विशेष गुणकारी है। गले की सूजन, खांसी, नजला, जुकाम, एसिडिटी, अजीर्ण, सिरदर्द, हिचकी में लाभदायक है।

सोंठ: कच्ची अदरक चटनी, मुरब्बा, अचार के रूप में, सब्जी-दाल में सुगंध स्वाद व पाचन बढ़ाने के लिए डाली जाती है। अदरक की चाय से सर्दी, जुकाम, खांसी, सिरदर्द, ठीक होता है। सूखी अदरक सोंठ होती है। ये रुचिकारक, गठिया नाशक, त्रिदोष नाशक, पाचक, स्वादिष्ट, गर्म, अतिसार ह्दयरोग उदररोग नाशक है।

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