ज्ञान भंडार

बेटियों को हर महीने सिर्फ दो रुपये छात्रवृति दे रही सरकार

two-rupee-568f3cdab35ca_exlstहिमाचल सरकार हर दो-तीन साल बाद अपने मंत्रियों और विधायकों के भत्ते बढ़ा रही है, वहीं सूबे की बेटियों की स्कूलों में अधिक से अधिक मौजूदगी दर्ज करवाने के लिए शुरू की गई छात्रवृत्ति को बढ़ाना दशकों से भूले बैठी है। बेटियों को हिमाचल सरकार प्रतिमाह मात्र दो रुपये वजीफा दे रही है। पहली से पांचवीं कक्षा में साल भर 90 फीसदी हाजिरी पूरी होने पर सरकार बीस रुपये सालाना छात्रवृत्ति देती है।

हर साल 30 से 32 हजार लड़कियों को अटेंडेंस स्कॉलरशिप दी जाती है। दो महीने प्रदेश में स्कूल बंद रहते हैं, ऐसे में सरकार दस महीने का ही वजीफा देती है। दो रुपये का वजीफा कब से दिया जा रहा है, इसका सही आंकड़ा भी प्रारंभिक शिक्षा निदेशालय के पास नहीं है।

बताया जा रहा है कि साल 1971 में हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद से यह छात्रवृत्ति दी जा रही है। यानी बीते करीब 45 वर्षों में सरकार ने एक बार भी इस छात्रवृत्ति की राशि को बढ़ाने पर विचार नहीं किया है। निदेशक प्रारंभिक शिक्षा डॉ. आरके परुथी ने बताया कि छात्रवृत्ति योजनाओं की राशि बढ़ाने पर विचार चल रहा है।

छात्रवृत्ति प्राप्त करने वाले बच्चों की वर्तमान में संख्या अधिक है और छात्रवृत्ति देने के लिए राशि कम। शिक्षा विभाग के पास राज्य सरकार की ओर से 4.46 करोड़ का बजट छात्रवृत्तियां देने के लिए दिया गया है। इसमें गर्ल्स अटेंडेंस स्कॉलरशिप के अलावा माध्यमिक मेधावी छात्र योजना और आईआरडीपी छात्रवृत्ति योजना की राशि भी दी जाती है।

माध्यमिक मेधावी छात्र योजना के तहत प्रदेश के 124 शिक्षा ब्लॉकों में पहले और दूसरे स्थान पर रहने वाले दो-दो लड़कों और लड़कियों को सालाना 800 रुपये दिए जाते हैं। आईआरडीपी से संबंधित पहली से पांचवीं कक्षा के बच्चों को सालाना 150 रुपये और छठी से आठवीं के लड़कों को 250 रुपये और लड़कियों को 500 रुपये सालाना छात्रवृत्ति दी जाती है। हर साल करीब 70 हजार बच्चों को यह छात्रवृत्ति दी जाती है। बजट की कमी के चलते ही हाजिरी वाली छात्रवृत्ति में आज तक वृद्धि नहीं हुई है।

उदयपुर (लाहौल-स्पीति)। लाहौल-स्पीति जिले में पहली से पांचवीं कक्षा तक के बच्चों को दिए जाने वाले जनजातीय वजीफे में पिछले साठ वर्षों से महज छह रुपये की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 1956 से राज्य सरकार जनजातीय बच्चों को लाहौल-स्पीति पैटर्न योजना के तहत 2 रुपये छात्रवृत्ति प्रदान करती आ रही थी।

वर्ष 2009-10 में भाजपा सरकार ने दो रुपये से बढ़ाकर आठ बढ़ोतरी तो कर दी, लेकिन उसे एक साल की बजाए दस माह कर दिया। छह माह तक बर्फ की कैद में रहने वाले जिले के बच्चों को स्कूलों से जोड़ने के लिए इतनी कम छात्रवृति एक भद्दे मजाक से कम नहीं है।

एक सच ये भी- 1956 में यहां शिक्षकों का वेतन 14 रुपये प्रति माह था। आज शिक्षकों को वेतन 35 से 40 हजार प्रतिमाह है। जबकि पांच साढ़े दशकों में छात्रवृत्ति महज छह रुपये बढ़कर आठ रुपये पहुंची है। केलांग-2 के बीपीईओ शिव दयाल ने सालाना आठ रुपये छात्रवृत्ति देने की पुष्टि की है।

Related Articles

Back to top button