लंदन हाईकोर्ट में नहीं चल पाया भगोड़े नीरव मोदी का झूठ, इन दो लोगों की गवाही आई काम
नई दिल्ली। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI) ने कहा कि लंदन हाई कोर्ट (London High Court) में नीरव मोदी मामले (Nirav Modi case) की अंतिम सुनवाई के दौरान दो मनोरोग विशेषज्ञों की गवाही (Testimony of two psychiatric experts) मोदी की खराब मनोवैज्ञानिक स्थिति के तर्क को खारिज करने में महत्वपूर्ण साबित हुई और इसके चलते फैसला भारत के पक्ष में आया। भगोड़ा हीरा कारोबारी नीरव मोदी पंजाब नेशनल बैंक से 6,805 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के मामले में वांछित है। मोदी ने मानसिक स्वास्थ्य का हवाला देते हुए भारत प्रत्यर्पित किए जाने के खिलाफ लंदन हाई कोर्ट में अपील दाखिल की थी, जिसे अदालत ने बुधवार को खारिज कर दिया।
न्यायाधीशों जेरेमी स्टुअर्ट-स्मिथ और रॉबर्ट जे की अदालत ने कहा कि विशेषज्ञ गवाहों के बयान के आधार पर कहा गया है कि नीरव मोदी में अभी तक मानसिक रोग का कोई लक्षण नहीं दिखा है, उसने खुदकुशी का विचार जाहिर किया है, लेकिन कभी आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं की और ना ही ऐसा करने की किसी योजना का खुलासा किया।
उन्होंने यह भी कहा कि मुंबई की जिस आर्थर रोड जेल की बैरक 12 में प्रत्यर्पण के बाद हीरा कारोबारी को रखा जाना है उसमें सुरक्षा उपाय किए गए हैं जिससे सुनिश्चित होगा कि आत्महत्या की कोशिश के जोखिम को कम करने के लिए प्रभावी तरीके से सतत निगरानी हो। फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए सीबीआई अधिकारियों ने कहा कि अंतिम सुनवाई के दौरान, विशेषज्ञों -कार्डिफ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एंड्रयू फॉरेस्टर और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सीना फजल ने हाई कोर्ट के समक्ष सबूत पेश किए।
ब्रिटेन के हाई कोर्ट का बयान महत्वपूर्ण
सीबीआई ने एक बयान में कहा, ‘ब्रिटेन के हाई कोर्ट का निर्णय भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के सीबीआई के प्रयासों के लिहाज से एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है और यह इस बात की भी याद दिलाता है कि बड़ी धनराशि की धोखाधड़ी करके कानूनी प्रक्रिया से भागने वाले खुद को इस प्रक्रिया से ऊपर न मानें।’