शादी में क्यों लिए जाते हैं 7 फेरे और क्यों होते हैं 7 वचन? जानें वजह
नई दिल्ली : हिंदू धर्म में 16 संस्कार का विशेष महत्व है. इन्हीं में से एक ही विवाह संस्कार. इस संस्कार में दो लोग जिंदगी भर के लिए एक-दूसरे से बंध जाते हैं. माना जाता है कि शादी दो आत्माओं का मिलन होती विवाह वो पवित्र बंधन है जो न सिर्फ दो लोगों का मिलन है, बल्कि यह उत्तरदायित्व का वहन करना भी सिखाता है. विवाह में सात की संख्या बहुत मायने रखती है, सात फेरे (Marriage 7 phere) सात वचन, सात जन्म, हिंदू धर्म में इन सभी का विवाह से गहरा नाता है. धार्मिक मान्यता है कि हिंदू प्रथा में सात फेरे के बिना विवाह संपन्न नहीं होता. आइए जानते हैं शादी के समय 7 फेरे ही क्यों लिए जाते हैं, क्या है इन सात फेरों का महत्व.
धर्म ग्रंथों के अनुसार पृथ्वी पर सारी महत्वपूर्ण चीजों (important things) की संख्या सात ही मानी गई है जैसे संगीत के सात सुर, इंद्रधनुष के सात रंग, सात समुद्र, सप्ततऋषि, सात दिन, सात चक्र, मनुष्य की सात क्रियाएं, सात तारे, आदि. यही वजह है कि वैदिक और पौराणिक मान्यताओं में 7 की संख्या को बहुत शुभ माना गया है. इन्हीं को ध्यान में रखते हुए सात फेरे लेना की मान्यता है.
हिंदू संस्कृति में शादी में सात फेरे लेने का संबंध सात जन्मों का बंधन माना जाता है. विवाह में वर-वधू के सात फेरे लेने की प्रक्रिया को सप्तपदी भी कहा जाता है. अग्नि को साक्षी मानकर वर-वधू सात फेरे लेते हैं और सात जन्मों तक तन, मन और आत्मा से पति-पत्नी के रिश्ते को निभाने का वादा करते हैं. ये सात फेरे ही हिंदू विवाह की स्थिरता का मुख्य स्तंभ है.
सात फेरे 7 वचन के साथ लिए जाते हैं. हर फेरे का एक वचन होता है जिसके जरिए वर-वधू जीवनभर हर तरह से साथ निभाने की प्रतिज्ञा लेते हैं. हिंदू प्रथा (Hindu practice) में इन सात फेरों और वचन का महत्व है दो लोगों का शारीरिक और आत्मिक रूप से एक होना, जिसे विवाह का पवित्र बंधन (sacred bond) कहा जाता है. कहते हैं कि मनुष्य सात जन्म लेता है, इसलिए वर-वधु को सात जन्मों का साथी कहा जाता है.