रायपुर : छत्तीसगढ़ में दो दिवसीय विधानसभा का सत्र 1 दिसंबर से शुरू हो रहा है। जिसमें भूपेश सरकार कई महत्वपूर्ण विधेयक पास कराने की तैयारी में है। छत्तीसगढ़ में 50 फीसदी से अधिक आरक्षण को हाईकोर्ट द्वारा असंवैधानिक बताने के बाद अब राज्य सरकार ने आबादी के हिसाब से आरक्षण देने का फैसला किया है।
आपको बता दें कि कांग्रेस की सरकार एसटी-एससी (ST-SC) और अन्य श्रेणी के लोगों को नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने के लिए कानून बनाने की योजना बनाई है।
इस फैसले के तहत राज्य में आरक्षण की लिमिट अब 81 फीसदी तक हो जाएगी। इसके लिए राज्य सरकार ने विधानसभा के विशेष सत्र में विधेयक लाने का फैसला किया है। दो दिन का यह विशेष सत्र एक दिसंबर से शुरू होगा।
यह विधेयक पारित होने के बाद राज्य के आदिवासियों को 32 फीसदी आरक्षण मिल सकेगा। वहीं एससी एसटी के लिए 12 तो ओबीसी वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण निर्धारित हो सकती है। इसी प्रकार सामान्य वर्ग के लिए ईडब्ल्यू कोटा के तहत 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान होगा। इस विधेयक के विधानसभा में पारित होने के बाद राज्य में रह रहे सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए केवल 19 फीसदी सीटें ही शेष बचेंगी।
बता दें कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए EWS कोटे को वैध करार दिया था। इसके बाद से ही कई राज्यों में आरक्षण कोटे की लिमिट बढ़ाने की तैयारी शुरू हो गई थी। छत्तीसगढ़ की सरकार ने इस दिशा में सबसे पहले प्रस्ताव तैयार किया है। इस प्रस्ताव में साफ तौर पर कहा गया है कि आरक्षण राज्य में रह रहे लोगों की आबादी के हिसाब से होगा। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों के अलावा समाज के अन्य वर्गों को भी उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण का लाभ दिया जाएगा।
आधिकारिक सूत्रों की माने तो छत्तीसगढ़ में आदिवासियों को 32 फीसदी आरक्षण होगा। वहीं अनुसूचित जाति का आरक्षण कोटा 12 फीसदी और ओबीसी का 27 फीसदी तक निर्धारित किया जा रहा है। इसी क्रम में 10 फीसदी आरक्षण कोटा ईडब्ल्यूएस कैटेगरी में सामान्य वर्ग को भी मिलेगा। ऐसा होने पर राज्य में आरक्षण 81 फीसदी तक हो जाएगा। शेष 19 फीसदी सीटों पर सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए अवसर उपलब्ध हो सकेंगे।
कांग्रेस सरकार यह कदम ऐसे समय में उठाने जा रही है, जब आदिवासी समुदाय प्रदेश में 32 फीसदी आरक्षण की मांग कर रहे हैं। वहीं, विधानसभा चुनाव में एक साल का वक्त बचा है। ऐसे में सरकार कोई मुसीबत मोल नहीं लेना चाहती है। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर की है और इस मुद्दे को हर करने के अपने विकल्पों पर विचार कर रही है।