शास्त्रों में बताए जलाभिषेक के विशेष नियम ,शिवलिंग पर ऐसे जल अर्पित करने से नहीं मिलता पूजा का लाभ
नई दिल्ली : हिंदू धर्म में शिवलिंग को भगवान शिव का रूप माना गया है. शिवलिंग पर जलाभिषेक करने की परंपरा पौराणिक काल से चली आ रही है. शिवलिंग पर जलाभिषेक करना एक प्रकार से भगवान शिव की स्तुती करना है. कहते हैं कि भगवान शिव को जल धारा अत्यंत प्रिय है, इसलिए जो भी भक्त शिवलिंग पर जल अर्पित करता है, उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उसके जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं. भगवान शिव की आराधना करने से जीवन आनंदित व सुखमय बना रहता है.
शास्त्रों में शिवलिंग पर जल अर्पित करने के विशेष नियम बताए गए हैं. पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि शिवलिंग पर उचित नियमों से जलाभिषेक करने पर ही पूजा का लाभ प्राप्त होता है.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शिवलिंग पर जल अर्पित करते समय दिशा का ध्यान रखना चाहिए. शिवलिंग पर कभी भी पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके जल नहीं चढ़ाना चाहिए. शिवजी को हमेशा उत्तर दिशा की तरफ मुख करके जल अर्पित करना चाहिए. इससे भगवान शिव के साथ माता पार्वती की भी कृपा बनी रहती है.
शिवलिंग पर हमेशा तांबे के पात्र से जल अर्पित करना शुभ होता है. इसके अलावा आप चांदी व कांसे के पात्र भी इस्तेमाल कर सकते हैं परंतु भूलकर भी स्टील के बर्तन से शिवजी को जल अर्पित ना करें. इससे शिव की पूजा सफल नहीं मानी जाती और उसका परिणााम नहीं मिलता है.
इस बात का भी ध्यान रखें कि शिवजी को तांबे के बर्तन में कभी भी दूध नहीं चढ़ाना चाहिए, यह दूध विष के समान माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार, शिवलिंग पर कभी भी शंख से जल नहीं चढ़ाना चाहिए, इससे शिवजी की कृपा नहीं मिलती है.
शिवलिंग पर कभी भी तेजी से जल नहीं चढ़ाना चाहिए. हमेशा धीरे धार में भगवान शिव को जल अर्पित करना चाहिए. इसी तरह हमेशा बैठकर ही शिवजी को जल अर्पित करना चाहिए. इससे शिवजी की कृपा बनी रहती है और पूजा सफल होती है.