बिहार की तर्ज पर झारखंड में भी होनी चाहिए जातिगत जनगणना, कांग्रेस नेता ने रखी मांग
रांची (Ranchi) । झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी (Jharkhand Pradesh Congress Committee) के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा कि झारखंड (Jharkhand ) में भी बिहार की तर्ज पर जातिगत जनगणना होनी चाहिए। यह समय की मांग है। जातिगत आधार पर जनगणना नहीं होने से झारखंड में जनजातीय समुदाय के साथ ही अनुसूचित जाति, पिछड़े वर्ग और अन्य पिछड़े वर्ग की वैसी बड़ी आबादी किसी भी प्रकार के लाभ से वंचित है।
बंधु तिर्की ने जातीय जनगणना के फायदे गिनाए
बंधु ने कहा कि जातिगत जनगणना नहीं होने से न तो घोषित आरक्षण नियमों का फायदा मिल पा रहा है और न ही अनेक लाभकारी योजनाओं का। इस कारण अभावग्रस्त लोगों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति बदतर होती जा रही है। उन्होंने कहा कि यदि जातिगत आधार पर जनगणना (Census) शुरू नहीं होगी, तो समाज की वास्ताविक जरूरतों के अनुरूप आरक्षण नियमों का जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन करना मुश्किल है।
झारखंड गठन का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाया है!
बंधु तिर्की ने कहा कि झारखंड गठन के बाद सच्चे अर्थो में यहां के आदिवासियों, मूलवासियों, अन्य पिछड़े वर्गों को वह लाभ नहीं मिल पाया जिन सपनों को पूरा करने के लिए झारखंड का गठन किया गया था। इसलिये यह बहुत जरूरी है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Chief Minister Hemant Soren) इस संदर्भ में अविलंब सकारात्मक निर्णय लें। झारखंड में वर्षों से अनेक लोग वंचित और पिछड़े हैं और उनके लिए सरकार (Government) ने अनेक लाभकारी योजनाएं बनायीं और उसे कार्यान्वित भी किया।
भारत में कब तक हुई थी जातीय जनगणना
गौरतलब है कि औपनिवेशिक शासनकाल के दौरान वर्ष 1931 तक जितनी भी बार जनगणना हुई, अंग्रेजों ने इसमें जाति का भी जिक्र किया। हालांकि, 1951 में जब पहली बार आजाद भारत में जनगणना हुई तो केवल एसटी और एससी वर्ग का जिक्र किया। 2011 की जनगणना में पहली बार सामाजिक, आर्थिक और जाति आधारित जनगणना की गई लेकिन जाति वाले आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए। 2015 में कर्नाटक में ऐसा किया गया लेकिन आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए। बिहार में लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग की गई। बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने जातीय जनगणना के निर्देश जारी कर दिए हैं। इसके खिलाफ दायर याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी हैं।