साल 2004 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किए गए एल्युलिसाट को
देखने दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं। टूरिस्टों की बढ़ती संख्या को देखते हुए यहां मनोरंजन का खास इंतजाम किया गया है। यहां पर छोटे- बड़े हज़ारों आइसबर्ग एक के बाद एक देखने को मिलते हैं। इसलिए इसे आइसबर्ग कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड भी कहा जाता है।
एल्युलिसाट:
यहां का लैंडस्केप बिल्कुल अलग है। दो म्यूजियम यहां देखने लायक हैं। एक है एल्युलिसाट म्यूजियम। जिसमें वहां रहने वाले लोगों की जिंदगी को तस्वीरों के जरिए दिखाया गया है। इसके अलावा म्यूजियम में एक्सपीडिशन के बारे में भी जानकारी दी गई है। दूसरा म्यूजियम है इनयिट आर्ट। यहां ग्रीनलैंड की कई सारी जगहों को तस्वीरों के जरिए दिखाया गया है।
कैसे जाएं
जिन लोगों को ठंड पसंद है, उनके लिए यहां जाना मज़ेदार रहेगा। अब यहां पहुंचे कैसे? इस बारे में सोचकर ज्यादा परेशान होने की भी जरूरत नहीं है, क्योंकि यहां तक पहुंचने के लिए ग्रीनलैंड जाएं। वहां से आइसलैंड के लिए प्लेन लें। एल्युलिसाट एयरपोर्ट शहर से 3 किमी दूर है।
यह तस्वीर एल्युलिसाट की है, लेकिन फोटोग्राफर पॉल ने इसे कुछ माह पहले खींचा था, जब सूर्य की किरणें आइसबर्ग पर पड़ती थीं। इन दिनों यह जगह पूरी तरह से बर्फ से घिरी हुई है। सूर्य की एक भी किरण यहां तक नहीं पहुंच पाती है। सर्दी हो या गर्मी, लेकिन यहां हज़ारों आइसबर्ग देखने को मिलते हैं।
डॉगस्लेड राइड
यहां आपने डॉगस्लेड राइड नहीं ली, तो ट्रिप अधूरा रह जाएगा। डॉगस्लेड में एक वक्त पर दोसे तीन लोग ही बैठ सकते हैं। कई बार स्लेड का ड्राइवर साथ-साथ भागता है। कई बार स्लेड के पीछे बैठ जाता है और कई बार टूरिस्टों के आगे चढ़ कर बैठ जाता है। यहां कयाकिंग, सेलिंग, हाइकिंग आदि एक्टिविटीज़ भी होती हैं।
बोट सफारी
वैसे तो यहां पहुंचने के लिए हवाई यात्रा सबसे सुखद मानी जाती है, लेकिन जिन दिनों
में नदी का पानी शांत होता है यानी नदी में तूफान नहीं आता। उस वक्त में बोट के माध्यम से भी एल्युलिसाट जा सकते हैं। बोट से सफर करते वक्त आइसबर्ग को करीब से देखा जाता है, जिससे अलग अनुभव होता है।
आइसबर्ग औऱ मार्केट
एल्युलिसाट में ज्यादातर आइसबर्ग ही हैं, लेकिन कुछ खूबसूरत बाजार भी हैं। जहां टूरिस्ट जरूरत के सामान के अलावा शॉपिंग भी कर सकते हैं। एल्युलिसाट से 35 किलोमीटर दूर एक ग्लेशियर है, जहां से लगातार आइसबर्ग मिलते रहते हैं। 2002 में इस ग्लेशियर के पिघलने की स्पीड 22 मीटर प्रतिदिन थी, जो 2007 तक 35 मीटर प्रति दिन हो गई। यह ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से हुआ।