महंगाई में नरमी आने की उम्मीद, दुनिया में सबसे तेज रहेगी भारत की विकास दर
नई दिल्ली : महंगाई के मोर्चे पर भारत के लिए राहत की खबर है। विश्व बैंक ने मंगलवार को जारी अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत में इस साल महंगाई में नरमी आने की उम्मीद है। वहीं विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक ने भारत की विकास दर बाकी दुनिया से तेज रहने का अनुमान जाहिर किया है।
महंगाई के मोर्चे पर विश्व बैंक का कहना है कि 1 अप्रैल से शुरू हुए नए वित्त वर्ष में यह 6.6 फीसद से घटकर 5.2 फीसद पर आ सकती है। एडीबी ने भी अपने हालिया अनुमान में कहा था कि इस वर्ष मुद्रास्फीति में कमी आने के आसार हैं और यह 2024 में और भी कम होगी। वहीं एडीबी ने कहा कि भारत में मजबूत मांग और चीन का महामारी से उबरना इस वर्ष एशिया में मजबूत आर्थिक वृद्धि के कारक बनेंगे। इसमें कहा गया कि एशिया इस वर्ष तथा अगले वर्ष 4.8 फीसद की दर से बढ़ेगा जो 2022 के 4.2 फीसद से अधिक है।
विश्व बैंक ने भारत की वृद्धि दर के ताजा अनुमान में कहा कि खपत में धीमी बढ़ोतरी होने और चुनौतीपूर्ण बाहरी परिस्थितियों के कारण विकास दर कमजोर पड़ सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक आय में धीमी वृद्धि और कर्ज के महंगा होने का असर निजी उपभोग की वृद्धि पर पड़ेगा। महामारी से संबंधित वित्तीय समर्थन के कदमों को वापस लेने की वजह से सरकारी खपत की रफ्तार भी कम रहने का अनुमान है। इसका मतलब यह है कि खपत के मामले में सरकार के स्तर पर भी स्थिति बहुत उत्साहजनक नहीं है।
विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का वित्तीय क्षेत्र मजबूत बना हुआ है। संपत्ति क्षेत्र में सुधार हो रहा है और निजी क्षेत्र की मजबूत ऋण वृद्धि से वित्तीय क्षेत्र उत्साहित है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 24 में चालू खाते के घाटा 2.1 फीसद तक सीमित रहने का अनुमान है। भारत में विश्व बैंक के निदेशक ऑगस्ट तानो कोमे ने काह कि भारत 2047 तक एक विकसित देश का दर्जा पा सकता है लेकिन उसके लिए भारत को आठ फीसदी की विकास दर के साथ आगे बढ़ना होगा।
एडीबी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अगर वैश्विक स्थिति अपेक्षा के अनुरूप नहीं बिगड़ती है, तो मांग की वजह से भारत की विकास दर में तेजी आएगी। हालांकि, वैश्विक तनाव की वजह से मांग पर असर पड़ेगा और विकास दर घटने और महंगाई के बढ़ने की संभावना है। एडीबी ने आगे कहा कि घरेलू स्तर पर मौसम के झटके, असामान्य वर्षा या उच्च तापमान का असर कृषि पर पड़ने की आशंका है। इससे खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, जिससे रिजर्व बैंक पर ब्याज दरों को बढ़ाने का दबाव बनेगा।
एडीबी के मुताबिक तेल उत्पादक देशों द्वारा उत्पादन में कमी के फैसले की वजह से तेल के दामों में तेजी आ सकती है जिससे मुद्रास्फीति का दबाव और बढ़ेगा जो क्षेत्र के लिए चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। एडीबी में मुख्य अर्थशास्त्री अल्बर्ट पार्क ने कहा, तेल के दाम और भी बढ़ सकते हैं जो एशिया क्षेत्र के लिए एक और चुनौती खड़ी करेगा। उन्होंने कहा कि एशिया में मुद्रास्फीति माल के बजाए पर्यटन जैसी सेवाओं की बढ़ती मांग पर अधिक निर्भर करेगी।