कोलकाता। पश्चिम बंगाल पुलिस के आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) ने मंगलवार को पूर्वी मिदनापुर जिले के एगरा में एक अवैध पटाखा फैक्ट्री में हुए विस्फोट की जांच शुरू कर दी है, जिसमें नौ लोगों की मौत हो गई थी। इस बात पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि प्रथम सूचना रिपोर्ट में विस्फोटक अधिनियम के तहत संबंधित धाराओं को क्यों शामिल नहीं किया गया है। पता चला है कि प्राथमिकी में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 188 (अवैध गतिविधियां), 286 (विस्फोटक पदार्थ के साथ लापरवाहीपूर्ण आचरण) और 304 (लापरवाही से मौत) के साथ-साथ धारा 24 (रॉकेट छोड़ने पर जुर्माना) और पश्चिम बंगाल अग्निशमन सेवा अधिनियम के 26 (वेयरहाउस या वर्कशॉप के लिए लाइसेंस नहीं लेने पर जुर्माना) शामिल हैं।
हालांकि, नौ लोगों की मौत के बावजूद विस्फोटक अधिनियम के तहत एक भी धारा प्राथमिकी में शामिल नहीं की गई है। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या मामले की गंभीरता को कम करने के कथित इरादे से जानबूझकर विस्फोटक कानून की धाराओं को बाहर रखा गया है? कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने आईएएनएस को बताया कि प्रथम दृष्टया यह काफी अजीब लगता है कि प्राथमिकी में विस्फोटक अधिनियम के तहत धाराओं को शामिल नहीं किया गया, जो आमतौर पर इस तरह के विस्फोट के मामले में किया जाता है।
गुप्ता ने कहा, “हालांकि, विस्फोटक अधिनियम के तहत धाराओं को बाहर करने का मतलब यह नहीं है कि इसे भविष्य में नहीं जोड़ा जा सकता। जांच एजेंसी बाद के चरण में संबंधित धाराओं को शामिल कर सकती है।” विपक्षी दल दावा कर रहे हैं कि पुलिस अधिकारी सत्ताधारी पार्टी के नेताओं को बचाने के लिए जानबूझकर इस घटना को कमतर करने की कोशिश कर रहे हैं, जो कथित तौर पर इस त्रासदी में शामिल हैं।
राज्य भाजपा प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य के अनुसार, जब भी ऐसी त्रासदी होती है, तो राज्य प्रशासन का पहला कदम घटना को कमतर करना होता है और दूसरा जांच की प्रक्रिया को कम करके दिखाना होता है।
उन्होंने कहा, “अब वही हो रहा है और इसलिए हम मामले की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से जांच की मांग कर रहे हैं।”
इस बीच, तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व ने आरोपों को खारिज कर दिया है और कहा है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुद कहा था कि वह इस मामले की एनआईए से जांच के लिए तैयार हैं।