केंद्र के अध्यादेश को लेकर केजरीवाल को मिला 6 दलों का साथ, कांग्रेस ने बनाई दूरी
नई दिल्ली : दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच आपसी समजस्य अभी भी नहीं बन पा रही है। हाल ही में दिल्ली में अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट (SC) के फैसले के बाद केंद्र सरकार अध्यादेश लाई है। आम आदमी पार्टी (AAP) इसका विरोध कर रही है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस अध्यादेश के विरोध विपक्षी दलों के समर्थन के लिए नेताओं से मिल रहे हैं। इस मुद्दे पर केजरीवाल आज NCP चीफ शरद पवार से मुलाकात करेंगे। वे उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, राहुल गांधी और खड़गे से भी मिल चुके हैं। सभी नेताओं ने संसद में केजरीवाल का समर्थन करने की बात कही थी।
जानकारी के लिए बता दें कि दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक अरविंद केजरीवाल इन दिनों देशव्यापी दौरे पर हैं। इस दौरान वह सभी विपक्षी नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं और पिछले सप्ताह जारी किए गए केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ समर्थन जुटा रहे हैं।
केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को पलट दिया है, जिसमें पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि दिल्ली में नौकरशाहों के तबादले का अधिकार चुनी हुई सरकार का है और एलजी उसे मानने को बाध्य हैं। इस फैसले के बाद मोदी सरकार ने दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर एक अध्यादेश जारी किया, जिसमें अफसरों के तबादले का अधिकार केंद्र सरकार के पास रखा गया है।
बता दें कि सीएम केजरीवाल इसी अध्यादेश को संसद से पारित होने से रोकने के लिए विपक्षी दलों से मदद की गुहार लगा रहे हैं। वह अब तक शिवसेना (यूबीटी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं। हालांकि, देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई स्टैंड नहीं लिया है। कांग्रेस की विभिन्न राज्य इकाइयों के कई नेता इस मुद्दे पर आप को राहत देने के मूड में कतई नहीं हैं। वे खुलकर इस मुद्दे पर केजरीवाल का विरोध कर रहे हैं।
आप के प्रति कांग्रेसियों की खुन्नस क्यों हैं? इसका जवाब यह है कि आप ने कांग्रेस के जनाधार को खत्म कर ही बड़े पैमाने पर अपनी राजनीतिक मौजूदगी बढ़ाई है। आप ने सबसे पहले 2013 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ा था। पिछले 10 वर्षों में आप 20 राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ चुकी है, लेकिन उसे केवल दो राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल हुई है, जबकि दो में अच्छा प्रदर्शन किया है। ये राज्य हैं- दिल्ली, पंजाब, गोवा और गुजरात। इन चारों राज्यों में आप कम से कम 5% वोट शेयर जीतने में कामयाब रही है, जबकि शेष 16 राज्यों में से उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के चुनावों में ही 1% से अधिक वोट शेयर जीतने में सफल रही है। बाकी राज्यों में आप को एक फीसदी से भी कम वोट मिले हैं। आप का यही प्रदर्शन लोकसभा चुनावों में भी दिखता है। जिन राज्यों में AAP ने 2014 और 2019 दोनों में 5% वोट शेयर का आंकड़ा पार किया, वह पंजाब और दिल्ली है लेकिन लोकसभा सीटें सिर्फ पंजाब में जीती है।
आप की लॉन्चिंग पैड रही दिल्ली उसकी सियासी जीत की भी पहली नगरी रही है। 2013 में पार्टी ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और बड़ी जीत हासिल की। 2015 और 2020 के दिल्ली चुनावों में भी आप ने शानदार जीत हासिल की है। आप की प्रचंड जीत ने बीजेपी को भी सिंगल डिजिट तक सीमित कर दिया। वोट शेयर के आंकड़े बताते हैं कि आप की यह प्रचंड जीत कांग्रेस को रौंदकर हुई है।इसी तरह पिछले साल पंजाब में हुए विधानसभा चुनावों में भी आप ने बड़ी जीत हासिल की और पहली बार राज्य में अपनी सरकार बनाई। हालांकि, उसकी जीत दिल्ली जैसी प्रचंड जीत नहीं रही।
चुनावी आंकड़ों और तथ्यों से स्पष्ट है कि आप ने कांग्रेस को पंजाब और गुजरात में गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया है, जहां वह हावी थी। इसके अलावा आप अन्य बीजेपी शासित राज्यों में भी कांग्रेस को कमजोर कर खुद दूसरे नंबर की पार्टी बनने की कोशिश कर रही है। ऐसे में यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है कि कांग्रेस नेता क्यों नहीं आप को समर्थन देना चाह रहे हैं या उससे गठबंधन करना चाह रहे हैं। पार्टी नेताओं को ये भी अंदेशा है कि अगर आप का साथ दिया तो भाजपा के प्रति मतदाताओं की लामबंदी और उग्र तरीके से हो सकती है।