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लखनऊ : लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों ने खुद को भाजपा (BJP) के सशक्त विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करने की रणनीति बनाई है। जनता के दिल-ओ-दिमाग में यह बैठाने का प्रयास करेंगे कि जब अपने-अपने राज्यों में भाजपा को हरा सकते हैं या कड़ी टक्कर दे सकते हैं तो लोकसभा चुनाव में भी ऐसा कर पाना उनके लिए नामुमकिन नहीं। इसके लिए हर महीने किसी एक राज्य में विपक्षी दलों के नेताओं की बैठक होगी और साझा चुनाव कार्यक्रम तैयार करने की दिशा में आगे बढ़ा जाएगा।
पटना में शुक्रवार को देश के प्रमुख विपक्षी दलों की अहम बैठक हुई। सभी एकमत थे कि भाजपा से लड़ने के लिए जनता को यह मनोवैज्ञानिक संदेश देना जरूरी है कि हम सब मिलकर भाजपा को हरा सकते हैं। बैठक के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का बयान भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। अखिलेश ने कहा कि पटना का यही संदेश है कि हम सब मिलकर काम करेंगे और मिलकर देश को बचाने का काम करेंगे।
ममता बनर्जी ने भी यही कहा कि हम एक हैं और हम मिलकर लड़ेंगे। राहुल गांधी ने और अधिक स्पष्टता के साथ यह बात कही कि हमारे बीच थोड़े-बहुत मतभेद हो सकते हैं, लेकिन भाजपा को हराने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा। इसलिए तय हुआ है कि हर माह विपक्ष के नेता एक साथ बैठेंगे और यह बैठकें दिल्ली से बाहर होंगी। ताकि, हर राज्य की जनता के बीच विपक्षी एकता का संदेश जा सके।
पहले उन राज्यों में बैठकें होंगी, जहां राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष की भूमिका में शामिल दलों की सरकारें हैं। यही वजह है कि अगली बैठक कांग्रेस शासित राज्य हिमाचल में होगी और वहां मेजबानी की जिम्मेदारी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे संभालेंगे। उसके बाद विपक्षी दलों की ये बैठकें पश्चिमी बंगाल, झारखंड और तमिलनाडु में होंगी। नवंबर-दिसंबर में देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में विपक्षी एकता का प्रदर्शन होगा। तब तक इस एकता के स्वरूप और साझा कार्यक्रम में भी काफी हद तक स्पष्टता आ चुकी होगी। लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही दिल्ली में बैठक करके इसे औपचारिक रूप से जारी किया जाएगा, ताकि देश के सामने संयुक्त विपक्ष के रोडमैप को रखा जा सके।
राजनीतिक सूत्रों की मानें तो विपक्षी एकता के प्रयास शीघ्र ही यूपी में भी दिखने की उम्मीद है। सपा और कांग्रेस के बीच सीटों को लेकर मंथन हो सकता है। हालांकि, कांग्रेस जिन सीटों पर दावा करेगी, सपा उनसे वहां लड़ाए जाने वाले उम्मीदवारों के नाम पहले मांगेगी। एकता की सड़क पर गठबंधन की गाड़ी का आगे बढ़ना काफी हद तक इसी पर निर्भर करेगा।