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30 लाख साल पहले कुत्ते के आकार का होता था घोड़ा

दस्तक टाइम्स एजेन्सी/ hourse-56ad9e9b54865_exlstआमतौर पर जब भी घोड़ों का जिक्र होता है तो अरबी नस्ल चर्चा में आ जाती है। जहां तक भारत का सवाल है तो मनुष्य का सबसे पुराना साथी घोड़ा 20 से 30 लाख साल पहले उत्तरी अमेरिका से यहां आया।

इसके कुछ जीवाश्म यहां अपर शिवालिक रेंज के मनसर-उत्तरबनी इलाके में पाए गए हैं। फ्लोरिडा के जियोलॉजिस्ट ब्रूस जे मैक फ्नेडन ने अपने लंबे शोधपत्र में घोड़ों के पूरी दुनिया में फैलने की मैपिंग भी की है।

दुनिया भर में मिले घोड़ों के जीवाश्म के अध्ययन से डॉर्विन का विकासवाद का सिद्धांत पूरी तरह सच साबित होता है। शोध के मुताबिक, घोड़े का मूल निवास उत्तरी अमेरिका रहा है।

इसका मूल स्वरूप कुत्ते के आकार का था। माना जाता है कि शीत युग के दौर में वह अपने प्रवास क्षेत्र से पलायन करने लगा। उस समय यूरेशिया का भूभाग उत्तरी अमेरिका से लगभग मिला हुआ था।

इसी तरह दक्षिण अमेरिका भी उत्तरी अमेरिका से पनामा स्थलडमरू से मिला हुआ था। उत्तरी अमेरिका और यूरेशिया के बीच अटलांटिक सागर बेहद छिछला था।

इस वजह से घोड़ों को पलायन करने में किसी बड़ी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। पलायन के बाद के बाद वह दक्षिण अमेरिका के साथ ही पूरे यूरेशिया के साथ चीन, भारत, अफ्रीका तक फैल गया।

पैलियोंटोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया के जर्नल में जियोलॉजिस्ट एसएस और बीसी वर्मा की प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि शिवालिक रेंज में घोड़ों के जीवाश्म मिले हैं।

इसके अलावा जिराफ, मछलियों, मगरमच्छ, दरियाई घोड़ों, ऊंट और गोवंश के जीवाश्म भी मिले हैं। ऐसी करीब 85 साइट्स हैं, जहां जीवाश्म पाए गए हैं। विशेषज्ञों ने इस पूरे इलाके में भविष्य में व्यापक शोध की भी जरूरत बताई है।

डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को सच साबित करता है घोड़ा
घोड़ा समय और वातावरण के साथ परिवर्तन और विकासवाद के डॉर्विन के सिद्धांत को सच साबित करता है। समय के साथ उसका कद ऊंचा होता गया। चारों पैरों की हड्डियां लंबी होती गईं।

उसकी पीठ और शरीर का पिछला हिस्सा मजबूत होता गया। जबड़ों के साथ इंसीजर, मोलर और प्री-मोलर दांतों में भी वक्त के साथ बदलाव होता गया।

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