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‘महिलाओं की आड़ में पुरुष चला रहे पंचायत’ याचिका पर सुनवाई से SC ने किया इनकार

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने पंचायती राज संस्थाओं में महिला सीटों के आरक्षण के खिलाफ एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। हालांकि उत्तर प्रदेश के एक सामाजिक स्टार्टअप को इस बात की अनुमति दी गई है कि वह अपनी समस्या को पंचायती राज मंत्रालय के समक्ष रखे। इस याचिका में दावा किया गया था कि पंचायत चुनावों में छद्म प्रक्रिया का पालन हो रहा है। महिलाओं की आड़ में पुरुष ही पंचायतों को चला रहे हैं।

जस्टिस एसके कौल और सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने गुरुवार को याचिका पर विचार करने से मना करते हुए याचिकाकर्ता से कहा, ‘हम शासनात्मक प्राधिकरण नहीं हैं। आप कहना चाह रहे हैं कि यह छद्म तरीके से हो रहा है। तो क्या हम महिलाओं को चुनाव लड़ने से रोक दें? यह एक क्रमिक विकास की प्रक्रिया है।’ उन्होंने कहा कि आपकी याचिका समस्या का कोई समाधान नहीं देती है। आपका कहना है कि प्रधान के चुनावों में छद्म तरीके से पंचायतों में महिलाओं की जगह पुरुष काम कर रहे हैं। आपने समाधान यही दिया है कि समिति बनाकर मामले को देखा जाए। लेकिन हमारा मानना है कि यह सुप्रीम कोर्ट का काम नहीं है।

याचिकाकर्ता के वकील ने खंडपीठ को बताया कि 1992 में हुए संविधान के 73वें संशोधन के अनुसार ग्रामीण सरकारी निकायों में बुनियादी स्तर पर महिलाओं को प्रतिनिधित्व मिलेगा। इस कानून को 30 साल पहले पारित किया गया। लेकिन सरकार इसे ठीक से लागू करने में विफल रही है। इसलिए सर्वोच्च अदालत एक समिति का गठन करके इस मामले को देखे।

इस पर खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि क्या आपने इस समस्या को किसी सरकारी विभाग के समक्ष रखा है। हमारा मानना है कि इस समस्या का उचित समाधान पंचायती राज मंत्रालय के पास होगा। वह इस मुद्दे को देखेंगे और महिला आरक्षण के उद्देश्य को हासिल करने की बेहतर प्रणाली को लागू करेंगे। उल्लेखनीय है कि आरोप लगते रहे हैं कि महिला ग्राम प्रधानों के पति या उनके अन्य रिश्तेदार ही उनके कामकाज को संभालते हैं।

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