बंगाल में CPM-TMC साथ नहीं, कांग्रेस और AAP में भी दरार, जानिए ‘INDIA’ में कैसा है दलों का संबंध
नई दिल्ली : एक दिन पहले ही अस्तित्व में आए विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ में अभी से दरार दिखने लगी है। जो आशंका पहले जताई जा रही थी, उसकी कुछ झलक सामने आ गई है। 26 दलों के इस गठबंधन में कई दलों में मतभेद पहले से रहे हैं। मसलन बंगाल में तृणमूल कांग्रेस पार्टी सीपीएम के साथ नहीं रह सकती है। सीपीएम का कहना है कि वह भाजपा के अलावा टीएमसी के खिलाफ भी संघर्ष कर रहा है। अब इसको लेकर दलों में आम सहमति बनाना आसान नहीं है।
वहीं कांग्रेस नेताओं का बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार पर चुनावी हिंसा के लिए तोहमत लगाने से संबंधों पर असर साफ दिख रहा है। बेंगलुरु मीटिंग में खुद राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी के सामने ही बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी को लेकर सवाल उठाया।
उन्होंने ममता बनर्जी का समर्थन करते हुए कांग्रेस नेताओं से पूछा कि वे ममता बनर्जी पर हमलावर क्यों हैं? उन्होंने कहा कि विपक्षी एकता में टीएमसी और कांग्रेस प्रमुख दल हैं, ऐसे में आपसी मतभेद को भूलकर एकजुट होना होगा। इससे पहले अधीर रंजन चौधरी ने ऐलान किया था कि लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी और लेफ्ट मिलकर टीएमसी के खिलाफ मैदान में उतरेगी। दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी के नेता दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी के साथ नहीं आना चाहते हैं। कांग्रेस के कुछ नेता खुलकर आम आदमी पार्टी को भाजपा की बी-टीम बताते रहे हैं।
आरजेडी केवल कांग्रेस और टीएमसी के संबंधों को लेकर ही नहीं नहीं नाराज हैं। सूत्रों का कहना है कि गठबंधन का नाम भी उन्हें रास नहीं आया। कहा जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी ने इंडिया नाम पर सभी की सहमति लेने के बजाए सीधे इसका प्रस्ताव दे दिया। इसके बाद इस मुद्दे पर कई दूसरे दलों ने अपना समर्थन दे दिया। इससे इस पर कोई चर्चा नहीं हो सकी।
जेडीयू नेता नीतीश कुमार भी नाराज बताए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि इसके अंग्रेजी शब्द होने से वे खुश नहीं हैं, हालांकि नीतीश कुमार की पार्टी के नेता ललन सिंह ने नाराजगी के अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, “नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट करने में प्रमुख भूमिका निभाई है। वे एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने सभी को एकजुट किया। वह असंतुष्ट नहीं हो सकते हैं।”
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने दावा किया था कि ब्रिटिश सरकार ने भारत का नाम इंडिया दिया था। लड़ाई इस बात की थी कि देश को औपनिवेशिक विरासत से मुक्त किया जाए। विपक्ष ने इंडिया नाम रखकर फिर से उसी को अपनाने की चाल चली है।