शहीद-ए-आजम भगत सिंह को फांसी सजा थी या साजिश, 85 साल बाद होंगे ‘बाइज्जत बरी’?
दस्तक टाइम्स एजेन्सी/
नई दिल्ली : आजादी की लड़ाई के दौरान एक ब्रिटिश अधिकारी की हत्या के दोषी करार दिए गए स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह को निर्दोष साबित करने के लिए पाकिस्तान की एक अदालत में बुधवार से इस मामले की सुनवाई शुरू हुई। ब्रिटिश सरकार द्वारा भगत सिंह को फांसी दिए जाने के करीब 85 साल बाद अंतत: पाकिस्तानी अदालत एक याचिका के आधार पर इस मामले की सुनवाई कर रही है। अब बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या भगत सिंह 85 साल बाद इस मामले में बाइज्जत बरी होंगे और बेगुनाह साबित होंगे। क्या भगत सिंह को फांसी सजा थी या साजिश? डीएनए के इस वीडियो को जरिये आपके सामने रख रहे हैं भगत सिंह के साथ ब्रिटिश हुकूमत की नाइंसाफी का पूरा विश्लेषण।
गौर हो कि पाकिस्तान में दूसरी बार एक अदालत ने उस याचिका पर सुनवाई के लिए बड़ी पीठ की मांग की है, जिससे एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी की हत्या के मामले में महान क्रांतिकारी भगत सिंह की बेगुनाही साबित होनी है। न्यायमूर्ति खालिद महमूद खान की अगुवाई वाली लाहौर हाईकोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने भगत सिंह को फांसी दिए जाने के करीब 85 साल बाद इस याचिका पर सुनवाई की। न्यायमूर्ति महमूद ने इस मामले को उस वक्त मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एजाजुल अहसन के पास भेज दिया जब याचिकाकर्ता वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने दलील दी कि तीन सदस्यीय पीठ ने सिंह को मौत की सजा सुनाई थी और ऐसे में इस याचिका पर सुनवाई के लिए कम से कम पांच सदस्यों वाली बड़ी पीठ का गठन होना चाहिए। सुनवाई के बाद कुरैशी ने पीटीआई-भाषा से कहा कि अदालत ने याचिका पर सुनवाई के लिए बड़ी पीठ बनाने के आवेदन को स्वीकार कर लिया है। उन्होंने कहा कि कानून के तहत सिर्फ बड़ी पीठ ही भगत सिंह को सजा सुनाने वाली तीन सदस्यीय पीठ के फैसले पर बदल सकती है। हमले लाहौर हाईकोर्ट से इस मामले में नियमित सुनवाई का आग्रह किया है। इस याचिका पर पिछली सुनवाई मई, 2013 में न्यायमूर्ति शुजात अली खान ने की थी और उस समय भी इस मामले को बड़ी पीठ बनाने के लिए मुख्य न्यायाधीश के समक्ष भेज दिया गया था। उस वक्त मुख्य न्याधीश ने दो सदस्यीय पीठ का गठन किया था जिसने बुधवार को पहली सुनवाई की।
अपनी याचिका में कुरैशी ने कहा कि भगत सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे और अखंड भारत की आजादी के लिए लड़े। कुरैशी भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के प्रमुख भी हैं। भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी दे दी थी। कुरैशी ने कहा कि भगत सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी, लेकिन बाद में एक ‘मनगढ़ंत मामले’ में उनको मौत की सजा सुना दी गई। याचिकाकर्ता ने कहा कि शहीद-ए-आजम को आज उपमहाद्वीप में न सिर्फ सिखों के बीच, बल्कि मुसलमानों में बहुत सम्मान की नजर से देखा जाता है तथा पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना ने सेंट्रल असेंबली के अपने भाषण में दो मौकों पर भगत सिंह को श्रद्धांजलि दी थी। उन्होंने कहा कि यह राष्ट्रीय महत्व का विषय है और इसकी सुनवाई संपूर्ण पीठ के समक्ष होनी चाहिए। भगत सिंह को फांसी दिए जाने के 83 साल के बाद लाहौर की पुलिस ने अदालत के आदेश पर अनारकली थाने का रिकॉर्ड खंगाला और ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन पी सौंडर्स की हत्या के मामले में दर्ज की गई प्राथमिकी का पता लगाया। उर्दू भाषा में लिखित प्राथमिकी 17 दिसंबर, 1928 को शाम साढ़े चार बजे अनारकली थाने में दर्ज की गयी थी। इसमें आरोपियों को ‘दो अनजान बंदूकधारी’ कहा गया था। मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 1201 और 109 के तहज दर्ज किया गया था।