दस्तक टाइम्स एजेन्सी/ नई दिल्ली: सेना के दो वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सीबीआई द्वारा जांच के मामले ने रक्षा मंत्रालय की तीनों सेनाओं (थल सेना, नौसेना और वायु सेना) में अधिकारियों की पदोन्नति की नीति पर पुनर्विचार को हवा दे दी है।
एक दुर्लभ कदम उठाते हुए रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने स्पष्ट संकेत दे दिया जब उन्होंने सेना के मेजर जनरल रैंक के दोनों अधिकारियों की पदोन्नति के मामले को कैबिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) को सौंप दिया। उन्होंने समिति को लिखा की दोनों अधिकारियों को तभी पदोन्नत किया जाए जब जांच एजेंसी उन्हें क्लीनचिट दे दे। कैबिनेट की नियुक्ति समिति में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री शामिल रहते हैं। दोनों ही अधिकारियों की लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर पदोन्नति होनी थी।
अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर कैसे ये दोनों अधिकारी इतने ऊंचे पदों तक पहुंच गए। सूत्रों ने बताया कि हर रैंक पर अधिकारियों की कड़ी निगरानी की जाती है ताकि काबिल लोगों का ही प्रमोशन हो। रक्षा मंत्री द्वारा प्रमोशन को सशर्त बनाना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों अधिकारियों के पूर्व के पदों पर रहते हुए ही भ्रष्टाचार के आरोप लगे।
सूत्रों ने बताया कि लेफ्टिनेंट जनरल जैसे उच्च पदों पर प्रमोशन के लिए उम्र और नौकरी में बचे समय जैसे मुख्य मापदंडों की बजाय मंत्रालय चाहता है कि प्रमोशन योग्यता के आधार पर हों।
फिलहाल, एक लेफ्टिनेंट जनरल के सेना प्रमुख बनने के लिए कम से कम दो साल की नौकरी शेष होनी चाहिए। ये सारा मामला उम्र पर आकर रुक जाता है। रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस तरह क्षमता, योग्यता और वरीयता का महत्व कम हो जाता है और अगले रैंक पर प्रमोशन इस बात पर निर्भर होता है कि आपकी नौकरी कितनी बाकी है और कितने पद खाली हैं।
ये भी आरोप हैं कि अधिकारी अपने पसंदीदा लोगों को ही चुनते हैं। मेजर जनरल रवि अरोड़ा (रिटायर्ड) कहते हैं, ‘प्रकिया तो सही है लेकिन अपने रेजिमेंट के प्रति वफादारी और परिवार की भावना के चलते इससे छेड़छाड़ किए जाने की संभावना बनी रहती है।