यूपी के 18 जगहों पे बिक रहा है, मौत का सामान
दस्तक टाइम्स एजेन्सी/
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अवैध असलहों की खेती फिर सुर्खियों में है। एनसीआर और पंजाब के पिस्टल सौदागरों ने भी कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर जिलों में करीब 18 स्थान ऐसे बताए गए हैं, जहां से मौत का सामान वेस्ट के अलावा दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड तक सप्लाई होता है।
इन राज्यों के ज्यादातर बड़े गैंग या उनके दलाल इन सप्लायरों के संपर्क में रहते हैं। जो ऑन डिमांड तमंचे और पिस्टल बनवाते हैं। चुनाव में इनकी डिमांड ज्यादा बढ़ जाती है। आईजी जोन ने इसे गंभीर मामला बताते हुए स्पेशल अभियान छेड़ने की बात कही है। हथियारों की मंडी के नाम से मेरठ और मुजफ्फरनगर देहात के कई गांव पहले से बदनाम रहे हैं।
करीब एक दशक में यहां कई तमंचा फैक्ट्री पकड़ी गईं। तमंचों के साथ ही देसी पिस्टल बनाने का काम भी शुरू हो गया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से दो स्तरों पर अवैध असलहों की सप्लाई होती है। पहली, वेस्ट के कुछ जिलों में तमंचे और पिस्टल बनाने का काम कुटीर उद्योग की तरह फैला है। दूसरा, अधिकांश लोग मुंगेर (बिहार) से पिस्टल की खेप लाकर उन्हें दाम बढ़ाकर पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड के बदमाशों या असलाह तस्करों को बेचते हैं।
दिल्ली क्राइम ब्रांच ने परतापुर मेरठ निवासी एनसीआर के पिस्टल सौदागर सविंदर को 50 पिस्टलों और भारी मात्रा में कारतूसों के साथ तो मेरठ क्राइम ब्रांच ने पंजाब के तीन तस्करों को चार पिस्टलों के साथ परीक्षितगढ़ से दबोचा।
पंजाब के ये तस्कर पांचवीं बार किठौर के गांव राधना से पिस्टल की खेप लेकर जा रहे थे। जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मेरठ से अवैध असलहों की सप्लाई काफी समय से हो रही थी। जबकि सविंदर 18 माह में 400 पिस्टलों और हजारों कारतूसों की सप्लाई कर चुका था।
असलहों के इन सौदागरों ने बताया है कि मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर और शामली से उन्हें तमंचे और पिस्टलों की सप्लाई मिलती है। इन जिलों में ऐसी करीब 18 फैक्ट्रियां अवैध असलाह बनाने की बताई गई हैं। मेरठ में किठौर का राधना, सरूरपुर का खिर्वा जलालपुर, रोहटा का चिंदौड़ी गांव तो पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज है। जबकि सहारनपुर, शामली और मुजफ्फरनगर के कुछ गांवों में असलाह बनना आम बात हो गई है।
ऐसा नहीं कि पुलिस को इनकी खबर नहीं। कहीं अपने स्वार्थ में तो कहीं सियासी दबाव के सामने कानून के हाथ यहां छोटे पड़ जाते हैं। यही कारण है असलहों की यह खेती भरपूर लहलहा रही है।
चुनावी सीजन में हथियारों की डिमांड बढ़ जाती है। पुलिस का रिकॉर्ड खंगाला जाए तो चुनावी सीजन में सबसे ज्यादा हथियारों की खेप पकड़ी गई है। 2012 में 530 पिस्टल, 2013 में 430, 2014 में 415 व 2015 में 498 पिस्टल पकड़ी गईं। इन तीन वर्षों में करीब 2156 तमंचे पकड़े जाने बताए गए। यह बरामदगी तभी हो पाती है जब खुद सूबे के पुलिस महानिदेशक सख्त रवैया अपनाते हुए अलग से आदेश जारी करते हैं।
तमंचे के बजाए अवैध रूप से पिस्टल रखना अब स्टेटस सिंबल बन गया है। कहीं खुशी में तो कहीं मामूली झगड़े में गोली चलने में देर नहीं लगती। हर्ष फायरिंग में कई मौत हो चुकी हैं। बड़ा सवाल है कि ये तमंचे और पिस्टल आ कहां से रहे हैं। पुलिस इसकी गहराई में ना जाकर खामोश हो जाती है। महज केस दर्ज कर मामला ठंड बस्ते में डाल दिया जाता है।
सुजीत पांडेय, आईजी जोन ने कहा कि वेस्ट यूपी में अवैध हथियारों की सप्लाई का धंधा बढ़ा है। एक सप्ताह में दो जगहों से असलहे बरामद होना इसका प्रमाण है। इस पर शिकंजा कसने के लिए स्पेशल अभियान छेड़ा जाएगा। असलहों की फैक्ट्रियों पर जल्द छापामारी की जाएगी।