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दिल्ली हाईकोर्ट ने पूर्व राज्यसभा सांसद विजय दर्डा, बेटे को अंतरिम जमानत दी

नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को पूर्व राज्यसभा सांसद विजय दर्डा, उनके बेटे देवेंद्र दर्डा और जेएलडी यवतमाल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक मनोज कुमार जायसवाल को अंतरिम जमानत दे दी। इन्हें छत्तीसगढ़ में कोयला ब्लॉक आवंटन में अनियमितताओं में शामिल होने के आरोप में बुधवार को चार साल की जेल की सजा सुनाई गई थी।

न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा की पीठ ने मामले में उन्हें दोषी ठहराने और सजा सुनाने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दर्डा और जायसवाल की याचिकाओं पर नोटिस जारी किया। अदालत ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जवाब मांगा और इसे आठ सप्ताह के भीतर दाखिल करने का निर्देश दिया था।

दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें चार साल की जेल की सजा सुनाई थी, अदालत ने इसी मामले में पूर्व कोयला सचिव एचसी गुप्ता, 2 वरिष्ठ लोक सेवकों केएस क्रोफा और केसी सामरिया को भी 3 साल की सजा सुनाई थी। वहीं अदालत ने एम/एस जेएलडी यवतमाल पर 50 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।

विजय दर्डा और जायसवाल को विशेष न्यायाधीश ने जमानत दे दी ताकि वे हाईकोर्ट में अपनी दोषसिद्धि को चुनौती दे सकें। विशेष न्यायाधीश द्वारा दर्डा और जायसवाल पर 15-15 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। अन्य तीन दोषियों को प्रत्येक को 20,000 रुपये का जुर्माना भरने का निर्देश है।

रिपोर्ट के अनुसार, 13 जुलाई को विशेष न्यायाधीश संजय बंसल ने उन्हें दोषी ठहराते हुए फैसला सुनाया था। आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) और 420 (आपराधिक साजिश) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया।

अदालत ने पहले वरिष्ठ लोक अभियोजक एपी सिंह द्वारा प्रस्तुत तर्कों को स्वीकार करते हुए कहा था कि सीबीआई ने किसी भी उचित संदेह से परे मामले को सफलतापूर्वक साबित कर दिया है।

कोर्ट द्वारा सजा पर सुनवाई के दौरान जांच एजेंसी ने यह दावा करते हुए अधिकतम सजा की मांग की थी कि दर्डा और उनके बेटे ने जांच को प्रभावित करने के लिए तत्कालीन सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा से उनके आवास पर मुलाकात की थी। आगे दावा किया गया कि मामले में एक गवाह ने कहा कि उसे मनोज कुमार जायसवाल ने धमकी दी थी, जिसने उसे उसके खिलाफ गवाही न देने के लिए प्रभावित करने की कोशिश की थी।

20 नवंबर 2014 को कोर्ट ने इस मामले में सीबीआई की ओर से सौंपी गई क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया था। अदालत ने जांच एजेंसी को यह कहते हुए नए सिरे से जांच शुरू करने का निर्देश दिया था कि पूर्व सांसद दर्डा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, जिनके पास कोयला विभाग भी था, को संबोधित पत्रों में तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया था।

अदालत के अनुसार, लोकमत समूह के अध्यक्ष विजय दर्डा ने जेएलडी यवतमाल एनर्जी के लिए छत्तीसगढ़ में फतेहपुर (पूर्व) कोयला ब्लॉक प्राप्त करने के लिए इस तरह की गलत बयानी का सहारा लिया था। अदालत ने फैसला सुनाया था कि धोखाधड़ी का कार्य निजी संस्थाओं द्वारा एक साजिश के तहत किया गया था, जिसमें निजी पक्ष और लोक सेवक दोनों शामिल थे।

जेएलडी यवतमाल एनर्जी को 35वीं स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा फतेहपुर (पूर्व) कोयला ब्लॉक प्रदान किया गया था। शुरुआत में सीबीआई ने अपनी एफआईआर में आरोप लगाया कि जेएलडी यवतमाल ने 1999 और 2005 के बीच अपने समूह की कंपनियों को चार कोयला ब्लॉकों के पिछले आवंटन को गैरकानूनी तरीके से छुपाया था। हालांकि, एजेंसी ने बाद में एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की, जिसमें कहा गया था कि कोयला ब्लॉक आवंटन के दौरान कोयला मंत्रालय द्वारा जेएलडी यवतमाल को कोई अनुचित लाभ नहीं दिया गया था।

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