नई दिल्ली: एक बार फिर साल का वही समय आ गया है, जब हवा में हल्की सी ठिठुरन के साथ गुलाबी सर्दी ने दस्तक देना शुरू किया है. इसके साथ ही जहरीली धुंध के बढ़ने की चेतावनी भी आ रही है, जो हर सर्दियों में दिल्ली को अपनी चपेट में ले लेती है. फिलहाल 2022 के दिल्ली में हवा की गुणवत्ता में आश्चर्यजनक सुधार देखा गया था. मगर इस सर्दी में दिल्ली की किस्मत खराब हो सकती है, क्योंकि इस बार दशहरा और दिवाली का त्योहार कटाई के मौसम के साथ आ रहा है. दिल्ली में पिछले साल न केवल ‘गंभीर’ वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) वाले दिनों की संख्या में गिरावट देखी गई, बल्कि ऐसा कोई ‘गंभीर’ दिन भी दर्ज नहीं किया गया, जब एक्यूआई 450 के खतरनाक निशान को पार कर गया हो और हवा गंभीर रूप से विषैली गई हो.
पिछले साल दिवाली थोड़ा जल्दी अक्टूबर में ही आ गई थी, जब सर्दी अभी पूरी तरह से शुरू नहीं हुई थी और पराली जलाना अपने चरम पर नहीं पहुंचा था. वैसे भी साल 2022 मौसम के लिहाज से असामान्य रहा था. सर्दियों की शुरुआत में देरी हुई और दिसंबर के अंत तक मौसम असामान्य रूप से गर्म था. जिससे प्रदूषकों को बिखरने में मदद मिली. वैज्ञानिकों के मुताबिक साल के अधिकांश समय सतही हवा की गति भी थोड़ी ज्यादा रही. यह एक दुर्लभ वैश्विक महासागरीय ला नीना की घटना थी, जो लगातार तीन साल तक जारी रही.
सफर (SAFAR) के संस्थापक-परियोजना निदेशक और इस समय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज (NIAS) के अध्यक्ष-प्रोफेसर डॉ. गुफरान बेग ने कहा कि साल 2022 असाधारण था. हालांकि प्रदूषण नियंत्रण के उपाय भले ही काम कर गए हों, लेकिन मौसम की स्थितियां भी काफी अनुकूल थीं और खासकर उत्तर पश्चिम भारत में हवा की गुणवत्ता को और अधिक खराब होने से रोकने में मदद मिली. जहां तक इस साल प्राकृतिक जलवायु संबंधी कारकों का सवाल है, वे मौजूदा वक्त में बहुत अनुकूल नहीं दिख रहे हैं. सितंबर के अंत से अक्टूबर के मध्य तक वह समय होता है जब दक्षिण पश्चिम मानसून देश से वापस चला जाता है.
डॉ. बेग ने कहा कि जैसे-जैसे हवाएं रुकती हैं, प्रदूषक तत्वों के हवा में जमा होने की संभावना बढ़ती है. इसलिए मॉनसून की वापसी निश्चित रूप से दिल्ली में वायु गुणवत्ता में गिरावट से जुड़ी हुई है. मॉनसून अभी भी उत्तर पश्चिम भारत से वापस जा रहा है. जब तक यह प्रक्रिया जारी रहेगी, हवा की गति मध्यम बनी रहेगी और हवा की गुणवत्ता बेहतर रहेगी. प्रदूषण के स्तर में कोई बड़ी बढ़ोतरी अक्टूबर के अंत में देखी जा सकती है और संभवतः नवंबर में चरम पर होगी. जब प्रदूषक हवा में जमा हो जाएंगे और सर्दी शुरू हो जाएगी.”
दिल्ली को नवंबर में सबसे कठिन परीक्षा का सामना करना पड़ेगा जब वायु प्रदूषण का स्तर अपने चरम पर होने की उम्मीद है. प्रतिबंध के बावजूद दिवाली के दौरान पटाखे और कटाई के मौसम में पराली जलाना आम बात होती है. पिछले साल दिवाली अक्टूबर के अंत में आ गई थी, जब सर्दी पूरी तरह से शुरू नहीं हुई थी. इसलिए गर्म हवा ने प्रदूषकों के हटाने में मदद की. हालांकि, इस बार, दिवाली नवंबर के मध्य में है. ठीक उसी समय जब दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक होता है. इस दौरान पराली जलाने की घटनाएं आम तौर पर चरम पर होती हैं और त्योहारी सीजन के दौरान पटाखों के धुएं और तापमान में गिरावट के साथ मिलकर हवा में प्रदूषकों का जहरीला मिश्रण बन सकता है.
15 सितंबर से अब तक पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान और मध्य प्रदेश में 682 पराली जलाने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं. 456 घटनाओं के साथ पंजाब सबसे आगे है, इसके बाद हरियाणा (120) और उत्तर प्रदेश (57) हैं. अकेले सोमवार को पराली जलाने की 155 घटनाएं दर्ज की गईं. पंजाब सरकार ने पराली के जलाने को पूरी तरह खत्म करने का संकल्प लिया है. दिल्ली सरकार ने भी प्रदूषण को कम करने के लिए 13 हॉटस्पॉट की पहचान की है. पटाखों की बिक्री और उपयोग पर अदालत के आदेशों को सख्ती से लागू करने की योजना बनाई गई है. कुल मिलाकर मौसम के हालात केवल प्रदूषकों के जमा होने या फैलाव में मदद कर सकते हैं. दिल्ली इस सर्दियों में धुंध के जहरीले असर से बच पाएगी या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि लंबे समय से प्रदूषण की असली वजहों को कितने असरदार ढंग से कंट्रोल किया जाता है.