नीतीश कुमार बना रहे यूपी को लेकर भावी रणनीति, भाजपा को घेरने सपा-कांग्रेस के साथ करेंगे मंथन
नई दिल्ली : बिहार (bihar) की जातीय जनगणना का लोकसभा चुनाव में राजनीतिक लाभ लेने और भाजपा को घेरने के लिए विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन इस मुद्दे को उत्तर प्रदेश की अपनी भावी रणनीति में शामिल कर सकता है। बिहार के मुख्यमंत्री व जदयू नेता नीतीश कुमार इस मुद्दे पर सपा व कांग्रेस के साथ मिलकर मंथन करेंगे। इनमें नीतीश के उत्तर प्रदेश से लोकसभा चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर भी विचार किया जा सकता है।
पिछड़ा वर्ग की राजनीति व बिहार की जातीय जनगणना के बाद यह मुद्दा तो पूरे देश में रहेगा ही, लेकिन बिहार के बाद सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश को प्रभावित करेगा। उत्तर प्रदेश की सामाजिक राजनीति की जमीन भी इसके लिए काफी मुफीद है। इसके अलावा सीटों के हिसाब से भी उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा प्रदेश है। भाजपा की सबसे बड़ी ताकत भी उत्तर प्रदेश ही है। राज्य में भाजपा को चुनौती देने की स्थिति में सपा ही है, लेकिन उसके लिए उसे राज्य के सामाजिक समीकरणों पर काफी काम करना होगा।
जदयू सूत्रों के अनुसार, ‘इंडिया’ गठबंधन का एक बड़ा वर्ग चाहता है कि नीतीश कुमार को लोकसभा चुनाव लड़ना चाहिए और उन्हें उत्तर प्रदेश से उतरना चाहिए। चूंकि नीतीश कुमार कुर्मी जाति से आते हैं। उत्तर प्रदेश के ओबीसी समुदाय में यह जाति यादव के बाद दूसरा बड़ा समुदाय है, जिसकी आबादी लगभग छह फीसदी है। बिहार में कुर्मी 2.87 फीसदी है। उत्तर प्रदेश में इस समुदाय की बड़ी संख्या को देखते हुए ही गठबंधन में नीतीश को यहां से लाने की चर्चाएं हैं। इसके लिए एक बार फिर फूलपुर सीट की चर्चा है। हालांकि यह इस बात कर निर्भर करेगा कि जदयू का सपा व कांग्रेस के साथ किस तरह का तालमेल होता है।
गौरतलब है कि भाजपा ने उत्तर प्रदेश को सामाजिक समीकरणों के हिसाब से साध रखा है। उसके साथ छोटे ही सही, लेकिन सामाजिक आधार वाले अपना दल, सुभासपा, निषाद पार्टी जैसे सामाजिक दल हैं। ऐसे में लोकसभा चुनावों में विपक्ष के लिए उसे चुनौती देना आसान नहीं होगा। हालांकि जदयू नेताओं का मानना है कि पिछड़ा वर्ग मूलत: तीसरी ताकतों के साथ रहता है।
बीते विधानसभा चुनाव में भी सपा ने काफी बेहतर प्रदर्शन किया था। ऐसे में ‘इंडिया’ गठबंधन की मजबूती उसे लाभ दिला सकती है। जदयू सूत्रों के अनुसार, पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद ही लोकसभा की तैयारी होगी। ऐसे में घटक दलों के पास हर राज्य को लेकर मंथन और सीटों के बेहतर तालमेल के लिए काफी समय है।