देहरादून (निहाल): साल 2025 तक उत्तराखंड राज्य को नशा मुक्त बनाए जाने का लक्ष्य रखा गया है। जिसके क्रम में प्रदेश भर में नशे के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। मुख्य रूप से पुलिस प्रशासन की ओर से चलाए जा रहे इस अभियान के तहत ना सिर्फ तमाम जगहों पर छापेमारी की कार्रवाई की जा रही है बल्कि भारी मात्रा में नशीली दावों को भी पकड़ा जा रहा है। तो वहीं, दूसरी ओर औषधि नियंत्रण विभाग अपने कर्मचारियों का रोना रोता दिखाई दे रहा है जबकि मुख्य रूप से औषधि नियंत्रण विभाग की जिम्मेदारी होती है कि वह मेडिकल स्टोर समेत फार्मा कंपनियों पर छापेमारी कर नशीली दावों और इंजेक्शनों पर लगाम लगाये। आखिर क्या है मौजूदा स्थिति? देखिए इस रिपोर्ट में……
उत्तराखंड राज्य में नशा एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है यही वजह है कि सीएम धामी के निर्देश के बाद से ही नशा मुक्ति उत्तराखंड बनाने की दिशा में संबंधित विभाग कार्रवाई कर रहे हैं। हालांकि, पुलिस विभाग की ओर से लगातार छापेमारी की कार्यवाही की जा रही हैं जिसमें न सिर्फ नकली दवाईयों की बड़ी खेफ पकड़ी जा रही है बल्कि नशीली दवाईयों की भी खेफ कई बार पकड़ी जा चुकी है। इसके साथ ही तमाम लोग गिरफ्तार भी हुए हैं। ऐसे में पुलिस विभाग की ओर से लगातार नशे के खिलाफ चल रहे अभियान के बाद औषधि प्रशासन भी सक्रिय हो गया है।
औषधि प्रशासन से मिली जानकारी के अनुसार सहायक औषधि नियंत्रक डॉ सुधीर कुमार के नेतृत्व में पिछले तीन दिनों में देहरादून जिले के 34 दवाइयों की दुकानों का औचक निरीक्षक किया गया। हालांकि, इस निरीक्षण के दौरान 12 मेडिकल स्टोर्स में खामियां पाए जाने पर खरीद और बिक्री पर रोक लगाते हुए बंद किया गया है। इसके साथ ही एक मेडिकल स्टोर को सील करने की कार्यवाही की गई है। यही नहीं, इस निरीक्षण के दौरान मेडिकल स्टोरों से 58 संदिग्ध दवाइयों का सैंपल भी लिया गया। जिसकी जांच के बाद मेडिकल स्टोर्स पर कार्यवाही की जायेगी।
हालांकि, राजधानी देहरादून के तमाम मेडिकल स्टोर्स से नशीली दवाओं के बेचने का मामला कई बार सामने आ चुका है। जिसे चलते पुलिस और ड्रग्स कंट्रोलर की ओर से संयुक्त छापेमारी कर पहले भी कई बार कार्रवाई की जा चुकी है। यही नहीं, औषधि प्रशासन की ओर से मेडिकल स्टोर्स को इस बारे में पहले भी निर्देश ही दिए जा चुके हैं कि जीवन रक्षक दवाएं जिसका दुरुपयोग नशे में किया जाता है। उन दवाओं को बिना प्रिसक्रिप्शन के नहीं दिया जा सकेगा। साथ ही लिमिट मात्रा में ही इन दावों को स्टोर्स पर रख सकेंगे साथ ही उसकी पूरी लेनदेन की जानकारी रखेंगे। बावजूद इसके इस तरह के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।
वही, ज्यादा जानकारी देते हुए औषधि नियंत्रक ताजबर सिंह ने बताया कि कोई भी दवाई नशीली नहीं होती बल्कि एंजायटी, डिप्रैशन समेत अन्य समस्याओं में इस्तेमाल होने वाले दवाइयां का दुरुपयोग नशे के रूप में किया जाता है। इन दवाइयां की कैपिंग कर ली गई है कि कौन सी दवाई कितनी मात्रा में ही मेडिकल स्टोर रख सकेंगे। और उत्तराखंड राज्य देश का पहला प्रदेश है जिसने इस तरह की दवाइयां की कैंपिंग की है। साथ ही कहा कि ड्रग्स इंस्पेक्टर लगातार मेडिकल स्टोर का निरीक्षण करते रहते हैं। लिहाजा जो नारकोटिक्स से संबंधित रिकॉर्ड होते हैं उसको भी सभी मेंटेन करते हैं।
साथ ही कहा कि विभाग की ओर से लगातार कार्यवाही की जा रही है। लेकिन मैन पावर की कमी होने के चलते तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। बावजूद इसके जितने भी मैनपॉवर है उनको फील्ड में उतारा गया है जो लगातार निरीक्षण करने का काम कर रहे हैं। मुख्य रूप से हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंह नगर सबसे सेंसिटिव जिले है। लिहाजा इन तीनों जिलों पर मुख्य रूप से फोकस करते हुए लगातार कार्रवाई की जा रही है। साथ ही कहा कि औषधि प्रशासन की ओर से कार्रवाई के रूप में मेडिकल स्टरों का निरीक्षण, औचक छापेमारी और सैंपल लेने की कार्रवाई की जाती है।
आपको बता दे कि प्रदेश में कुल 249 फार्मा कंपनियां हैं। मुख्य रूप से हरिद्वार, सेलाकुई (देहरादून) और पंतनगर (उधमसिंह नगर) में अधिकांश फार्मा कंपनियां मौजूद हैं। इसके अलावा, देश में बनने वाले कुल दवाओं के उत्पादन में उत्तराखंड राज्य का करीब 20 फीसदी योगदान है। औषधि प्रशासन औषधि प्रशासन से मिली जानकारी के अनुसार साल 2022 में प्रदेश के फार्मा सेक्टर ने लगभग 15 हजार करोड रुपए का कारोबार किया था। इसके साथ ही 1150 करोड रुपए की दवाइयां निर्यात की गई थी।