आप पर भी पड़ रही जलवायु परिवर्तन की ‘छाया’, जानें कैसे…
देहरादून( गौरव ममगाई): दिल्ली, नोएडा व अन्य बड़े शहरों अगर आपको सामान्य से ज्यादा गर्म लग रहा है तो समझ जाइये कि जलवायु परिवर्तन आपको भी प्रभावित करने लगा है. हो सकता है कि आपको जानकर हैरानी हो रही हो, लेकिन यह सच है. विश्व में प्रमुख समस्या बन रहा जलवायु परिवर्तन आज भारत में भी असर दिखाने लगा है. तापमान बढ़ने के कारण लोग एसी, कूलर का अधिक प्रयोग कर रहे हैं. इस बात की पुष्टि विज्ञान एवं पर्वावरण केंद्र (सीएसई) की रिपोर्ट में हुई है.
यह तस्वीर मानव स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, बल्कि पर्वावरण एवं हिमालयी क्षेत्रों के संरक्षण के लिए भी चिंता का विषय है.
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
अध्ययन में पता चला है कि भारत में दिल्ली समेत कई शहरों तापमान में वृध्दि देखी गई है.
जलवायु परिवर्तन के कारण रात में गर्मी सामान्य से ज्यादा बढ़ रही है, जिससे कमरे पंखा व कूलर चलाने पर भी ठंडे नहीं होते.
तापमान बढ़ने के कारण दिल्ली, नोएडा व अन्य महानगरों में एसी व कूलर चलाए जाते हैं. इससे बिजली की मांग में कई गुना इजाफा हो रहा है.
रिपोर्ट में कहा गया कि ताप सूचकांक में प्रत्येक डिग्री बृध्दि होने पर बिजली की मांग 140 से 150 मेगावाट तक बढ़ जाती है.
22.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर प्रत्येक डिग्री वृध्दि पर बिजली की मांग 190 से 200 मेगावाट तक बढ़ती है, क्योंकि इस तापमान में बहुत ज्यादा गर्म होने लगता है.
जलवायु परिवर्तन का कारण कार्बन उत्सर्जन को माना गया है.
क्या है कार्बन उत्सर्जनः आज मशीनी युग में हम औद्योगिक क्रियाओं व परिवहन सेवाओं के रूप में मशीन व वाहनों का प्रयोग करते हैं, जिसे पेट्रोल, डीजल से संचालित किया जाता है. इनसे कई जहरीली गैसें निकलती हैं, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है. इन गैसों का पर्यावरण में मिलना कार्बन उत्सर्जन कहलाता है.
क्या हो सकते हैं नुकसानः
भारत ने 2027 तक शून्य कार्बन उतसर्जन का लक्ष्य रखा है. ऐसे में भारत कार्बन ईंधन का विकल्प सौर ऊर्जा, तापीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा के रूप में तलाश रहा है. कार्बन ऊर्जा की कमी को पूरा करना पहले ही आसान नहीं है, ऐसे में बिजली की मांग और अधिक बढ़ने से ऊर्जा की कमी को पूरी करना मुश्किल हो सकता है.
- भारत में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, सिक्किम, मेघालय, अरूणाचल प्रदेश जैसे कई हिमालयी राज्य हैं, ये पर्यावरण की दृष्टि से बेहद संवेदनशील हैं. यहां तापमान बढ़ने से नकारात्मक असर पड़ सकता है.
बारिश के पैटर्न में बदलाव से कृषि संकट
कम बारिश के कारण प्राकृतिक जल स्रोत चार्ज नहीं हो सकेंगे. इससे जल संकट खड़ा होगा.
जैव विविधता पर संकट .
मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर.